ताज़ा खबरें
भारतीयों के साथ अमेरिकी व्यवहार पर संसद में हंगामा, लोकसभा स्थगित
अमेरिका ने भारतीयों को किया डिपोर्ट - हथकड़ी लगा संसद पहुंचा विपक्ष
जनगणना में विलंब से सामाजिक 'नीतियों-कार्यक्रमों' को नुकसान: कांग्रेस
दिल्ली विधानसभा चुनाव में 60.44 फीसदी मतदान, आठ को आएंगे नतीजे
गाजा पर ट्रंप का प्रस्ताव अस्वीकार्य, मोदी सरकार रुख स्पष्ट करे: कांग्रेस
दिल्ली चुनाव: 11 एग्जिट पोल्स में से 9 में बीजेपी को बहुमत के आसार
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए शाम 5 बजे तक 57.70 फीसद वोट पड़े

नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए विधायक मुख्तार अंसारी को हिरासत में पैरोल देने के निचली अदालत के आदेश को आज (सोमवार) दरकिनार कर दिया है। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता ने अंसारी की पैरोल रद्द करने की मांग करने वाली निर्वाचन आयोग की याचिका को स्वीकार कर लिया। अदालत ने कहा, ‘(निर्वाचन आयोग की) याचिका को स्वीकार किया जाता है।’ उत्तरप्रदेश के विधायक अंसारी ने राज्य की मउ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए हाल ही में बसपा की सदस्यता ली है। अंसारी को चुनाव में प्रचार करने के लिए चार मार्च तक की हिरासत में पैरोल दी गई थी। हालांकि हाई कोर्ट ने निर्वाचन आयोग की याचिका पर गौर करते हुए 17 फरवरी को इस आदेश के पालन पर रोक लगा दी थी। आयोग की याचिका में अंसारी की पैरोल को इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई थी कि इससे वह वर्ष 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले के गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं। अंसारी पर इस मामले में मुकदमा चल रहा है। बाद में उत्तरप्रदेश सरकार, जांच एजेंसी और भाजपा विधायक हत्या मामले के शिकायतकर्ता ने भी उच्च न्यायालय में अंसारी की लखनउ जेल से रिहाई का विरोध किया। इन लोगों के दावे का अंसारी के वकील ने विरोध किया और कहा कि भारतीय निर्वाचन आयोग के दावे निराधार हैं और यह उस निर्वाचन क्षेत्र में उनकी आवाजाही को रोकने का आधार नहीं है, जहां से वे चुनाव लड़ रहे हैं।

यहां से तो कोई गवाह है ही नहीं। अंसारी का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद और सुधीर नंदराजोग ने कहा था किसी असाधारण स्थिति में ही निर्वाचन आयोग अदालत आ सकता है। उन्होंने कहा था, ‘उम्मीदवारों द्वारा चुनावों में स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से हिस्सा लिया जाना भी संविधान की मूल संरचना है।’ उन्होंने दावा किया था कि अंसारी को रिकॉर्ड चार बार मउ निर्वाचनक्षेत्र से चुना गया है और वह अदालत को शपथपत्र देने के लिए तैयार हैं कि वह उसके आदेश का उल्लंघन नहीं करेंगे। निर्वाचन आयोग का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील डी कृष्णन ने इस बात का कड़ा विरोध करते हुए कहा था कि आरोपी की रिहाई का मउ निर्वाचनक्षेत्र में चुनाव के स्वतंत्र और निष्पक्ष आयोजन पर सीधा असर पड़ सकता है। निर्वाचन आयोग ने आगे कहा था कि इस अदालत के फैसले के निर्वाचन आयोग की शक्ति के संदर्भ में दीर्घकालिक परिणाम होंगे। कृष्णन ने कहा था, ‘हमारे पास इस पैरोल का विरोध करने का आधार है।’ निचली अदालत ने 16 फरवरी को अंसारी को हिरासत में पैरोल के लिए मंजूरी दी थी। आरोपी ने राहत मांगते हुए निचली अदालत से कहा था कि वह दिसंबर 2005 से न्यायिक हिरासत में है और उसे चुनाव लड़ने के लिए पहले भी पैरोल दी गई थी। अंसारी के खिलाफ 40 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन अपराधों में हत्या और अपहरण शामिल हैं।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख