(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डेढ साल के कामकाज पर जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। दिल्ली के बाद बिहार में मोदी की लगातार दूसरी शर्मनाक हार सेे यह साबित हो गया है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी का जादू अब प्रधानमंत्री बनने के बाद लगभग खत्म हो गया है। बिहार विधानसभा चुनाव को प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ कर लड़ा था। उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में केंद्र सरकार के कामकाज पर मोहर लगाने की गुहार की थी। उन्होंने कहा था कि देश के विकास के लिए दिल्ली को आप लोकसभा चुनाव में पहले ही भाजपा को सौंप चुके हैं, अब बिहार के विकास के लिए यहां भी भाजपा को सत्ता सौंपें। चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव को खुद बनाम नीतीश कुमार बना दिया था। लिहाजा जनता ने बिहार के विकास पुरूष नीतीश कुमार के सिर पर ताज रख दिया। साथ ही प्रधानमंत्री को यह सबक भी सिखा दिया कि इंसान का पेट भाषण से नही बल्कि अनाज से भरता है। बिहार में शर्मनाक हार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगला इम्तिहान ओर कठिन है। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर केंद्र की सत्ता पर काबिज हुए मोदी को अगली चुनावी जंग कांग्रेस शासित राज्य असम में लड़नी है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने असम में बेहतर प्रदर्शन किया था। भाजपा को प्रदेश की 13 लोकसभा सीट में से 7 पर जीत हासिल हुई थी। पार्टी के रणनीतिकारों को पूरा भरौसा था कि इस बार वह असम में आसानी से परचम फहरा देंगे। लेकिन अब हालात काफी बदले हुए नजर आ रहें। पिछले डेढ़ साल के दौरान केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बगावती माहौल बन चुका है। लोकसभा चुनाव के वक्त किये वादे पूरे करने में मोदी न सिर्फ नाकामयाब रहे हैं बल्कि उन वादों से उलट हालात आम आदमी झेल रहा है। मोदी ने अच्छे दिन, मंहगाई से निजात और रोजगार देने का नारा देकर युवाओं को आकर्षित किया था। लेकिन केंद्र की मोदी सरकार युवाओं से किये गये वादों पर खरी नही उतर पाई। अच्छे दिनों के नाम पर मंहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल की कीमतों में काफी गिरावट आुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता लोकसभा चुनाव के बाद लगातार कम हो रही है। लोकसभा चुनाव के बाद राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा लोकसभा चुनाव में मिले जनाधार को बरकरार नही रख सकी। हरियाणा को छोड़कर अन्य सभी चुनावी राज्यों में सत्ता की खातिर भाजपा को अपने विरोधियों के साथ समझौता करना पड़ा। महाराष्ट्र में भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना प्रधानमंत्री के खिलाफ शुरू से ही आक्रामक रूख अख्तियार किये हुए है। जम्मू कश्मीर में भी मोदी को बाप बेटी के साथ समझौता करके ही सत्ता सुख मिल रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद जिन राज्यों में भाजपा को सत्ता हासिल हुई है, वह सभी राज्य कांग्रेस शासित थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मोदी का मुकाबला जब कांग्रेस और भाजपा के विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी से हुआ। तब मोदी को बेहद शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। भाजपा इस चुनाव में विपक्ष के नेता की दावेदारी के लायक सीट हासिल नही कर सकी। अब बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में हासिल जनाधार को लगातार खो रहे है। लोकसभा चुनाव में भाजपा नीत राजग ने बिहार में 40 में से 32 सीटों पर कब्जा किया था। वहीं विधानसभा चुनाव में वह 58 सीट पर सिमट कर रह गई है। जोकि 2010 के चुनाव में भाजपा को मिली सीटों से 34 सीट कम है, जबकि प्रधानमंत्री ने यह चुनाव जीतने के लिए अपनी सारी ताकत झौंक दी थी। प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान हिंदु मतों के धुव्रीकरण के लिए चुनाव को सांप्रदायिक रंग भी दिया। मोदी के चहेते अमित शाह ने तो सांप्रदायिक रंग देते हुए यहां तक कहा कि अगर बिहार में भाजपा हारी तब पटाखे पाकिस्तान में छूटेंगे। बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए चैतरफा मुसीबत खड़ी कर दी है। अब पार्टी संगठन पर मोदी की पकड़ कमजोर होना स्वाभाविक है। लिहाजा पार्टी में अब पहला निशाना मोदी के चहेते पार्टी अध्यक्ष अमित शाह होंगे। बहरहाल मोदी को अगली चुनावी परीक्षा असम और पच्छिम बंगाल में देनी है। असम में मोदी की असल परीक्षा है। अगर असम विधानसभा चुनाव भी भाजपा हारती है और इस राज्य में कांग्रेस पुनः सत्ता पर काबिज होती है। तब मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के खिलाफ जनादेश होगा और यहां से कांग्रेस की वापसी का संदेश भी जाएगा। बहरहाल बिहार विधानसभा चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री की दिवाली काली कर दी। अब देखना यह है कि असम विधानसभा चुनाव के वक्त संभावित होली के त्यौहार पर प्रधानमंत्री जीत के रंग में रंगते हैं या फिर वह कांग्रेस को वापसी का मौका देते हैं।