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नई दिल्ली: कर्नाटक शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने पर रोक के हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आज 8वें दिन भी बहस जारी रही। इस दौरान मुस्लिम छात्राओं के वकील दुष्यंत दवे ने कई तर्क देते हुए कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। इससे किसी दूसरे की धार्मिक आस्था या अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वहीं केस की सुनवाई कर रही बेंच के सदस्य जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि हाई कोर्ट को इस मामले में धर्म के ऐंगल से सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को इस मामले में नहीं पड़ना चाहिए था कि हिजाब पहनना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं।

वहीं इस मामले में दुष्यंत दवे ने आज तर्क देते हुए कांवड़ियों का भी जिक्र कर दिया। उन्होंने कहा कि आज कांवड़ यात्री म्यूजिक सिस्टम के साथ चलते हैं और भगवान शिव का नृत्य करते हैं। इसी तरह सभी को व्यक्तिगत तरीके से धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लेने का अधिकार है। आप किसी को ठेस नहीं पहुंचाते हैं, यही धार्मिक अधिकार की सीमा है।

उन्होंने कहा कि हर कोई भगवान सर्वशक्तिमान को अलग-अलग तरीकों से देखता है। जो लोग केरल में भगवान अयप्पा के पास जाते हैं, वे काली पोशाक में जाते हैं। हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन तर्कों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।

दुष्यंत दवे ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 'आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस' की कसौटी पर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की वैधता का परीक्षण करने में गलती की। उन्होंने कहा कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत यह एक संरक्षित अधिकार है और सार्वजनिक व्यवस्था को परेशान नहीं करता है। यह दूसरों की धार्मिक भावनाओं को आहत भी नहीं करता है ताकि उचित प्रतिबंध लगाया जा सके। अदालत ने बुधवार को भी इस केस की सुनवाई जारी रखने का फैसला लिया है। कल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता इस मामले में सरकार का पक्ष रखेंगे और उनकी दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से कोई फैसला दिया जा सकता है।

ड्रेस कोड पर बोले जस्टिस- यह असमानता से बचने का उपाय

सॉलिसिटर जनरल ने आज भी दुष्यंत दवे की दलीलों का खंडन करते हुए कहा कि यह मामला जरूरी धार्मिक प्रैक्टिस का नहीं है बल्कि यूनिफॉर्म ड्रेस कोड का है। यही नहीं इस दौरान दुष्यंत दवे ने तर्क दिया कि ड्रेस समाज के बहुसंख्यक वर्ग पर एक अनावश्यक बोझ है। कई लोगों के पास ड्रेस खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि असमानता से बचने के लिए ड्रेस कोड जरूरी है। ड्रेस कोड अमीरी या गरीबी के अंतर को नहीं दर्शाता।

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