बेंगलुरु: पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक के. चंद्रशेखर दशकों से उच्चतम न्यायालय के फैसले का बेहद बेकरारी से इंतजार कर रहे थे, लेकिन तनाव, प्रताड़ना और हजारों दिक्कतों से भरे ढाई दशक काटने के बाद जब शुक्रवार को उनके पक्ष में फैसला आया तो वह सुनने के लिए नहीं थे। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी कांड पर अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 1994 के जासूसी मामले में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को गैरजरूरी तौर पर गिरफ्तार किया और सताया गया और मानसिक क्रूरता से गुजारा गया।
उच्चतम न्यायालय ने नारायणन को मानसिक क्रूरता के एवज में 50 लाख रूपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था। इसरो जासूसी कांड के छह आरोपियों में नारायणन के साथ चंद्रशेखर भी शामिल थे। उच्चतम न्यायालय का दीर्घप्रतीक्षित फैसला शुक्रवार को 11 बजे आया, लेकिन तब तक चंद्रशेखर कोमा में जा चुके थे। डबडबाई आंखों से उनकी पत्नी केजे विजयम्मा ने मंगलवार को बताया, वह शुक्रवार को सुबह सवा सात बजे कोमा में चले गए और रविवार को कोलंबिया एशिया अस्पताल में रात 8.40 बजे अंतिम सांस ली।
उन्होंने बताया कि सुबह से ही वह उच्चतम न्यायालय के फैसले की बाट जोह रहे थे। वह जानते थे कि आज फैसला आएगा और उन्हें विश्वास था कि सभी लोगों की जीत होगी। लेकिन दो दशक से ज्यादा के लंबे इंतजार के बाद जब फैसला आया तो सुनने के लिए वह नहीं थे। चंद्रशेखर ने भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लोवकोस्मोस में काम किया।