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कोलकाता: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को उस जर्मन कार को रवाना किया, जिसमें सवार होकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस यहां अपने पैतृक आवास से 1941 में अंग्रेजों को चकमा देकर नजरबंदी से भागे थे। इस कार की मरम्मत की गई है। राष्ट्रपति इस कार में बैठे भी और कुछ दूरी तक सफर भी किया। नेताजी ने दिल्ली की ट्रेन पकड़ने को लेकर एलगिन रोड स्थित अपने आवास से भाग निकलने के लिए ‘ऑडी वांडरर डब्ल्यू 24’ कार का इस्तेमाल किया था। उन्होंने नयी दिल्ली जाने को लेकर झारखंड के गोमो रेलवे स्टेशन जाने के लिए इस कार का इस्तेमाल किया था। नेताजी के महानिष्क्रमण की 76वीं वषर्गांठ और यहां नेताजी रिसर्च ब्यूरो के 60 वें स्थापना वर्ष को मनाने के लिए इस कार को रवाना किया गया। राष्ट्रपति ने कार के बोनट पर झंडा लगाया। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और नेताजी के पोते एवं तृणमूल कांग्रेस सांसद सुगत बोस भी कार्यक्रम में मौजूद थे। मुखर्जी ने कहा, ‘‘कार को नया रूप देने के लिए मैं कृष्णा बोस और अन्य सदस्यों को बधाई देता हूं। इस कार का इस्तेमाल नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपने महानिष्क्रमण के लिए किया था।’’ उनके नजरबंदी से भागने की घटना को ‘महानिष्क्रमण’ के रूप में जाना जाता है। यह उनका घर छोड़ना, इसकी तैयारी करना और इसके परिणाम को बयां करता है।

राष्ट्रपति ने राजनीतिक क्षेत्र में नेताजी के जीवन को सर्वाधिक भावनात्मक बताते हुए कहा, ‘‘भारत से उनके लापता रहने के लंबे समय के अंतराल के बाद वह अब भी कई मुद्दों के केंद्र में हैं और कभी कभी कई विवादों में रहे हैं।’’ मुखर्जी ने सुगत के पिता शिशिर कुमार बोस के साहस के बारे में भी बात की जो कोलकता से नेताजी के भागने के दौरान उनके साथ कार में थे। उन्होंने बताया, ‘नेताजी ने उनसे (शिशिर से) 1940 में कहा कि ‘आमार एकटा कार कोरते पारबे’ (क्या आप मेरे लिए कुछ काम कर सकते हैं?) शिशिर बोस ने 2000 में अपना निधन होने तक नेताजी का काम करना नहीं रोका।’ जर्मन वांडरर सेडान 1937 की बनी है और ऑटोमोबाइल कंपनी ऑडी ने इसे 1941 का रूप दिया है। यह कार 1957 तक नियमित रूप से सुगत के पिता चलाया करते थे और बाद में इसे एनआरबी को दे दिया गया।

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