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नई दिल्ली (जनादेश ब्यूरो): दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान मंगलवार को कर दिया गया। निर्वाचन आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिल्ली में चुनाव से जुड़ी जानकारियां भी दीं। इसके अलावा भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बीते वर्षों में चुनाव की पवित्रता को लेकर लगाए गए एक-एक आरोप पर भी जवाब दिया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि केंद्रीय बजट 1 फरवरी को आएगा और दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होगा। आज ही हम कैबिनेट सचिव को स्थायी निर्देश जारी करेंगे कि बजट में दिल्ली से जुड़ी कोई घोषणा नहीं होनी चाहिए।

सीईसी ने ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोप को किया खारिज

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि ईवीएम को लेकर तो कई बार बहुत कुछ कहा गया है। कहा गया कि वोटर टर्नआउट बढ़ जाता है 5 बजे के बाद। बैट्री का मुद्दा, बूथ पर वोटर की संख्या के मिसमैच और काउंटिंग के मिसमैच का मुद्दा भी उठा है। आज हम इन सभी सवालों के जवाब देना चाहते हैं।

सीईसी ने कहा, "सवाल पूछने का अधिकार लोकतंत्र में दिया गया है। हम भी इस अधिकार का सम्मान करते हैं। इन सभी सवालों की इज्जत रखते हुए हम इन सवालों का जवाब देंगे। सब सवाल अहमियत रखते हैं, जवाब तो बनता है। आदतन कलमबंद जवाब देते रहे, आज रूबरू भी बनता है। क्या पता कल हम हो न हों, आज जवाब तो बनता है, आज जवाब तो बनता है।"

चुनाव आयोग ने किन-किन चिंताओं का जवाब दिया?

सीईसी राजीव कुमार ने उन आरोपों का जिक्र किया, जो बीते वर्षों और दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की तरफ से लगाए गए हैं। उन्होंने कहा, आरोप लगते हैं कि चुनाव से जुड़ी लिस्ट में गलत तरह से वोटरों के नाम जोड़े और हटाए गए। लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र और अब दिल्ली में इस तरह के आरोप चल रहे हैं। लोगों के नाम काट दिए जाते हैं। समूहों के नाम काट दिए जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में 50-50 हजार वोटर बढ़ा दिए गए।

ईवीएम से छेड़छाड़ का मुद्दा तो हमेशा से ही उठता रहा है। सब जवाब देने के बावजूद कभी बैट्री के नाम पर कभी किसी नाम पर, लोगों ने ईवीएम चुनाव तक कह दिया। कहा गया कि 5 बजे के बाद वोटर टर्नआउट बढ़ जाता है। लोकसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद भी। कहां बढ़ा, 5 बजे के बाद कहां लोग कतार में थे, उसके वीडियो भी मांगे गए हमसे।

कुछ क्षेत्रों में वोटर्स में मिसमैच हो गया। जितने वोट पड़े थे, वो बढ़ा दिए गए। इससे वोटर टर्नआउट बढ़े। काउंटिंग में मिसमैच हो गया। कहीं कम गिना गया तो कहीं ज्यादा गिन लिया गया।
काउंटिंग को धीमा कर दिया गया।

अभी एक सवाल उठा है कि कुछ नियम बदले गए हैं, जिनसे पारदर्शिता पर असर पड़ा है।

सीईसी ने इनके क्या जवाब दिए?

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि देश में 10.50 लाख बूथ हैं। हर बूथ पर चार से पांच चुनाव अधिकारी होते हैं। तो उनका आंकड़ा 45 लाख से 50 लाख हो गया। यह सभी चुनाव अधिकारी उसी राज्य के होते हैं, अलग-अलग विभागों के होते हैं, अलग-अलग कौशल वाले होते हैं। चुनाव के लिए बूथ पर पहुंचने से दो-तीन दिन पहले उन्हें उम्मीदवारों के सामने ही छांटकर अलग-अलग टीम बनाई जाती है और भेजा जाता है। वह दो-तीन दिन पहले ही एक-दूसरे से मिलते हैं तो ऐसे आरोपों पर बड़ा दर्द होता है।

उन्होंने एक ग्राफिक दिखाते हुए कहा कि 2020 से 30 राज्यों के चुनाव हुए हैं। 15 राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक दल सबसे बड़ी पार्टियां हैं। 2020, 2021, 2022, 2023, 2024 हर जगह अलग-अलग पार्टियां अधिकतम सीटें हासिल करने में सफल हुई हैं। यह दिखाता है कि भारत का मतदान की प्रणाली कितनी स्वच्छ है। परिणाम के आधार पर प्रक्रिया का आकलन नहीं हो सकता।

1. चुनावी लिस्ट में गड़बड़ी के सवाल पर?

सीईसी ने बताया कि जब भी इलेक्टोरल रोल बनता है, तब नियमित बैठकें होती हैं। यह फॉर्म-6 के बिना नहीं हो सकता। हर पार्टी अपना बीएलए नियुक्त कर सकती है। जो भी दावे और आपत्तियां आती हैं, वो हाथ के हाथ हर राजनीतिक दल के साथ साझा की जाती हैं। वेबसाइट पर ड्राफ्ट डाला जाता है। पोलिंग स्टेशन में इसे लेकर चर्चा होती है। किसी मतदाता का नाम हट ही नहीं सकता, अगर फॉर्म-7 न हो।
यहां तक कि अगर किसी का निधन हो गया है तो उसका डेथ सर्टिफिकेट हम अपने रिकॉर्ड में रखते हैं। अगर इसके बावजूद किसी का नाम हटना है तो हम उसे नोटिस देते हैं। वेबसाइट पर दावे और आपत्ति का समय देते हैं।

उन्होंने कहा, "भारत में दूसरी कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है, जिसमें हर साल आपकी मतदाता पहचान का सत्यापन होता हो। हर साल अक्तूबर को सर्वे किया जाता है। इसके ड्राफ्ट रोल की दो-दो कॉपी मुफ्त में सभी राजनीतिक दलों को दी जाती हैं। बताया जाता है कि यह ड्राफ्ट रोल है, अब जो नए लोग वोटर बनेंगे या डिलीट होंगे, उसकी प्रक्रिया चलेगी। हर कदम पर आपको जानकारी दी जाएगी। हर स्टेज पर कोई भी आपत्ति हो तो उसके बारे में बताया जाए। आप बीएलए को नियुक्त करें और उन्हें सत्यापन के लिए भेजें।
"हर गांव, हर पोलिंग स्टेशन पर जो भी ड्राफ्ट रोल हो, उनकी कॉपी प्रकाशित की जाती है। भरपूर मौका दिया जाता है। लोगों का नाम तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक उन्हें निजी तौर पर सुनवाई का मौका न दे दिया जाए। किसी पोलिंग स्टेशन पर 2 फीसदी से ज्यादा नाम हट गए तो एआरओ को खुद जाकर इसकी जांच करनी होती है। यह प्रक्रिया हर साल होती है।"

राजनीतिक दलों को जवाब देते हुए सीईसी ने कहा कि जहां एक-एक वोट की लड़ाई होती है, वहां के क्षेत्रों में जैसा बोल दिया जाता है कि 10 हजार, 20 हजार, 50 हजार वोट कट जाते हैं। अगर ऐसा सच में हो जाए तो वहां क्या ही स्थिति होगी, हम सब जानते हैं। मान लीजिए कि अगर कहीं 1 फीसदी मतदाताओं का नाम कट भी गया तो जनवरी से लेकर अक्तूबर तक का समय है, तब क्यों नहीं कहा जाता कि यह नाम हटा दिया जाए या ये नाम जोड़ दिए जाएं। सिर्फ चुनाव के समय ही यह मुद्दे उठाए जाते हैं। यह बिल्कुल नामुमकिन है। किसी बीएलओ की तरफ से अगर एक-दो नाम इधर-उधर हो जाते हैं तो उसे सही करने के भी मौके हैं। अगर गड़बड़ी की ऐसी कोई सूचना हमारे पास आती है तो हम कार्रवाई भी करते हैं।

2. ईवीएम से छेड़छाड़, बैट्री के मुद्दे पर?

सीईसी ने कहा कि चुनाव की तारीख से 7 या 8 दिन पहले ईवीएम में चुनाव चिह्न डाले जाते हैं। यह प्रक्रिया पार्टियों के चुनावी एजेंट्स के सामने होती है। उसी दिन उन्हें मॉक पोल करने के लिए कहा जाता है, ताकि वे चेक कर लें कि चुनाव चिह्न ठीक पड़ गए हैं। उसी दिन ईवीएम में नई बैट्री डाली जाती है और बैट्री को भी सील कर दिया जाता है। ईवीएम को इसके बाद एजेंट्स के सामने ही स्ट्रॉन्ग रूम में रखा जाता है और उनके सामने ही सील कर दिया जाता है और इसके बाद उन्हें स्ट्रॉन्ग रूम में ही छोड़ दिया जाता है। चुनाव वाले दिन सील राजनीतिक दलों के एजेंट्स के सामने स्ट्रॉन्ग रूम में ही खोली जाती है। उनसे चेक कराया जाता है कि उनके सामने जिस सीरियल नंबर की ईवीएम दी गई थी, यह वही है या नहीं, सील भी चेक कराई जाती है। इसके बाद सुबह-सुबह एजेंट्स से फिर मॉक पोल कराया जाता है। यह पोलिंग एजेंट पूरा दिन पोलिंग स्टेशन में रहते हैं। वे आने-जाने वालों का रिकॉर्ड रखते हैं। शाम को मतदान खत्म होने के बाद पोलिंग स्टेशन छोड़ने से पहले उन्हें फॉर्म 17-सी दिया जाता है, किस ईवीएम में कितने वोट पड़े यह जानकारी इसमें होती है। ईवीएम को इसके बाद वापस स्ट्रॉन्ग रूम में लाया जाता है। इसमें ताला एजेंट्स के सामने ही लगाया जाता है।

फिर काउंटिंग का दिन आता है तो उन्हें ईवीएम फिर चेक करने के लिए कहा जाता है कि यह मतदान में इस्तेमाल ईवीएम है या नहीं। इसके बाद एजेंट्स को वोटों की संख्या फॉर्म 17-सी से मिलाने के लिए भी कहा जाता है। अगर मतदान के दिन से वोटों की संख्या मिलेगी, तभी मतगणना आगे बढ़ेगी। यह संख्या एजेंट्स को फॉर्म 17-सी के जरिए पहले ही मतदान खत्म होने के बाद दे दी जाती है। इसके बाद पांच रैंडम तरह से चुनी हुई वीवीपैट की गिनती भी की जाती है।

सीईसी ने बताया कि अदालतों, जिनमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से टिप्पणी शामिल है, ने 42 बार कहा है कि

ईवीएम हैक नहीं हो सकती।

इसमें अविश्वसनीयता या किसी कमी का कोई प्रमाण नहीं।

ईवीएम में वायरस या बग डालने का कोई सवाल नहीं।

ईवीएम में अवैध वोट का कोई सवाल नहीं।

धांधली संभव नहीं।

ट्रोजन हॉर्स एक्टिवेट कर परिणाम बदलने का कोई सवाल नहीं।

अदालत को प्रस्तुत प्रमाण से यह विश्वास होता है कि ईवीएम छेड़छाड़-रोधी (tamper-proof) हैं।

ईवीएम परिणामों की गणना के लिए पूर्णतः भरोसेमंद उपकरण हैं।

छेड़छाड़ के आरोप निराधार हैं।

आविष्कार निस्संदेह एक महान उपलब्धि और राष्ट्रीय गौरव है।

वीवीपैट प्रणाली के साथ ईवीएम मतदान प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करती है।

चुनाव आयोग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सफलतापूर्वक आयोजित किए हैं।

संवैधानिक निकाय की छवि और प्रतिष्ठा को कम करना स्वीकार्य नहीं है।

3. मतदान खत्म होने के बाद वोटर टर्नआउट बढ़ने के सवाल पर?

मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि वोटर टर्नआउट पर जो नैरेटिव गढ़ा गया है, वह गलत धारणा पर आधारित
है। उन्होंने इसकी वजह बताते हुए कहा कि मतदान के दिन सुबह 9.30 बजे, 11.30 बजे, 1.30 बजे, 3.30 बजे, 5.30 बजे सेक्टर मजिस्ट्रेट बूथ से बूथ जाते हैं और रुझान इकट्ठा करते हैं।

उन्होंने कहा कि अगर 10.50 लाख बूथ से किसी बिना संपर्क वाले सिस्टम (ईवीएम) से डाटा इकट्ठा करना हो तो इसमें समय लगता है। दुनिया में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जो बिना कनेक्ट हुए लाइव आपको आंकड़ा दे दे। लेकिन अगर ईवीएम को इंटरनेट से कनेक्ट कर दें और लाइव आंकड़ा देने लगें तो कहा जाएगा कि ईवीएम हैक हो गईं।

सीईसी ने बताया कि चुनावी स्टेशन के अधिकारी जो पहली बार उस स्टेशन में गए हैं वह 5 से 7 बजे के बीच में जो लोग लाइन में खड़े हैं, उन्हें टोकन बांटते हैं और लाइन में गाते हैं ताकि उनका वोट पड़ सके। इस दौरान उनकी कुछ लोगों से कहासुनी भी होती है। फिर वह व्यवस्था को संभालते हैं। वोटिंग खत्म कराते हैं। मशीन को सील करते हैं। बैट्री को सील करते हैं। कई 17-सी फॉर्म बनाते हैं। वे इन्हें हाथ से लिखते हैं और सील कराकर एजेंट्स के हाथ में इसकी कॉपी देते हैं।

उन्होंने कहा अगर मान लिया जाए कि 10.50 लाख बूथ में चार एजेंट्स भी हैं, तो मतदान खत्म होने के बाद 40 लाख फॉर्म 17-सी एजेंट्स के हाथ में होते हैं। महाराष्ट्र में 1 लाख बूथ थे। हर बूथ पर चार एजेंट्स के हिसाब से वहां 4 लाख 17-सी फॉर्म्स बांटे गए होंगे। हर मतदान क्षेत्र के हर उम्मीदवार के पास मतदान खत्म होने के बाद अपने एजेंट्स के जरिए फॉर्म 17-सी पहुंचा दिए जाते हैं। यानी उन्हें पता होता है कि हर बूथ में कितने वोट डाले गए हैं।

सीईसी ने अन्य देशों में वोटिंग प्रक्रिया के धीमेपन का उदाहरण देते हुए कहा कि कहीं तो महीनों काउंटिंग चलती रहती है और हमसे पूछा जाता है कि आपने 6 बजे के बदले 11.15 बजे रात तक 8 फीसदी मतदान प्रतिशत बढ़ा दिया। इसके पीछे वजह यही है कि मतगणना में लगा अधिकारी शाम 7-7.30 बजे बूथ से उठकर सारी मशीनें लेकर डिपॉजिट सेंटर पर आएगा, यहां मशीन जमा करेगा और वोटर टर्नआउट एप के आंकड़ों को ठीक करना शुरू करेगा। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद हमने रात में ही 11 और 12 बजे के बीच आंकड़ों को लेकर एक और प्रेस रिलीज जारी करना शुरू किया। ताकि असल आंकड़े जारी करने में अगले दिन की देरी न हो।

उन्होंने कहा कि अब हमसे कहा जा रहा है कि शाम को छह बजे ही सारे आंकड़े बता दिए जाएं। इसके लिए बाकी प्रक्रियाओं को नहीं रोका जा सकता। दुनिया में ऐसी व्यवस्था कहीं नहीं है कि 6 बजे वोटिंग खत्म हुई हो और 6.15 बजे तक उसके आंकड़े सही-सही बता दिए जाएं।

सीईसी राजीव कुमार ने बताया कि वोट प्रतिशत रात तक आते-आते वही हो जाता है, जो फॉर्म 17-सी में दिया गया है। कोई भी इसकी जांच कर सकता है। अगले दिन हम फिर आंकड़ों को सत्यापित करते हैं, जिसमें उम्मीदवारों और पर्यवेक्षकों को बुलाया जाता है, क्योंकि मतदान में शामिल कई टीमें देर से भी लौटती हैं। इसके बाद वोट प्रतिशत का आंकड़े में फिर कुछ प्रतिशत का सुधार होता है।

4. असल में पड़े वोट और काउंटिंग के दौरान पड़े वोट में फर्क मिलने पर

मुख्य चुनाव आयुक्त ने इन आरोपों पर जवाब देते हुए बताया कि 10.50 लाख बूथों में से किसी एक-दो जगह ऐसा हो सकता है कि ईवीएम में कुछ गड़बड़ी देखी जाएं। मसलन- ईवीएम कभी ऑन न हों, या किसी मशीन में वोटिंग से जुड़े आंकड़ों का मिलान न हो रहा हो या उनसे मॉक पोल का डाटा न हटाया गया हो। तो ऐसे में उन मशीनों को किनारे रख दिया जाता है और शुरुआत में उसमें पड़े वोटों की गिनती नहीं होती।

जब मतगणना पूरी हो जाती है तो ये देखा जाता है कि जो उम्मीदवार का विजयी अंतर है, वह उस एक मशीन में पड़े वोट से कम है। तो ऐसे में उस ईवीएम से जुड़ी स्लिप्स की गणना होती है।
अगर उम्मीदवार का विजयी अंतर काफी ज्यादा है तो ईवीएम को ही अलग कर दिया जाता है और उसके वोट नहीं गिने जाते हैं। यह सुनिश्चित किया जाता है कि उस ईवीएम में पड़े वोट विजयी अंतर से ज्यादा न हों। इसके बाद विजयी और हारे हुए उम्मीदवारों को फॉर्म-20 दिया जाता है।

सीईसी ने चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को स्पष्ट करते हुए कहा कि कई बार कहा जाता है कि ईवीएम के वोटों का मिलान वीवीपैट की स्लिप से कर लीजिए। हम वह भी करते हैं। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हर क्षेत्र में पांच वीवीपैट के वोटों का ईवीएम से मिलान किया जाएगा। 2019 से अब तक 67 हजार वीवीपैट के वोटों का मिलान किया गया है। इनमें 4.5 करोड़ स्लिप की गिनती हुई। 2019 के बाद से अब तक वीवीपैट और ईवीएम में एक भी वोट का फर्क नहीं दर्ज किया गया है।

सीईसी ने अपने जवाबों का अंत एक शायरी पढ़कर किया- "आरोप और इल्जामात का दौर चले, कोई गिला नहीं, झूठ के गुब्बारों को बुलंदी मिलें, कोई शिकवा नहीं, हर परिणाम में प्रमाण देते है, पर वो विना सबूत शक की नई दुनिया रौनक करते हैं और शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं!"

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