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नई दिल्ली: कर्नाटक के शिक्षण संस्थानों में हाई कोर्ट की ओर से हिजाब पहनने पर रोक के फैसले को चुनौती देने वाली अर्जी पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत में जजों और वकीलों के दिलचस्प बहस देखने को मिली। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने केस की सुनवाई के दौरान एक वकील से कहा कि इस मामले में आप अतार्किक नहीं हो सकते। क्या राइट टू ड्रेस के साथ राइट टू अनड्रेस भी शामिल है? इस पर वकील देव दत्त कामत ने कहा, कोई भी स्कूल में अनड्रेस नहीं हो रहा। इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, 'समस्या यह है कि एक समुदाय के लोग हिजाब पहनने की मांग कर रहे हैं। वहीं दूसरे समुदाय के लोग ड्रेस कोड का पालन कर रहे हैं। दूसरे समुदायों के छात्र यह नहीं कह रहे हैं कि हम यह पहनना चाहते हैं और यह नहीं।'

याचिकाकर्ता की ओर से पेश देवदत्त कामत ने कहा, ये पहले से तय है कि अगर संवैधानिक मुद्दों का मामला हो तो इसे पांच जजों के संविधान पीठ को सुनना चाहिए। ये सिर्फ किसी कानून या नियम के उल्लंघन का मामला नहीं है, ये एक बेसिक सवाल को लेकर है कि क्या राज्य छात्रों के संवैधानिक अधिकार को देने में नाकाम रहा है।

कामत ने कहा, हम यहां यूनिफार्म कोड को चुनौती नहीं दे रहे हैं, चुनौती राज्य के हेड स्कॉर्फ को ना पहनने के निर्देश को है।

देवदत्त कामत ने कहा, इस मामले में मुख्य रूप से एक बुनियादी सवाल शामिल था कि क्या राज्य अनुच्छेद 19, 21 के तहत छात्र के लिए उचित सुविधा प्रदान करने के अपने दायित्व में विफल रहा है। बेंच ने टिप्पणी की थी कि क्या मौलिक अधिकारों के नाम पर कोई जींस पहन सकता है। यह ड्रेस के लिए नहीं कहा जा सकता। हिजाब बुर्का या जिलबाब नहीं है। यह वह मामला नहीं है। ये अलग मामला है। मौलिक अधिकारों और संस्थानों में अनुशासन के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।

कामत ने केंद्रीय विद्यालय के लिए 2012 के सर्कुलर का जिक्र किया। जब केंद्र में छात्राओं को यूनिफार्म के रंग का स्कॉर्फ पहनने की इजाजत दी जा सकती है, तो राज्य में क्यों नहीं।

कामत ने कहा कि केन्द्रीय विद्यालय भी कुछ उचित प्रतिबंध का प्रावधान करते हैं। क्या हमारी संवैधानिक व्यवस्था में एक छात्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 19, 21 और 25 के तहत अपने मौलिक अधिकारों को छोड़ दे? सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में उचित समायोजन के सिद्धांत को स्वीकार किया है। केन्द्रीय विद्यालय भी कुछ उचित प्रतिबंध का प्रावधान करते हैं। सर्कुलर का उल्लेख करते हुए कामत ने पाबंदियों का जिक्र किया।

कामत ने सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रगान के समय भी कोर्ट ने उन छात्रों को प्रार्थना सभा में खड़ा रहने लेकिन राष्ट्रगान गाने से छूट दी थी। जस्टिस धूलिया ने कहा, उसमें राष्ट्रगान का अपमान नहीं हुआ क्योंकि वे खड़े हो गए थे। यह मामला अलग पायदान पर है।

कामत ने कहा, केंद्रीय विद्यालयों में भी स्कॉर्फ पहनने की छूट है। हमने ये दलील कर्नाटक हाई कोर्ट में भी रखी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि केंद्रीय विद्यालयों का मसला राज्य सरकार के स्कूलों से अलग है।

दक्षिण अफ्रीका में कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कामत ने कहा कि केरल की एक छात्रा स्कूल में ड्रेस के साथ नथनी पहनना चाहती थी। वहां भी यही विवाद उठा. फिर कोर्ट ने फैसला दिया कि नोज रिंग यानी नथनी पहनना भले धार्मिक मान्यता का हिस्सा न ही लेकिन पहचान से जुड़ा है। इसलिए वहां की अदालत ने उसे मंजूरी दी. इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा, "दुनिया भर में महिलाएं ईयर रिंग पहनती हैं और वे नोज पिन भी पहन सकती हैं। लेकिन इसमें धार्मिक क्या है? मुझे नहीं लगता कि हमारे देश की तरह किसी और देश में इतनी विविधता है। अन्य सभी देशों में अपने नागरिकों के लिए एक समान कानून हैं।" जब कामत ने दक्षिण अफ्रीका के सुनाली मामले का हवाला देते हुए काफी देर उसकी ही चर्चा करते हुए दक्षिण अफ्रीका के संविधान के बारे में बताया रहे तो आखिरकार जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, मिस्टर कामत! अब अफ्रीका को पीछे छोड़कर भारत लौट आइए।

फिर देवदत्त कामत सीधे कर्नाटक हिजाब मामले पर आ गए। उन्‍होंने अमेरिका आदि देशों का उदाहरण दिया तो जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, "हर देश का अपना संविधान, कानून और नियम होते हैं। हम अमेरिका के संविधान का पालन नहीं कर सकते।" कामत द्वारा अमेरिका ,कनाडा जैसे देशों के उदहारण देने पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हम अमेरिका, कनाडा की तुलना अपने देश से कैसे करते हैं। हम बहुत रूढ़िवादी हैं। इस पर कामत ने कहा, लेकिन अच्छी चीजों का हमेशा स्वागत होना चाहिए। जस्टिस गुप्ता: जब हमारी अदालतें फैसला सुनाती हैं तो यह उनके सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर करता है!

कामत ने कहा कि सभी धर्म एक ही सत्य की व्याख्या है. क्योंकि भारतीय शास्त्रों में भी कहा गया है की एक: सद्विप्रा: बहुधा वदंति। फिर कामत ने ऑस्ट्रिया का एक फैसला उद्धृत किया तो जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि अब किसी और देश की चर्चा न करें। आप भारत में ही रहें। कामत: धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह नहीं है कि एक समुदाय के छात्र अपने धार्मिक चिन्ह का उपयोग नहीं करेंगे। स्कूल कमेटी को निर्णय लेने दिया जाय। लेकिन सरकार ऐसे आदेश जारी कर एक खास समुदाय को टारगेट कर रही है। जबकि अगर कोई संध्या वंदन, रुद्राक्ष, यज्ञोपवीत, कलावा पहन कर स्कूल जाता है, तो किसे आपत्ति है? जस्टिस गुप्ता ने कहा कि रुद्राक्ष, यज्ञोपवीत आदि बाहर से नहीं दिखता। वो सब यूनिफॉर्म के अंदर होते हैं। यूनिफॉर्म पर कोई असर नहीं दिखता। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यहां समस्या यह है कि एक विशेष समुदाय स्कॉर्फ पर जोर दे रहा है जबकि अन्य सभी समुदाय ड्रेस कोड का पालन कर रहे हैं। अन्य समुदायों के छात्र यह नहीं कह रहे हैं कि हम ये और वो पहनना चाहते हैं। कामत ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह नहीं है कि एक समुदाय के छात्र अपने धार्मिक चिन्ह का उपयोग नहीं करेंगे। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि भले ही संविधान में सेक्युलर यानी धर्म निरपेक्ष शब्द 1976 में जोड़ा गया है लेकिन हम उससे पहले भी सेक्युलर ही थे। इस पर कामत ने दलील दी कि अनुच्छेद 19 में यह माना गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में पोशाक भी शामिल है। ट्रांसजेंडर मामले का हवाला देते हुए कहा कि यह कहा गया है कि पोशाक अनुच्छेद 19 (1) (ए) का एक हिस्सा है। उन्‍होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मैं ड्रेस नहीं पहनूंगा.. लेकिन अगर ड्रेस के साथ मैं इसके साथ एक हेडस्कार्फ़ पहनता हूं..तो क्या यह ड्रेस कोड का उल्लंघन करेगा।"

जस्टिस गुप्ता ने कहा कि हमें बताएं कि अनुच्छेद 19 1 ए के दायरे में ड्रेस कहातक आता है. हम इसे मुद्दे को अतार्किक अंत तक नहीं ले जा सकते.. अगर आप कहते हैं कि पोशाक का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो कपड़े पहनने का अधिकार भी मौलिक अधिकार बन जाता है! महिलाएं सलवार कमीज पहनना चाहती हैं, पुरुष धोती कुर्ता पहनना चाहते हैं.. सभी परिधान के अधिकार के अंतर्गत आते हैं। इस पर कामत ने कहा कि यहां सवाल यह है कि क्या हेड स्कॉर्फ पहनने के अधिकार में कटौती की जा सकती है? इस पर जस्टिस गुप्ता: हम इसे अतार्किक छोर तक नहीं ले जा सकते.. अगर आप कहते हैं कि ड्रेस का अधिकार एक मौलिक अधिकार है तो अनड्रैस का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार बन जाता है! इस पर कामत ने कहा, " मैं यहां घिसे-पिटे तर्क देने के लिए नहीं हूं। मैं एक बात साबित कर रहा हूं। कोई भी हिजाब पहनने के लिए मजबूर नहीं कर रहा है, लेकिन अगर लड़की इसे पहनना चाहती है तो क्या राज्य इस पर रोक लगा सकता है।" इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि कोई उन्हें हिजाब पहनने से मना नहीं कर रहा... बल्कि सिर्फ यह स्कूल की बात है।

कामत ने कहा, "हाई कोर्ट ने जेल का उदाहरण देते हुए कहा कि कैदियों का कोई मौलिक अधिकार नहीं होता। मैं इस पर हैरान रह गया। कर्नाटक हाईकोर्ट का कहना है कि एक बार जब आप स्कूल जाते हैं तो आप शिक्षकों की कस्टडी में होते हैं लेकिन जेल में भी विचाराधीन कैदी वो कपड़े नहीं पहनते जो सजायाफ्ता पहनते हैं। वहां भी छूट है।" इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि वहां तो नियम है, विचाराधीन और सजा याफ्ता कैदियों की पहचान का, इसलिए सजायाफ्ता अलग यूनिफॉर्म पहनते हैं। सुप्रीम कोर्ट में कल भी हिजाब मामले पर सुनवाई जारी रहेगी। यह सुनवाई कल 11.30 बजे से होगी।

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