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(आशु सक्सेना): 2020 को एक मनहूस साल के तौर पर सदियों तक याद किया जाएगा। इस साल की शुरूआत वैश्विक महामारी कोविड़ 19 के साथ संघर्ष से हुई। इस महामारी पर काबू पाने के लिए दुनिया भर के देशों ने लाॅकडाउन जैसे सख्त फैसले किये, जिसके चलते लोगों को अपने घर में सिमट कर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस वैश्विक महामारी ने जहां दुनिया भर के देशों की अर्थ व्यवस्था को बूरी तरह प्रभावित किया है, वहीं दुनिया भर का राजनीतिक परिदृश्य भी बदलने लगा है। लाजमी है कि इन दोनों ही मोर्चो पर भारत में भी संघर्ष जारी है।
आज़ाद भारत में बीते साल की शुरूआत देशभर में सांप्रदायिक तनाव के बीच नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन से हुई, वहीं इस मनहूस साल का अंत दिल्ली की सीमाओं पर 26 नवंबर से शुरू हुए किसान आंदोलन के साथ हुआ है। साल के आखिरी दिन मोदी सरकार ने किसानों की दो मांगे मान ली हैं। लेकिन किसान संगठनों की मुख्य मांग पर गतिरोध बरकरार है।
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(धर्मपाल धनखड़) हरियाणा की भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार में एक बार फिर विरोधाभासी सुर सामने आने लगे हैं। विगत 10 सितंबर को पीपली में किसानों पर हुए पुलिसिया लाठीचार्ज को लेकर गृहमंत्री अनिल विज और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के विरोधाभासी बयान सामने आये हैं। किसान हाल ही केंद्र सरकार की ओर से पारित किये गये कृषि संबंधी अध्यादेशों का विरोध कर रहे थे। इस मामले में सांसद धर्मवीर सिंह, बृजेंद्र सिंह, प्रदेश के कई मंत्रियों और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने भी लाठी चार्ज की निंदा की और किसानों के साथ बातचीत करने का सुझाव दिया।
गौरतलब है कि प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने लाठीचार्ज से प्रदेश की आम जनता में व्याप्त रोष को देखते हुए आनन-फानन में किसानों से बातचीत के लिए भाजपा सांसदों की 'संवाद कमेटी' के गठन की घोषणा कर दी। प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ है कि इस तरह के मसले पर मुख्यमंत्री की बजाय सत्तारूढ़ पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कमेटी का गठन करें।
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(जलीस अहसन) सदियों के विवाद, विध्वंस और बार बार हुए दंगों में हज़ारों लोगों के मारे जाने के बीच, देश की शीर्ष अदालत ने पिछले साल, अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मसले को लेकर बीच का हल निकालने का प्रयास करते हुए, विवादित स्थल पर राम मंदिर और उससे कुछ दूरी पर धन्निपुर गांव में मस्जिद बनाने का फैसला दिया। इसे हिन्दू-मुस्लमान, दोनों पक्षों ने मान लिया। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मंदिर निर्माण के भूमि पूजन कार्यक्रम में स्वयं हिस्सा लिया और उस दौरान हुई पूजा में यजमान भी बने। 5 अगस्त का शिलान्यास के लिए जो दिन चुना गया, इत्तेफाक से वह, जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को हटाए जाने की पहली बरसी भी थी।
अदालत द्वारा इस मसले का हल निकाले जाने के प्रयास के बाद भी कटुता और अस्वाद के सुर रूक नहीं रहे हैं। एक ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद की जगह, धन्निपुर गांव में नयी मस्जिद निर्माण के शिलान्यास कार्यक्रम में अगर उन्हें बुलाया भी गया, तो वह नहीं जाएंगे। उधर मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड ने, तुर्की में हागिया सोफिया चर्च को फिर से मस्जिद बनाए जाने का उदाहरण देते हुए कहा, ‘‘बाबरी मस्जिद थी और हमेशा मस्जिद रहेगी।‘‘
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(आशु सक्सेना) भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करके 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की आधारशिला रख दी है। पीएम मोदी ने 05 अगस्त 2020 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण की नींव रख दी है। भव्य राम मंदिर के निर्माण की समयसीमा साढ़े तीन साल रखी गई है। इस समयसीमा के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मंदिर का विधिवत उद्घाटन सत्तारूढ़ भाजपा के चुनाव प्रचार के केंद्र में होगा। इसके साथ ही अनुच्छेद 370, सीएए, एनआरसी और समान नागरिक संहिता यानी 'कामन सिविल कोर्ट' जैसे मुद्दों के तड़कों के बीच 'आज़ादी के इतिहास' में उस वक्त के 'सांप्रदायिक धुव्रीकरण' की एक अलग कहानी लिख रहा होगा।
वैश्विक कोरोना महामारी के दौरान अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम में बहुत ही सीमित लोगों को आमंत्रित किया गया था। करीब 135 साधू संतों के अलावा कुल 175 लोगों को समारोह का निमंत्रण पत्र भेजा गया था। प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल प्रोटोकाल के तहत मंच पर मौजूद थे।
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