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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव हिंसा मामले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में केंद्रीय बलों की तैनाती होगी। कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेशों में दखल देने से इंकार किया। इस फैसले से ममता सरकार और राज्य चुनाव आयोग को झटका लगा है। हाईकोर्ट के केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश के खिलाफ अर्जी खारिज हो गई है। हाईकोर्ट के आदेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो, क्योंकि राज्य एक ही दिन में सभी सीटों पर चुनाव करा रहा है। इन परिस्थितियों में हम पाते हैं कि उच्च न्यायालय के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि चुनाव कराना हिंसा करने का लाइसेंस नहीं है। निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव जमीनी स्तर के लोकतंत्र की पहचान है। हिंसा के माहौल मे चुनाव नहीं कराया जा सकता। निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित किए जाने चाहिए। इससे पहले चुनाव हिंसा मामले में ममता सरकार और राज्य चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने 48 घंटे में हर जिले में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती का आदेश दिया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

13 जून को राज्य चुनाव आयोग सुरक्षा को लेकर असेसमेंट कर रहा था। 15 जून को हाईकोर्ट ने 48 घंटे मे अर्धसैनिक बलो को तैनात करने का आदेश दे दिया। जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि अभी वहां की क्या ग्राउंड सिचुएशन है। बंगाल सरकार ने कहा कि 8 जुलाई को चुनाव होना है। आज नाम वापस लेने की आखिरी तारीख है। कुल 189 संवेदनशील बूथ हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाए और कहा कि हाईकोर्ट के अर्धसैनिक बलों की तैनाती के आदेश से चुनाव आयोग कैसे प्रभावित होगा? सुरक्षा बल कहां से आएं, इससे आयोग को कोई लेना-देना नहीं, चाहे ये केंद्रीय बल हो या अन्य राज्यों के। आयोग को क्या परेशानी होगी? खुद चुनाव आयोग ने ही तो सुरक्षा बलों की मांग की है।

जस्टिस नागरत्ना ने राज्य चुनाव आयोग से कहा कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए, लेकिन आप परेशान कैसे हैं? आपने खुद राज्य से अनुरोध किया है। आपकी याचिका सुनवाई योग्य कैसे हैं। बल कहां से आएंगे, यह आपकी चिंता का विषय नहीं है।

पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनावों के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और राज्य चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, हाईकोर्ट ने 13 जून को निर्देश दिया था कि राज्य चुनाव आयोग को तुरंत केंद्रीय बलों की मांग करनी चाहिए और उन्हें विशेष रूप से उन सीटों पर तैनात करना चाहिए, जिन्हें मतदान निकाय पहले ही "संवेदनशील" घोषित कर चुका है। बाद में 15 जून को हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से अर्धसैनिक बलों की मांग करने में अपने कदम पीछे खींचने पर राज्य चुनाव आयोग की खिंचाई की और चुनाव निकाय को निर्देश दिया कि वह राज्य के सभी जिलों के लिए अर्धसैनिक बलों की तुरंत मांग करें और 48 घंटे के भीतर इस निर्देश को लागू करे, जिसके बाद राज्य चुनाव आयोग और राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

राज्य चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने सोमवार को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख किया था। मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि उनकी ओर से 13 जून और 15 जून के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसके बाद पीठ ने मामले को को मंगलवार को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी। हाईकोर्ट का आदेश भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी की याचिका पर पारित किया गया था। चुनाव आयोग की याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट के पास चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।

केंद्रीय बलों को तैनात करने का निर्देश साक्ष्य के नियमों की अनदेखी करने वाली समाचार पत्रों की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया था। कुछ समाचार पत्रों की रिपोर्टिंग के आधार पर और इस तथ्य का पता लगाए बिना कि क्या इस सीमा तक कोई वास्तविक शिकायत दर्ज की गई है, केंद्रीय बलों की तैनाती के निर्देश ने साक्ष्य के नियम के कानून की उपेक्षा की है। अदालत ने राज्य चुनाव आयोग की इस दलील को नज़रअंदाज़ कर दिया कि वह हिंसा संभावित क्षेत्रों की जांच कर रहा है। इस बात की भी अनदेखी की गई कि पंचायत चुनाव 2023 के तहत संबंधित क्षेत्रों की जांच करने और हिंसा संभावित क्षेत्रों को "संवेदनशील क्षेत्रों" के रूप में सीमांकित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।

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