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संसद का बजटसत्र रहेगा हंगामेदार, महाकुंभ भगदड़ का मुद्दा भी गूंजेगा

(आशु सक्सेना): आज़ादी के अमृत उत्सव के दौरान उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांच चरण का मतदान हो चुका है। आज छठे चरण का मतदान होना है। पिछले पांच चरण के मतदान के दौरान राजनीतिक पंडित इस बात पर जोर देते रहे हैं कि पच्छिमी उत्तर प्रदेश में पहले दो दौर के मतदान के दौरान 'किसान आंदोलन' के चलते जाटों की नाराजगी भाजपा को इसलिए नुकसान पहुंचा रही है, क्योंकि यहां मुसलमानों ने इस क्षेत्र में एकजुट होकर 'गठबंधन' के पक्ष में मतदान किया है।

राजनीतिक पंडित यह ज्ञान भी दे रहे हैं कि तीसरे दौर से भाजपा की स्थिति में सुधार हुआ है और भाजपा बहुमत का जादुई आंकड़ा अपने सहयोगियों के समर्थन से हासिल कर लेगी। क्योंकि इसके बाद के चरणों में मुसलमान एकजुट होकर हिंदूवादी पार्टी भाजपा को शिकस्त देने की स्थिति में नहीं है, लिहाजा हिंदू मतों का विभाजन भाजपा को जीत दर्ज करवा देगा। 2014 के बाद संपन्न हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर निगाह डालें, तो इन चुनावों के नतीजों में यह साफ नज़र आता है कि जहां भी हिंदु मतों का बहुमत भाजपा के खिलाफ खड़ा हुआ, वहां भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा है।

(पी.चिदंबरम): केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने 31 अगस्त, 2021 को राष्ट्रीय आय से संबंधित अपने अनुमानों की घोषणा की। जीडीपी का आंकड़ा 20.1 फीसदी के साथ निस्संदेह प्रभावी है। यह उम्मीद की जा रही थी कि 'हम लोग' आंकड़ों और सरकार की फिरकी में बहक जाएंगे। मीडिया और कुछ लोगों (भक्तों को छोड़कर) की मेहरबानी से हम लोग आंकड़ों से संभ्रमित नहीं हुए और जल्द ही सच्चाई का एहसास हो गया। सच यह है कि 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर (20.1 फीसदी) एक सांख्यिकी भ्रम है, क्योंकि 2020-21 की पहली तिमाही का 'आधार' अप्रत्याशित रूप से (-)24.4 फीसदी के साथ अत्यंत कम था। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री डॉ. गीता गोपीनाथ महीने भर पहले इसे गणितीय वृद्धि बता चुकी हैं।

लोग क्या हासिल कर सकते हैं
इसके बावजूद हमें 20.1 फीसदी की वृद्धि का स्वागत करना चाहिए, क्योंकि यह दिखाती है कि कोई देश और उसके लोग संवेदनहीन और खयाल न रखने वाली सरकार के बावजूद क्या हासिल कर सकते हैं।

(धर्मपाल धनखड़): जीवन और प्रकृति के प्रति संवेदनशील हमारा भारतीय समाज विकास की लय पर कदम-ताल करते हुए न जाने कब और कैसे 'बचाओ-बचाओ' चिल्लाते रहने वाले समाज में तब्दील हो गया। ये समाजशास्त्रियों के लिए गहन अध्ययन का विषय है। वास्तविकता ये है कि हम‌ मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों पर चलने का ढोंग करते-करते मंथरा के फालोवर होते चले गये। इसके साथ ही हमारी 'कथनी और करनी' बिल्कुल विपरीत हो गयी। इसीलिए हम जिसे खत्म करना चाहते हैं, उसके लिए जोर-शोर से 'बचाओ-बचाओ' का उद्घोष करने लगते है।

बरसों पहले वनों को बचाने के लिए खूब आवाज उठायी गयी, लेकिन हम उन्हें निरंतर खत्म करते जा रहे हैं। वन्य जीव-जंतुओं को बचाने का नारा दिया तो आज अनेक प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और कुछ भविष्य में लुप्त हो जायेंगी। पहाड़ बचाने के स्लोगन के साथ हम निरंतर उन्हें काटते-तोड़ते जा रहे हैं। नदियों को पवित्र, पूज्य और जीवनदायिनी बताकर, उन्हें बचाने की मुहिम छेड़ी, तो ना केवल उनके रास्ते में विकास के रोड़े अटकाए, बल्कि मल-मूत्र डालकर उन्हें गंदा करने में जी-जान से जुटे हैं।

(आशु सक्सेना): केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दमोदर मोदी के लिए आज़ादी का 75वां साल काफी चुनौतियों भरा रहने वाला है। देश में अगले साल 2022 के दिसंबर तक सात राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें पंजाब को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा हैं। जाहिर है कि पीएम मोदी इन राज्यों में अपने 'डबल इंजन' की सरकार के नारे पर एक बार फिर सत्ता में वापसी की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

दरअसल, पीएम मोदी अपने गृहराज्य गुजरात और अपने कर्म क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश में चुनाव अभियान शुरू कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश में वह केंद्र की योजनाओं से लाभांवित लोगों से सीधे संवाद के कार्यक्रम प्रयोजित करवा रहें हैं। वहीं अपने गृहराज्य गुजरात में एक बार फिर धार्मिक माहौल गरमाकर सांप्रदायिक धुव्रीकरण की रणनीति को अंजाम दे रहे है। सवाल यह है कि गौधरा के बाद हुए विधानसभा चुनाव से लेकर पिछले विधानसभा चुनाव तक जब भाजपा के प्रदर्शन में लगातार गिरावट दर्ज की गयी है, ऐसे में क्या अगले विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी का चमत्कार भाजपा की सत्ता में वापसी करवा पाएगा?

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