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मुंबई: विभिन्न राजनीतिक दलों के मुफ्त में दिए जाने वाले उपहारों की घोषणा आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकती है। एक रिपोर्ट में यह आगाह करते हुए सुझाव दिया गया है कि इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति ऐसे खर्चों को राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या राज्य के कर संग्रह के एक प्रतिशत तक सीमित कर दे।

राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दिए जाने वाले उपहारों को लेकर जारी बहस के बीच भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार (समूह) सौम्य कांति घोष द्वारा लिखी गई इस रिपोर्ट में तीन राज्यों का उदाहरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपये अनुमानित है।

रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में अगर पेंशन देनदारी को देखा जाए तो यह काफी ऊंचा है।

झारखंड के मामले में यह 217 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत है।

जो राज्य पुरानी पेंशन व्यवस्था फिर से लागू करने पर विचार कर रहे हैं, उनमें हिमाचल प्रदेश में कर राजस्व के अनुपात में पेंशन देनदारी 450 प्रतिशत, गुजरात के मामले में 138 प्रतिशत और पंजाब में 242 प्रतिशत हो जाएगी। पुरानी पेंशन व्यवस्था में लाभार्थी कोई योगदान नहीं करते।

घोष के अनुसार, उपलब्ध ताजा सूचना के अनुसार राज्यों का बजट से इतर कर्ज 2022 में करीब 4.5 प्रतिशत पहुंच गया। इसके अंतर्गत वह कर्ज है, जो सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां जुटाती हैं और जिसकी गारंटी राज्य सरकारें देती हैं। विभिन्न राज्यों में इस प्रकार की गारंटी जीडीपी के उल्लेखनीय प्रतिशत पर पहुंच गयी है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत की समिति मुफ्त में दिये जाने वाले उपहारों के लिये दायरा तय कर सकती है। यह कल्याणकारी योजनाओं के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) या राज्य के अपने कर संग्रह का एक प्रतिशत अथवा राज्य के राजस्व व्यय का एक प्रतिशत हो सकता है।

तेलंगाना के मामले में इस प्रकार की गारंटी का हिस्सा जीडीपी का 11.7 प्रतिशत, सिक्किम में 10.8 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 9.8 प्रतिशत, राजस्थान में 7.1 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 6.3 प्रतिशत है। इस गारंटी में बिजली क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 40 प्रतिशत है। अन्य लाभ वाली योजनओं में सिंचाई, बुनियादी ढांचा विकास, खाद्य और जलापूर्ति शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें विभिन्न राजनीतिक दल जो वादे कर रहे हैं, वह राजस्व प्राप्ति और राज्य के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में क्रमश: हिमाचल प्रदेश में 1-3 प्रतिशत और 2-10 प्रतिशत तथा गुजरात में 5 से 8 प्रतिशत 8-13 प्रतिशत है।

लाभार्थियों के बिना किसी योगदान वाली पुरानी पेंशन व्यवस्था को अपनाने या उसका वादा करने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश में यह कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में 450 प्रतिशत, गुजरात में 138 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत, झारखंड में 217 प्रतिशत और पंजाब में 242 प्रतिशत बैठेगा।

पुरानी पेंशन व्यवस्था को अपनाने वाले या उसे दोबारा से लागू करने का वादा करने वाले राज्यों की संयुक्त रूप से देनदारी वित्त वर्ष 2019-20 में 3,45,505 करोड़ रुपये थी। यह जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप छत्तीसगढ़ में 1.9 प्रतिशत हो जाएगा, जबकि 60,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा जो 2019-20 में 6,638 करोड़ रुपये था।

झारखंड के मामले में यह 6,005 करोड़ रुपये था। यह इसके जीएसडीपी का 1.7 प्रतिशत है और इसमें 54,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। राजस्थान में यह 20,761 करोड़ रुपये था जिसके बढ़कर जीएसडीपी के छह प्रतिशत और बढ़कर 1.87 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। पंजाब में यह 10,294 करोड़ रुपये था और इसके बढ़कर जीएसडीपी के तीन प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान है। कुल बोझ में 92,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी।

हिमाचल प्रदेश में यह 5,490 करोड़ रुपये था। इसके जीएसडीपी के 1.6 प्रतिशत तथा 49,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। गुजरात में पेंशन बोझ वित्त वर्ष 2019-20 में 17,663 करोड़ रुपये था। इसके उछलकर राज्य जीडीपी का 5.1 प्रतिशत पर पहुंचने का अनुमान है। इसमें 1.59 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी।

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