नई दिल्ली: बहुचर्चित फिल्म 'गंगूभाई काठियावाड़ी' को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है और इसके साथ ही फिल्म के शुक्रवार को फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है। दो दिन चली बहस के बाद जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने फिल्म गंगूबाई काठियावाड़ी की रिलीज को हरी झंडी दी। पीठ ने खुद को गंगूबाई का दत्तक पुत्र बताने वाले याचिकाकर्ता बाबूजी राव जी शाह की याचिका खारिज कर दी। पीठ ने कहा कि शाह खुद को गंगूबाई का दत्तक पुत्र साबित करने में विफल रहा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने कहा था कि बाबूजी रावजी शाह यह साबित नहीं कर सका कि वह दत्तक पुत्र है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर सवाल उठाए। जस्टिस जेके माहेश्वरी ने कहा, 'आपकी दलील का मुख्य आधार ये दावा है कि आप गंगूबाई काठियावाड़ी के दत्तक पुत्र हैं।'
इस पर जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि आपको बताना होगा कि किस विधि से आपको उन्होंने पुत्र के तौर पर दत्तक बनाते हुए गोद लिया था? आपने अब तक कहीं पर भी इसकी कोई जानकारी नहीं दी है कि आपको ये अधिकार कैसे मिला?
इससे पहले, सुनवाई के दौरान भंसाली प्रोडक्शंस ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 'गंगूबाई काठियावाड़ी' फिल्म का नाम बदलना संभव नहीं है। यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं। हमें सेंसर सर्टिफिकेट मिल चुका है। नाम पहले ही प्रकाशित हो चुका है। पूरे देश में इसका विज्ञापन हो चुका है। गंगूबाई की मौत 40 साल पहले हो चुकी है। मौत के बाद मानहानि का अधिकार खत्म हो जाता है। भंसाली प्रोडक्शंस के लिए सी आर्या सुंदरम ने अदालत में कहा, 'अदालत ने कल बहुत स्पष्ट विचार व्यक्त किया था। इस मोड पर फिल्म का नाम बदलना संभव नहीं है। यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होगा। हमें फिर से सेंसर बोर्ड के पास जाना होगा। सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला है कि मौत के बाद अधिकार खत्म हो जाते हैं। 40 साल पहले महिला का निधन हो गया था। यहां कहीं भी उसे "माफिया क्वीन" नहीं कहा गया है। सुंदरम ने कहा, अगर फिल्म यह बताने वाली है कि उसे रेड लाइट एरिया में कैसे मजबूर किया गया- जो सच है तो वो कैसे कह सकते हैं कि यह मानहानिकारक है? भंसाली प्रोडक्शन के वकील अर्यमा सुंदरम ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने अभी तक फ़िल्म भी नहीं देखी है। इसमे गंगूबाई की छवि और चरित्र का कोई अपमान या हनन नहीं किया गया है। बल्कि यह फ़िल्म तो एक महिला के उत्थान की कहानी है। ऐसा कोई तथ्य याचिकाकर्ता के पास नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि फ़िल्म गंगूबाई के चरित्र का अपमान करती है। यह याचिका खारिज की जानी चहिये। निर्माता की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने भी याचिकाकर्ता पर सवाल उठाया। उनके पास गंगूबाई के दत्तक पुत्र होने का सिर्फ दावा है लेकिन कोई सबूत नहीं है।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा कि इस गहराई में जाने की फिलहाल जरूरत नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता उनकी विरासत या प्रोपर्टी पर दावा नहीं कर रहा है। इस पर रोहतगी ने कहा, 'किताब बिल्कुल भी अपमानजनक नहीं है और उस चरित्र का महिमामंडन किया गया है। उस क्षेत्र में उनकी एक मूर्ति है। दुर्भाग्य से वह उन कठिनाइयों में पैदा हुई थी लेकिन वह वहीं से उठी। यह एक महिमामंडन था। अब उसी पर आधारित एक फिल्म बनी है। मेरे हिसाब से याचिकाकर्ता को निषेधाज्ञा प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है.'मुकुल रोहतगी ने कहा कि शुक्रवार को ये फिल्म पूरी दुनिया भर में रिलीज होनी है। कई ऐसे थर्ड पार्टी के अधिकार इससे जुड़े हैं। उनके अधिकार दस करोड़ रुपए से ज्यादा के हैं, जिनमें प्रोड्यूसर, एंकर, प्रदर्शक यानी थिएटर वाले शामिल हैं। ये चेन रिएक्शन की तरह एकदूसरे से संबंधित हैं। जाहिर है कि ऐसे में कोई भी प्रतिकूल आदेश इन पर सीधा असर डालेगा। देश विदेश के हजारों थिएटर में ये फिल्म एकसाथ रिलीज होगी। अदालत ये भी ध्यान रखे कि रिलीज रोकने से प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, लेखक, डिस्ट्रीब्यूटर, थिएटर, दर्शक सहित कितनों पर कितना असर पड़ेगा।