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मुंबई: बंबई हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिये उकसाने के कथित मामले में गिरफ्तार रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब को तत्काल कोई राहत न देते हुए उनकी अंतरिम जमानत याचिका पर फैसला शनिवार को सुरक्षित रख लिया। अर्नब को पुलिस ने चार नवंबर को गिरफ्तार किया था। अदालत ने हालांकि कहा कि इस बीच नियमित जमानत के लिये वह सत्र अदालत का रुख कर सकते हैं। उधर रायगढ़ सत्र अदालत ने कहा कि गोस्वामी व दो अन्य आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजे जाने से इंकार संबंधी मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ पुलिस की याचिका पर वह नौ नवंबर को फैसला सुनाएगी।

न्यायमूर्ति एस एस शिंदे और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि शनिवार को ही आदेश पारित करना संभव नहीं होगा। गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे ने “अंतरिम राहत” के तौर पर उनकी रिहाई का अनुरोध किया था लेकिन हाई कोर्ट ने ऐसा करने में असमर्थता व्यक्त की।

 

अदालत ने कहा, “हम यथाशीघ्र आदेश पारित करेंगे। इस मामले के लंबित रहने से आप (गोस्वामी) या अन्य आरोपियों पर नियमित जमानत के लिये संबंधित निचली अदालत जाने पर रोक नहीं है।” उसने कहा कि अगर जमानत याचिका दायर की जाती है तो सत्र अदालत उस पर चार दिन के अंदर फैसला करेगी।

हाई कोर्ट टीवी पत्रकार गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों- फिरोज शेख और नितीश सारदा- की अंतरिम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जो उन्होंने अपनी “अवैध गिरफ्तारी” को चुनौती देते हुए दायर की हैं।

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग पुलिस ने तीनों को चार नवंबर को आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइनर अन्वय नाइक और उनकी मां की 2018 में खुदकुशी के सिलसिले में गिरफ्तार किया था। दोनों ने कथित तौर पर आरोपियों की कंपनियों द्वारा बकाए का भुगतान नहीं किये जाने पर खुदकुशी कर ली थी। याचिका में जांच को रोकने और एफआईआर को रद्द किये जाने की भी मांग की गई है।

अदालत ने शनिवार को सिर्फ अंतरिम जमानत पर दलीलें सुनीं और कहा कि वह दिवाली के अवकाश के बाद 10 दिसंबर को एफआईआर रद्द करने संबंधी याचिका पर सुनवाई करेगी।

अपने लोअर परेल स्थित घर से बुधवार को हुई गिरफ्तारी के बाद गोस्वामी को अलीबाग ले जाया गया जहां मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें व दो अन्य आरोपियों को 18 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें पुलिस हिरासत में सौंपे जाने से इंकार के बाद अलीबाग पुलिस ने रायगढ़ जिला अदालत में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। जिला अदालत ने शनिवार को कहा कि वह इस याचिका पर नौ नवंबर को सुनवाई करेगी।

गोस्वामी को फिलहाल एक स्थानीय विद्यालय में रखा गया है जिसे अलीबाग जेल के लिये कोविड-19 केंद्र बनाया गया है।

उच्च न्यायालय ने शनिवार को दलीलें सुनते हुए यह जानना चाहा कि याचिकाकर्ता ने पहले निचली अदालत में जमानत के लिये याचिका दायर क्यों नहीं की।

न्यायमूर्ति शिंदे ने कहा, “उच्च न्यायालय पर पहले से ही नियमित जमानत याचिकाओं का भार है। हम सत्र अदालत के प्राधिकार को कमतर नहीं करना चाहते जो नियमित जमानत याचिकाओं पर सुनवाई में सक्षम है।”

गोस्वामी ने अपनी जमानत याचिका में आरोप लगाया कि गिरफ्तारी के दौरान उन पर और परिजनों पर पुलिस द्वारा हमला किया गया और उनके बाएं हाथ पर छह इंच का घाव हुआ है और उनकी रीढ़ की हड्डी में भी गंभीर चोट आई है। उनके वकील ने हालांकि जिरह के दौरान ये आरोप नहीं उठाए।

महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने कहा कि पूर्व में बंद हो चुके इस मामले को फिर से खोलने के लिये नई सामग्री थी।

देसाई ने कहा कि आरोपियों को पहले सत्र अदालत के पास जाना चाहिए था और अगर वे ऐसा करते , तो “पुलिस स्थगन नहीं मांगती और सुनवाई लंबी नहीं होती।”

देसाई ने यह दलील भी दी कि सिर्फ इसलिये कि अलीबाग पुलिस ने ‘ए’ समरी रिपोर्ट, मामले को बंद करते हुए दायर की थी, यह मतलब नहीं होता कि मामले में कोई नई जांच नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा, “ए समरी का यह मतलब नहीं होता कि अपराध नहीं हुआ या मामला गलत है। इसका सिर्फ यह मतलब है कि जांच पूरी नहीं हो सकी। यह एक मामला है जिसमें फिर से जांच हो रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि आगे की जांच करने के लिये मजिस्ट्रेट से मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

 

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