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(धर्मपाल धनखड़) केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा है। सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच बातचीत के दस दौर हो चुके हैं, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ। इस मामले में शुरू से ही केंद्र सरकार की नीति किसानों बिना कुछ दिये ही आंदोलन खत्म करवाने की रही है। आंदोलन को खत्म करवाने के सरकार तमाम हथकंडे अब तक नाकाम रहे हैं। किसानों ने कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए स्थगित किये जाने की सरकार की आखिरी पेशकश को भी ठुकरा दिया।

किसान तीनों कानूनों की वापसी से कम पर किसी भी तरह मानने को तैयार नहीं हैं। वहीं सरकार भी स्पष्ट कर चुकी है कि वो किसी भी सूरत में कानून वापस नहीं लेगी।दिल्ली के बॉर्डर पर धरना दे रहे किसान गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड करने को लेकर भी अड़े हुए हैं। अंततः पुलिस ने किसानों को ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत दे दी है और उसका रास्ता भी निर्धारित कर दिया है। अब किसान गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में लग गये हैं। 

किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा प्रभाव हरियाणा की सियासत पर पड़ रहा है। इसके चलते प्रदेश सरकार के स्थायित्व पर भी सवाल उठने लगे हैं। इस समय सबसे ज्यादा दबाव सरकार में साझीदार जननायक जनता पार्टी के विधायकों पर हैं। चूंकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सरकार जेजेपी और निर्दलीय विधायकों की बैशाखियों पर टिकी है। प्रसिद्ध किसान नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह सरकार में मंत्री हैं, परपौत्र दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री हैं। पौत्रवधु नैना चौटाला भी सरकार के साथ हैं। वहीं चौधरी देवीलाल के पौत्र और इनेलो के महासचिव अभय सिंह चौटाला आंदोलनकारी किसानों के साथ खडे़ हैं। उन्होंने किसानों के समर्थन में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की घोषणा भी की हैं। विधानसभा अध्यक्ष को भेजे पत्र उन्होंने लिखा है कि केंद्र सरकार 26 जनवरी तक तीनों कृषि कानूनों तो वापस नहीं लेती है तो इस पत्र को उनका इस्तीफा मान लिया जाये।

किसान आंदोलन के चलते जहां प्रदेश में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को लोगों के जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ रहा है। वहीं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और अन्य मंत्री तथा भाजपा नेता भी किसानों के कोप का भाजन बन रहे हैं। कृषि कानूनों के समर्थन में करनाल के कैमला गांव में किसानों ने मुख्यमंत्री की जनसभा नहीं होने दी।  किसानों ने हेलीपैड को खोदकर उनके हेलिकाप्टर को भी नहीं उतरने दिया। इस घटना के बाद पुलिस ने नौ सौ से ज्यादा किसानों के खिलाफ विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया है।

इससे पहले उचाना में उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जनसभा को किसानों ने नहीं होने दिया था। लोगों ने हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष रणवीर गंगवा को उनकी ससुराल में ही एक धर्मशाला का उद्घाटन नहीं करने दिया। कई गांवों में तो लोगों ने भाजपा-जजपा नेताओं के प्रवेश ही रोक लगा दी। किसानों के भारी विरोध को देखते हुए ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निर्देश पर खट्टर सरकार ने कृषि कानूनों के समर्थन में किये जाने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगा दी। गणतंत्र दिवस समारोह के कार्यक्रमों पर भी किसानों के विरोध का साया मंडरा रहा था। लेकिन किसान यूनियन के गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों का विरोध नहीं करने की अपील जारी करने बाद सरकार और प्रशासन ने राहत की सांस ली है।

किसानों के समर्थन और तीन कृषि कानूनों के विरोध में दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान सरकार से समर्थन वापिस लेने की घोषणा कर चुके हैं। इसके अलावा बरवाला से जे जे पी के विधायक सुरेंद्र सिंह पूनिया ने किसानों के समर्थन में आवास बोर्ड की चेयरमैनी को ठुकरा दिया। शाहबाद के विधायक इस्तीफा देने को तैयार बैठे हैं। महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू पहले ही से बगावत कर चुके हैं। कई पूर्व विधायक जो विभिन्न पार्टियों को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे वे किसानों के सामर्थन में भाजपा को अलविदा कह चुके हैं। ऐसे में जेजेपी और निर्दलीय विधायक काफी दबाव में हैं।

आंदोलनकारी किसानों का साफ मानना है कि यदि जेजेपी हरियाणा सरकार से समर्थन वापिस ले लें तो राज्य सरकार गिर सकती है और इससे केंद्र को झटका लगेगा। फिलहाल राज्य सरकार को कोई खतरा नहीं है। लेकिन यदि केंद्र सरकार ने किसानों के खिलाफ बल प्रयोग किया तो ना केवल निर्दलीय और जजपा के विधायक सरकार से समर्थन वापिस ले सकते हैं, बल्कि भाजपा के भी कुछ विधायक बगावत कर सकते हैं।

दूसरी तरफ कांग्रेस खुलकर किसान आंदोलन का समर्थन कर रही है। जाहिर है किसान आंदोलन से भाजपा को जो नुकसान होगा उसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा। ये दीगर बात है कि गुटों में बंटी हुई कांग्रेस इसका पूरा फायदा ना उठा पाये। इस समय वास्तव में देखा जाये तो हरियाणा में कांग्रेस का जो मुख्य धड़ा है वो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ हैं। वहीं प्रदेश कांग्रेस की बागडोर भले ही पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के हाथ में है, लेकिन उनका अपना कोई स्वतंत्र आधार नहीं है। इस समय भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं जिसका अपने विधानसभा क्षेत्र से बाहर कोई प्रभाव हो। ऐसे में किसान आंदोलन से सरकार के खिलाफ पैदा हुई नाराजगी का फायदा कांग्रेस केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अगुवाई में ही उठा सकती है। लेकिन पार्टी आलाकमान उन्हें कमान सौंपने के हक में नहीं है। 

उधर, इनेलो विभाजन के बाद पूरी तरह हासिये पर आ चुकी है। हालांकि, अभय सिंह चौटाला सारी ताकत पार्टी काडर खडा़ करने में लगा रहे हैं, लेकिन वे पूरी तरह अकेले पड़ गये हैं। ऐसी स्थिति में किसान आंदोलन से उपजे हालात का वो कोई खास फायदा नहीं उठा पायेंगे। पार्टी काडर और नेतृत्व क्षमता के चलते इस समय जजपा सबसे ज्यादा फायदा उठा सकती थी, लेकिन दुष्यंत चौटाला सत्ता का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। यहां ये भी साफ है कि जजपा के ज्यादातर कार्यकर्ता पार्टी लाइन को छोड़कर किसानों के समर्थन में हैं।

पिछले कुछ बरसों में भाजपा ने गांवों में खास तौर पर कृषक समुदायों में अच्छी साख बना ली थी, वो भी अब खत्म हो चुकी है। ऐसे में किसान आंदोलन और लंबा खिंचता है और केन्द्र सरकार ने आंदोलन को खत्म करने के ओच्छे हथकंडे अपनाए या बल प्रयोग किया तो हरियाणा की राजनीति में उसके दूरगामी परिणाम होंगे और निश्चिंत रूप से उसका फायदा विपक्षी दलों को मिलेगा।

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