(जलीस अहसन) साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेन्द्र मोदी किसी देश के राष्ट्र प्रमुख से सबसे ज़्यादा मिले हैं तो वह हैं, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग। वह अब तक उनसे 18 बार मुलाकात कर चुके हैं। मोदी पांच बार चीन के दौरे पर गए हैं। भारत के अब तक के किसी भी प्रधानमंत्री ने चीन का इतना अधिक दौरा नहीं किया और न ही वहां के सरकार प्रमुख से इतनी बार भेंट की। जिनपिंग को अपने साथ झूला झूलाने वाले मोदी को इसके बदले में क्या मिला ? पहले, भारत की अखंडता के लिहाज़ से बहुत ही महत्वपूर्ण, भूटान के डोकलाम क्षेत्र पर चीन का कब्ज़ा करने का प्रयास और अब लद्दाख में सामरिक महत्व की गलवान घाटी क्षेत्र में उसकी घुसपैठ।
जून की 15-16 तारीख के दरम्यान चीन ने गलवान घाटी क्षेत्र में भारतीय इलाके के भीतर तक न सिर्फ घुसपैठ की बल्कि उसका विरोध करने वाले हमारे जांबाज़ सैनिकों में से 20 की नृशंस हत्या की और दस सैनिकों को बंदी बना लिया। इस घटना में हमारे 85 सैनिक गंभीर रूप से घायल भी हुए। तीन दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी, चीन का नाम लिए बिना ने इस घटना पर अजीब सा बयान दिया ‘‘ ना कोई हमारे क्षेत्र में घुसा है और ना किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किया है।‘‘
इस बयान में उन्होंने देश के 20 जवानों के शहीद होने की बात तो बताई लेकिन घायलों और चीन द्वारा बंधक बनाए गए भारतीय जवानों के बारे में कुछ नहीं कहा।
ये बयान अपने आप में अजीब इसलिए है कि जब हमारे क्षेत्र में ‘न तो कोई घुसा और न ही किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किया‘ तो फिर हमारे जवानों ने किस वजह से शहादत दी ? विश्व महाशक्ति बनने का सपना देख रहे चीन ने पूरी दुनिया को कोरोना वायरस महामारी में फंसा देख, दक्षिण चीन सागर सहित, आस-पास के सामरिक महत्व के इलाकों में अपने पैर पसारने के प्रयास तेज़ करने का यह अच्छा मौका समझा है। उसने बहुत ही ढीठाई से ऐलान किया है कि लद्दाख का पूरा गलवान घाटी क्षेत्र उसका है।
उल्लेखनीय है कि यह घाटी क्षेत्र, अक्साई चीन से मिला हुआ है जिसके एक हिस्से पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है। गलवान घाटी क्षेत्र में घुसपैठ की घटना के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को तैयार रहने के निर्देश दिए हैं। चीन बहुत ही चालाकी से पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के साथ मिलकर भारत को घेरने की चाल चल रहा है। पाकिस्तान तो उसका पिट्ठू पहले ही से था और अब वह, भारत के एकमात्र बचे, भरोसेमंद पड़ोसी देश, नेपाल और बांग्लादेश के जरिए भी भारत को परेशान करने का चाइनीज़ चैकर खेल रहा है। यह चीन की भारत विरोधी कूटनीति की सफलता से कहीं ज़्यादा मोदी सरकार की कूटनीतिक विफलता का द्योतक है। हाल के दिनों में बांग्लादेश भी भारत के विरूद्ध दो बार सार्वजनिक बयान दे चुका है।
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से, चीन इसका फायदा उठाते हुए पाकिस्तान और नेपाल दोनों को बरगला रहा है। यह अनुच्छेद समाप्त किए जाने के बाद भारत ने नया नक़्शा जारी करके कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख को अपने इलाके में दर्शाया। नेपाल ने इन इलाकों पर अपना दावा ठोकते हुए, संविधान संशोधन के ज़रिए अपने नक्शे में इन्हें शामिल कर लिया है। बिला शुब्हा, मोदी सरकार की गलती यह है कि उसने नया नक्शा बनाते हुए सदियों के अपने मित्र देश, नेपाल को विश्वास में नहीं लिया। ये छोटी छोटी कूटनीतिक भूल, पूरे इतिहास पर भारी पड़ जाती हैं।
गलवान घाटी क्षेत्र में चीन की घुसपैठ पर गृहमंत्री अमित शाह ने एक न्यूज़ चैनल में कहा है कि मोदी सरकार देश की सीमाओं को लेकर कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन उन्होंने इस प्रश्न पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी कि क्या चीनी सैनिक भारतीय इलाकों में घुस चुके हैं। मोदी सरकार, आखिर इस तथ्य पर क्यों खामोश है कि चीन ने हमारे गलवान घाटी क्षेत्र में कितनी घुसपैठ की है। चीन भारत से इसलिए भी पंगे ले रहा है कि उसने शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड‘ के उस सपने का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया है, जो चीन और पाकिस्तान के कब्ज़े वाले भारत के क्षेत्रों से गुज़रता है। भारत का यह स्टैंड वाजिब है कि उसके जिस क्षेत्र में चीन और पाकिस्तान ने कब्ज़ा किया हुआ है, वहां से गुज़रने वाली ‘वन बेल्ट वन रोड‘ का हिस्सा वह कैसे बन सकता है।
पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने है। पिछले महीने दोनों ओर के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पंगोंग और सिक्किम के नाकुला में हाथापाई के बाद से तनाव की स्थिति बनी हुई है। चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख़ तक फैला गलवान घाटी क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख़ की सीमा के साथ लगा हुआ है।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के साथ ही लद्दाख को जम्मू कश्मीर राज्य से अलग करके नया केन्द्र शासित क्षेत्र बनाए जाने के बाद से ही चीन सामरिक महत्व के गलवान घाटी क्षेत्र पर अपनी नज़र गढ़ाए है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व से, चीन के इस इरादे को भांपने और उसकी गुपचुप घुसपैठ की शुरूआती कोशिशों पर समय रहते कार्रवाई करने में भारी चूक हुई है।
पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने चीनी घुसपैठ पर मोदी सरकार को नसीहत दी है कि ‘‘प्रधानमंत्री को अपने बयान से चीन के षडयंत्रकारी रूख का ताकत नहीं देनी चाहिए।‘‘ उन्होंने सरकार को आगाह किया कि भ्रामक प्रचार कभी भी कूटनीति तथा मज़बूत नेतृत्व का विकल्प नहीं हो सकता और पिछलग्गू सहयोगियों द्वारा फैलाए जा रहे झूठ के आडंबर से सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता।
डा सिंह ने कहा, ‘‘हम प्रधानमंत्री से आग्रह करते हैं कि वह वक्त की चुनौतियों का सामना और कर्नल बी संतोष बाबू एवं हमारे सैनिकों की कुर्बानी की कसौटी पर खरा उतरें, जिन्होंने राष्ट्रपति सुरक्षा और देश की अखंडता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इससे कुछ भी कम किया जाना जनादेश से ‘‘ऐतिहासिक विश्वासघात‘‘ होगा।