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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों के मामले में प्रवर्तन निदेशालय को फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय से पूछा क्या एजेंसी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपी को देने से इनकार करना उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है?

मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दस्तावेजों की आपूर्ति से संबंधित अपील पर सुनवाई के दौरान प्री-ट्रायल चरण में पीएमएलए का जिक्र हुआ। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, झारखंड के उनके समकक्ष हेमंत सोरेन, आप नेता मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता के कविता सहित शीर्ष राजनेताओं को इस कानून के तहत गिरफ्तार किए जाने के बाद कई हाई-प्रोफाइल मामलों में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) सुर्खियों में आ गया है।

बार एंड बेंच अनुसार, मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पूछा कि क्या आरोपी को सिर्फ तकनीकी आधार पर दस्तावेज देने से मना किया जा सकता है? जस्टिस अमानुल्लाह ने पूछा कि सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता?

ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने जवाब दिया, 'अगर आरोपी को पता है कि दस्तावेज हैं, तो वह पूछ सकता है, लेकिन अगर उसे नहीं पता और सिर्फ अनुमान है, तो वह इस पर जांच नहीं करवा सकता।

कैसे होगा दस्तावेजों पर भरोसा?

कोर्ट ने फिर पूछा कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं होगा? जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। साथ ही पीएमएलए मामले में, आप हजारों दस्तावेज प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन आप उनमें से केवल 50 पर ही भरोसा करते हैं। आरोपी को हर दस्तावेज याद नहीं हो सकता। फिर वह पूछ सकता है कि मेरे घर से जो भी दस्तावेज बरामद हुआ है, वह दे।

कोर्ट ने कहा- यह मिनटों का काम

कोर्ट के इस सवाल पर सरकारी वकील ने कहा कि आरोपी के पास दस्तावेजों की एक सूची है और जब तक यह "जरूरी" और "उचित" न हो, तब तक वह उन्हें नहीं मांग सकता। मान लीजिए कि वह हजारों पन्नों के दस्तावेजों के लिए आवेदन करता है, तो क्या करें? इसपर पीठ ने कहा कि यह मिनटों का मामला है, इसे आसानी से स्कैन किया जा सकता है।

इतने कठोर कैसे हो सकते हैं?

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि समय बदल रहा है। हमारा उद्देश्य न्याय करना है। क्या हम इतने कठोर हो जाएंगे कि व्यक्ति अभियोजन का सामना कर रहा है, लेकिन हम जाकर कहते हैं कि दस्तावेज सुरक्षित हैं? क्या यह न्याय होगा? ऐसे कई जघन्य मामले हैं, जिनमें जमानत दी जाती है, लेकिन आजकल मजिस्ट्रेट के मामलों में लोगों को जमानत नहीं मिल रही है। समय बदल रहा है। क्या हम इतने कठोर हो सकते हैं? अदालत ने कहा कि यदि कोई आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए दस्तावेजों पर निर्भर है, तो उसे दस्तावेज मांगने का अधिकार है।

वकील ने कहा- यह अधिकार नहीं

सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इसका विरोध किया। नहीं, ऐसा कोई अधिकार नहीं है... वह अदालत से इस पर गौर करने का अनुरोध कर सकते हैं। मान लीजिए कि ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है और यह स्पष्ट रूप से दोषसिद्धि का मामला है और वह केवल मुकदमे में देरी करना चाहता है, तो यह अधिकार नहीं हो सकता। इसके बाद अदालत ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है।

जमानत एक नियम है और जेल अपवाद

गौरतलब है कि कई हाई-प्रोफाइल विपक्षी नेताओं को भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत केंद्रीय एजेंसियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद पीएमएलए बार-बार जांच के दायरे में आया है। पिछले महीने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कथित सहयोगी प्रेम प्रकाश को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि मनीष सिसोदिया के फैसले पर भरोसा करते हुए हमने कहा है कि पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) में भी जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है।

जमानत के लिए शर्तें पूरी

पीठ ने पीएमएलए की धारा 45 का हवाला दिया जिसमें जमानत के लिए दोहरी शर्तों का उल्लेख है- प्रथम दृष्टया यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है। अदालत ने कहा कि धारा 45 में केवल इतना ही कहा गया है कि जमानत के लिए शर्तें पूरी होनी चाहिए।

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