नई दिल्ली: सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में भड़काऊ भाषण देने के आरोपी डॉ कफील खान पर योगी सरकार द्वारा एनएसए के तहत कार्रवाई पर की है। सीएए पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में कोर्ट द्वारा जमानत मिलने के बाद वह शुक्रवार को मथुरा जेल से रिहा होने वाले थे मगर उससे पहले ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उनके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई कर दी। यूपी सरकार की इस कार्रवाई को लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल खड़़े किए हैं।
डॉ कफील के बचाव में उतरे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बार-बार विरोधियों, दलितों और मुस्लिमों के खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई कर रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी पर पलटवार करते हुए कहा कि जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल सीएम करते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वो खुद खतरा है। शुक्रवार को ओवैसी ने एक ट्वीट किया और उसमें लिखा, 'उत्तर प्रदेश में बार-बार सताए हुए दलितों, मुस्लिमों और विरोधियों को टारगेट करने के लिए योगी उनके खिलाफ एनएसए का प्रयोग कर रहे हैं।
एक डॉक्टर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है। एक सीएम जो 'ठोक देंगे' और 'बोली नहीं तो गोली' जैसी भाषा का प्रयोग करते हैं असल में तो वो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।' ओवैसी ने अपने ट्वीट के जरिए कफील की रिहाई की मांग भी की है और एनएस को खत्म करने की भी मांग की है।
बता दें कि देशभर में सीएए के विरोध में एनएसए तामील किए जाने की यह पहली कार्यवाही है। मथुरा जेल में बंद डॉ कफील को सीजेएम कोर्ट से इस सप्ताह सोमवार को ही जमानत मिली थी, लेकिन उनकी रिहाई नहीं हुई थी। डॉ कफील ने 12 दिसंबर को एएमयू में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था। इसके बाद थाना सिविल लाइंस में उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। इस मामले में यूपी पुलिस की एसटीएफ ने उन्हें 29 जनवरी को मुबंई एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया था। वहां से उन्हें अलीगढ़ लाया गया था और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में मथुरा भेज दिया गया था।
क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून
रासुका यानी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980 देश की सुरक्षा के लिए सरकार को किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने की शक्ति देता है। यह अधिकार केंद्र और राज्य सरकार दोनों को समान रूप से मिले हैं। रासुका लगाकर किसी भी व्यक्ति को एक साल तक जेल में रखा जा सकता है, हालांकि तीन महीने से ज्यादा समय तक जेल में रखने के लिए एडवाइजरी बोर्ड की मंजूरी लेनी पड़ती है। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा होने और कानून व्यवस्था बिगड़ने की आशंका के आधार पर रासुका लगाया जा सकता है।