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(आशु सक्सेना) भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करके 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की आधारशिला रख दी है। पीएम मोदी ने 05 अगस्त 2020 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण की नींव रख दी है। भव्य राम मंदिर के निर्माण की समयसीमा साढ़े तीन साल रखी गई है। इस समयसीमा के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मंदिर का विधिवत उद्घाटन सत्तारूढ़ भाजपा के चुनाव प्रचार के केंद्र में होगा। इसके साथ ही अनुच्छेद 370, सीएए, एनआरसी और समान नागरिक संहिता यानी 'कामन सिविल कोर्ट' जैसे मुद्दों के तड़कों के बीच 'आज़ादी के इतिहास' में उस वक्त के 'सांप्रदायिक धुव्रीकरण' की एक अलग कहानी लिख रहा होगा।

वैश्विक कोरोना महामारी के दौरान अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम में बहुत ही सीमित लोगों को आमंत्रित किया गया था। करीब 135 साधू संतों के अलावा कुल 175 लोगों को समारोह का निमंत्रण पत्र भेजा गया था। प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी के अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल प्रोटोकाल के तहत मंच पर मौजूद ​थे।

पीएम मोदी के अलावा मंच पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की उपस्थिति और संबोधन के बाद इस बात के स्पष्ट संकेत मिले कि मोदी सरकार आरएसएस के 'हिंदु राष्ट्र' की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में अग्रसर है।

इस मौके पर पीएम मोदी ने 'सियावर राम चंद्र की जय' के घोष से संबोधन शुरू किया और 'सियाराम' कह कर खत्म किया। 'सियाराम' अब भाजपा के एक नये नारे में शामिल हो गया है। इसके साथ ही 'जयश्री राम' और 'सियाराम' के प्रयोग पर चर्चाओं का दौर जारी है। तर्क है कि 'जयश्री राम' का उद्घोष लड़ाई के मौके  के मौके पर उद्घोष का प्रतीक है। जबकि 'सियाराम' राममय हो जाना है।

अब सवाल यह है कि भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी 'राम के नाम' पर भाजपा को एक और लोकसभा चुनाव बहुमत से जीतने में सफल होते हैं या फिर देश की बदहाल अर्थ व्यवस्था, बेरोजगारी और वैश्विक महामारी कोरोना समेत तमाम आम आदमी से जुड़े मुद्दों के चलते देश की राजनीति एक बार फिर नई दिशा की ओर अग्रसर होगी। 

2024 आरएसएस की स्थापना का 100 वां साल होगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भूमि पूजन के मौके पर अपने संबोधन में इसे 500 साल के संघर्ष की जीत का जश्न बताया और इसके लिए बलिदान देने वालों को भी याद किया। लिहाजा आरएसएस की कोशिश रहेगी कि अयोध्या में रामजन्म भूमि पर राम मंदिर के विधिवत उदघाटन को अपने संघर्ष की जीत का नतीजा बताते हुए युवाओं जोश बरकरार रखे। उस दिशा में कुछ हिंदुवादी संगठनों ने अभी से 'मथुरा-काशी बाकी है' के नारे को फिर से उछालना शुरू कर दिया है। 

वहीं 2024 संघ की 'हिंदु राष्ट्र' की परिकल्पना को साकार करने के लिए भाजपा के स्टार प्रचारक पीएम मोदी के सामने कड़ी चुनौती है। इन दिनों पीएम मोदी वैश्विक महामारी कोरोना से युद्ध लड़ने में व्यस्त है। आपको याद होगा कि 24 मार्च को जब पीएम मोदी ने कोरोना से लड़ने के लिए 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी, तब पीएम ने कहा था कि 'महाभारत' का युद्ध 18 दिन में जीता गया था। इसे जीतने में 21 दिन लगेंगे।  

वहीं अब महीनों गुजर जाने के बाद  कोरोना महामारी मोदी सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। देश में संक्रमण गांव गांव तक फैल चुका नज़र आ रहा है। पिछले कुछ दिनों से लगातार नये मरीज़ मिलने और इस बीमारी से मौत की संख्या में भारत पहले नंबर पर बना हुआ है। मोदी सरकार की सबसे बड़ी चुनौती इस महामारी से निपटना है। इसका पीएम मोदी की लोकप्रियता पर क्या असर हुआ। यह आने वाले चुनाव नतीज़े ही तय करेंगे। जहां तक लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों की बात करें, तो सभी चुनाव में पीएम मोदी को पराजय का सामना करना पड़ा है।

महाराष्ट्र में जहां भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी, वहीं हरियाणा में अपने बूते पर बहुमत भी नहीं जुटा सकी। यह बात दीगर है कि सूबे में चौटाला परिवार की आपसी फूट ​के चलते प्रमुख विपक्ष इनेलो के विभाजन के बाद पहली बार चुनाव में किस्मत अजमाने उतरी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को विधानसभा ​की 90 में से 10 सीटों पर जीती। जेजेपी ने कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी का नारा देकर चुनाव लड़ा था। लेकिन अब सूबे में भाजपा-जेजेपी गठबंधन सरकार चल रही है। आपको याद दिला दूं कि हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने पाकिस्तान का पानी बंद करने की बात कही थी। इसके बावजूद भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था।

पीएम मोदी को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब राम मंदिर आंदोलन में संक्रिय भूमिका निभाने वाली पार्टी 'शिवसेना' ने भाजपा के साथ अपने तीस साल पुराने गठबंधन को तोड़कर कांग्रेस और क्षेत्रीय दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ साझा न्यूनतम कार्यक्रम के तहत गठबंधन सरकार के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाल ली। यूं तो पिछला चुनाव भी भाजपा और शिवसेना ने आमने-सामने लड़ा था। बाद में केंद्र और राज्य दोनों जगह भाजपा और शिवसेना साथ साथ रहे। यह बात दीगर है कि शिवसेना सरकार में रहते हुए पीएम मोदी की लगातार आलोचना भी करती रहीं थी।

झारखंड़ विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रचार में अपनी पूरी ताकत लगा दी। इसके बावजूद यह सूबा भी भाजपा से छिन गया। पार्टी की हालत इतनी खराब थी कि मुख्यमंत्री भी अपनी सीट नहीं बचा सके थे। सूबे में क्षेत्रीय दल झारखंड़ मुक्ति मोर्चा (झामुमो) कांग्रेस और राष्ट्रीय जनतादल (राजद) गठबंधन ने पूर्ण बहुमत हासिल किया। बाद में भाजपा ने इस हार को पार्टी के क्षेत्रीय नेतृत्व जिम्मेदार ठहराय था।

लोकसभा चुनाव के अपने दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी ने दिल्ली चुनाव को चुनौती के तौर पर लड़ा। आपको याद दिला दूं कि 2015 में राष्ट्रपति शासन में हुए विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने दिल्ली को 'मिनी इंडिया' बताते हुए कहा था कि यहां का चुनाव नतीजा देश का मूड़ बता देगा। उस चुनाव भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में भाजपा विधानसभा में नेता विपक्ष की मान्यता के लिए तय नियम को पूरा करने लायक विधायक जीताने में सफल नहीं हुई थी। दिलचस्प यह था कि विधानसभा चुनाव में मोदी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए नेता प्रतिपक्ष की हैसियत गंवाने तंज किया करते थे। 

दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान पीएम ने चुनावी रैलियां तो पिछली बार की अपेक्षा कम की थी। लेकिन चुनाव जीतने के लिए पीएम मोदी हर हडकंड़े अपनाया। भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने घर घर जाकर चुनाव प्रचार किया। मोदी ने चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की कालोनियों को नियमित करने का निर्णय किया। चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने के लिए 370, सीएए और एनआरसी को चुनावी मुद्दा बनाया। पीएम और गृहमंत्री दोनों शाहीनबाग के विरोध प्रदर्शन को चुनावी मुद्दा बना कर सांप्रदायिक रंग दिया। इसके बावजूद चुनाव में भाजपा को शर्मनाक हार का फिर सामना करना पड़ा। इस बार भाजपा के लिए सम्मान की बात यह थी कि वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की दावेदारी करने लायक विधायकों को जिताने में सफल रही थी।

दिल्ली चुनाव के बाद 'दिल्ली दंगे' और 'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम के बाद देश कोरोना महामारी की चपेट में आ गया है। इस महामारी से लोगों को कब निजात मिलेगी। यह अभी तय नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) लगातार​ इस बात के लिए सचेत कर रहा है कि सावधानी ही इस संक्रमण को रोकने का एकमात्र उपाय है। फिलहाल वैक्सिन की कोई संभावना नहीं है। भारत में कोरोना तेजी से फैल रहा है। लिहाजा आगामी विधानसभा चुनावों में कोरोना भी एक मुद्दा होगा।

कोरोना से जंग के लिए पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा से एक दिन पहले तक पीएम मोदी मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार गिराने में दिलचस्पी ले रहे थे। देश को अब सबसे पहले मध्य प्रदेश विधानसभा के उप चुनावों का सामना करना है। अभी तक 130 सीट वाली विधानसभा में 27 सीट खाली हो चुकी हैं। उम्मीद है कि उप चुनावों की घोषणा से पहले कुछ ओर कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद उप चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ सकती है। यह चुनाव भाजपा के लिए आम चुनाव से कम नहीं होगा। अगर इस चुनाव में भाजपा 9 सीट जीतने में सफल नहीं हुई, तो उसे फिर सत्ता गंवानी होगी।

राम मंदिर के भूमि पूजन के मौके पर इस प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही मंदिर को लेकर राजनीति करते नज़र आये। कांग्रेस ने जिला स्तर पर हनुमान चालीसा का पाठ आयोजित करवा। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की गेरिक वस्त्रों पहने कर हनुमान चालीसा र्का पाठ करते हुए फोटो जारी हुई। इस मौके पर कमलनाथ ने कहा कि राम मंदिर भूमि पूजन से राजीव गांधी होते, तो बहुत खुश होेते। उन्होंने ही सबसे पहले वहां पूजा अर्चना की इजाजत दी थी। साथ ही उन्होंने राम मंंदिर के लिए चांदी की 11 ईंट भेजने की भी घोषणा की। कांग्रेस का यह दाव उप चुनाव में क्या रंग खिलाता है, यह तो चुनाव नतीजों के बाद तय होगा। साथ ही चुनाव नतीजे पीएम मोदी के लोकप्रियता के ग्राफ का संकेत भी देंगे।

पीएम मोदी की सबसे बड़ी चुनावी लड़ाई इस बार भी बिहार में होनी है। फिलहाल तो कोरोना के चलते बिहार विधानसभा चुनाव के समय से होने पर सवालिया ​निशान है। प्रमुख विपक्ष राजद और भाजपा के सहयोगी लोजपा चुनाव का विरोध कर रहे हैं। वह चाहते है कि चुनाव टाले जाएं। चुनाव अगर टले, तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना होगा। जबकि सीएम नीतीश कुमार समय चुनाव के पक्षधर है। बिहार में पिछली बार भी पीएम मोदी को हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने केंद्र का खजाना लुटा दिया था। इसके बावजूद राजद-जदयू-कांग्रेस के महा गठबंधन ने जीत दर्ज की थी। राजद सबसे बड़े दल के तौर पर उभरा था, इसके बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने पाला बदल कर एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया। 

भाजपा नी​तीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। कोरोना काल में भी बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा की वर्चुअल रैलियों का दौर जारी है। हाल ही मैं भाजपा ने चीन सीमा पर शहीद सैनिकों को बिहार से जोड़कर भावनात्मक लाभ लेने की कोशिश की। हाल ही में जम्मू कश्मीर के नव  उप राज्यपाल पद पर मनोज सिंहा की ​नियुक्ति भी बिहार चुनाव को प्रभावित करने का प्रयास है। मनोज सिंहा रहने वाले तो बिहार से सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के है, लेकिन वह भूमिहार है। इस जाति का बिहार में खासा जनाधार है। 

पीएम मोदी की लोकप्रियता का अगला इम्तिहान मध्य प्रदेश के उप चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव हैं। यदि इन चुनावों में भाजपा को झटका लगा, तो आने वाले विधानसभा चुनावों में पीएम मोदी की चुनौतियां लगातार बढ़ती रहेंगी। 

यूं तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी का ही जादू चला था। लिहाजा विधानसभा चुनाव की हार के आधार पर लोकसभा चुनाव परिणाम का आंकलन करना अगली बार भी गलत साबित हो सकता है।  लेकिन एक बात तय है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के वक्त तक देश 'राममय' हो चुका होगा। सवाल यह है कि क्या देश की चौपट अर्थ व्यवस्था और बेरोजगारी के बावजूद 'राम' के नाम पर पीएम मोदी एक और सफलता हासिल करेंगे? या फिर तब तक हर भारतीय के सिर पर अपने घर की छत के साथ पीएम मोदी के 'राम राज्य' की स्थापना वाली परिकल्पना पूर्ण हो चुकी होगी। 

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