नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की वैधता से संबंधित एक मामले में कई नई याचिकाएं दायर होने पर नाराजगी व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यह भी संकेत दिया कि वह दिन के दौरान लंबित अनुसूचित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकती है, जिनकी सुनवाई पहले तीन न्यायाधीशों की पीठ कर चुकी है, क्योंकि यह दो न्यायाधीशों की पीठ बैठी है। सीजेआई ने कहा, 'याचिकाएं दायर करने की एक सीमा होती है। इतने सारे आईए (अंतरिम आवेदन) दायर किए गए हैं। हम शायद इस पर सुनवाई न कर पाएं।' उन्होंने कहा कि मार्च में तारीख दी जा सकती है।
सभी याचिकाएं 17 फरवरी को सुनवाई के लिए थींं सूचीबद्ध
सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर, 2024 के अपने आदेश के माध्यम से विभिन्न हिंदू पक्षों द्वारा दायर लगभग 18 मुकदमों में कार्यवाही को प्रभावी रूप से रोक दिया। इसके बाद शीर्ष अदालत ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को प्रभावी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया था।
सूचीबद्ध याचिकाओं में वाराणसी में ज्ञानवापी, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद सहित 10 मस्जिदों के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण की मांग की गई थी, जहां झड़पों में चार लोग मारे गए थे।
क्या कहता है पूजा स्थल कानून 1991
साल 1991 में देश में पूजा स्थल कानून (प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट) लागू किया गया था। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस कानून का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की सरकार में लागू किया गया था। जिस वक्त यह कानून लाया गया था, उस वक्त देश में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का मुद्दा गर्म था। ऐसे हालात भविष्य में न हो, इसके लिए ही यह कानून लाया गया था।