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मुंबई: मुंबई के भिंडी बाजार  इलाके में गुरुवार सुबह करीब साढ़े आठ बजे पांच मंजिला रिहाइशी इमारत गिर गई। इस हादसे में 19 लोगों की मौत हो गई, जबकि छह दमकल कर्मियों सहित 34 लोग घायल हुए हैं। मलबे में अब भी 10 से अधिक लोगों के दबे होने की आशंका है। इस बीच, सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है।दमकल विभाग के अधिकारियों ने बताया कि भिंडी बाजार के पकमोडिया रोड स्थित हुसैनी नामक यह इमारत करीब 117 साल पुरानी थी। इमारत के भूतल पर छह गोदाम थे और ऊपर की मंजिलों में हादसे के वक्त 12 परिवार रह रहे थे। अब तक 16 लोगों की मौत हो चुकी है। नजदीकी जे जे अस्पताल के डॉक्टर टीटी लाहणे ने कहा कि पांच घायलों की स्थिति गंभीर बनी हुई है। उन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया है। अधिकारियों के मुताबिक सुबह साढ़े आठ बजे इमारत अचानक ढही। घटना की सूचना मिलते ही दमकल विभाग के 120 कर्मचारी और एनडीआरएफ के 90 जवान घटनास्थल पर राहत और बचाव कार्य के लिए पहुंचे। उन्होंने कहा, बचावकर्मी नीचे तक पहुंचने के लिए मलबे के ढेर पर चढ़कर कंक्रीट की स्लैब को हथौड़े से तोड़ रहे हैं।

क्रेन एवं बुलडोजरों को मलबा हटाने के लिए लगाया गया है। स्थानीय निवासी भी मलबा हटाने में मदद कर रहे हैं। पुलिस उपायुक्त (जोन एक) मनोज शर्मा ने बताया, मलबे में फंसे लोगों की सही संख्या के बारे में तत्काल जानकारी नहीं है। महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सौरभ देसाई ने बताया,हमारी प्राथमिकता ध्वस्त हुई इमारत के मलबे में फंसे हुए लोगों को यथाशीघ्र बाहर निकालने की है। बचाव कार्य पूरा होने पर इमारत गिरने के कारणों का पता लगा दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। 

दक्षिण मुंबई के भिंडी बाजार स्थित हुसैनी इमारत अगर सुबह साढ़े आठ बजे की बजाय 20 मिनट बाद नौ बजे जमींदोज होती तो कम से कम 50 बच्चों की जिंदगी दांव पर लग जाती। स्थानीय लोगों के मुताबिक इस इमारत में छोटे बच्चों का प्ले स्कूल चलता था, जिसमें 50 से अधिक  बच्चे पढ़ते हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि इमारत के भूतल पर छह गोदाम थे। जबकि दूसरी मंजिल पर छोटे बच्चों का प्ले स्कूल था। स्कूल नौ बजे तक खुलता है। उन्होंने कहा, चूंकि इमारत को प्रशासन ने खतरनाक ढांचा घोषित कर दिया था इसके बावजूद इमारत में न केवल परिवार रहते थे बल्कि गोदाम से लेकर स्कूल तक संचालित हो रहे थे। छह साल पहले चेताया: मीडिया में आए कथित दस्तावेजों के मुताबिक 28 मार्च 2011 के पत्र में म्हाडा के इंजीनियर ने इमारत को खतरनाक घोषित कर इसे खाली करने का निर्देशया था। लेकिन लोगों ने इसपर ध्यान नहीं दिया। प्रशासन ने भी इस इमारत को खाली कराने की कार्रवाई नहीं की। इलाके के विकास की योजना: महाराष्ट्र के आवासीय राज्यमंत्री प्रकाश मेहता ने स्थानीय लोगों को ही हादसे के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि सरकार ने इस पूरे इलाके के पुन:निर्माण की योजना को 2011 में ही सभी मंजूरी दी जा चुकी थी। पुन: विकास की जिम्मेदारी सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट को दी गई थी। इसके बावजूद लोग जर्जर इमारतों को खाली नहीं कर रहे हैं। जबकि लोगों का कहना है कि वे सरकार की योजनाओं की गति को लेकर आशंकित हैं। 

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