(आशु सक्सेना): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुह प्रदेश गुजरात के विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान अगले सप्ताह होना तय है। संभवत: सूबे में आचार संहिता लागू होने से पहले भाजपा के स्टार प्रचार पीएम मोदी का सरकारी खर्चे पर आखिरी चुनावी कार्यक्रम का समापन देश के पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की जयंती पर 31 अक्टूबर को होगा। इत्तफाक से यह दिन देश की पहली महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंद्रिरा गांधी की शाहदत का दिन भी है। भाजपा के स्टार प्रचार पीएम मोदी का राजनीतिक भविष्य काफी हद तक गुजरात विधानसभा चुनाव नतीज़ों पर टिका हुआ है।
पीएम मोदी की चिंता यह है कि केंद्र की बागड़ोर संभालने के बाद हुए सूबे के पहले विधानसभा चुनाव में उनके गृहराज्य के लोगों ने उन्हें बमुश्किल बहुमत के जादुई आंकड़े के कगार पर ला खड़ा किया है। यदि इस बार भी पीएम मोदी अपने सूबे के लोगों की नाराज़गी दूर करने में नाकामयाब रहे, तो इसका नतीज़ा 27 साल बाद सूबे से ना सिर्फ भाजपा की सत्ता से विदाई होगा बल्कि पीएम मोदी के लिए 2024 की राह भी मुश्किल कर देगा।
भाजपा के स्टार प्रचार पीएम मोदी ने नवंबर 2001 में पहली बार संसदीय राजनीति में कदम रखा था और भाजपा के हाथ से खिसकते नज़र आ रहे 'गुजरात' सूबे की बतौर 'मुख्यमंत्री' बागड़ोर संभाली थी। सूबे के सीएम नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2022 में सूबे की तीन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में राजकोट विधानसभा क्षेत्र से मात्र 15 हजार मतों से जीत दर्ज की थी, अन्य दो सीट कांग्रेस के खाते में गयी थी। चुनाव नतीज़े 24 फरवरी 2002 को घोषित किये गए थे। संसदीय लोकतंत्र में इस तारीख के बाद उन्होंने हर चुनाव में विजय पताका लहरायी है। इस साल के शुरू में हुए यूपी विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान 24 फरवरी को उन्होंने अपनी पहली चुनावी जीत को याद भी किया था। सीएम मोदी से पीएम मोदी तक की पहुंचने की अपनी दो दशक से ज्यादा की चुनावी यात्रा में अब वह तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी के मुकाम पर पहुंच चुके है। उस मुकाम को हासिल करने के लिए पीएम मोदी के लिए गुजरात में 'डबल इंजन' की सरकार की वापसी करवाना बेहद ज़रूरी है।
गुजरात के निर्वाचित सीएम मोदी को अपनी पहली सबसे बड़ी चुनौती का सामना 27 फरवरी को 'गोधरा कांड़' के बाद करना पड़ा था। इस घटना के बाद सूबे में क्या क्या हुआ, उन कहानियों को दोहराने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन इस घटना के बाद सूबे का राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदल गया। हिंदू मतों के धुव्रीकरण के चलते कांग्रेस पिछले 27 सालों से सत्ता में वापसी की राह देख रही है। पिछले चुनाव तक सूबे मे कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला था। लिहाजा हिंदू मतों के बहुमत का भाजपा की ओर एकतरफा झुकाव होने के चलते उसकी सत्ता में वापसी होती रही। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने चुनावी मुकाबले में शामिल होकर भाजपा के वोट बैंक हिंदुओं में विभाजन की संभावना प्रवल कर दी है।
सूबे में उभर रहे इन नये समीकरणों से वाकिफ भाजपा के स्टार प्रचार पीएम मोदी ने विधानसभा चुनाव से पहले धार्मिक भावनाओं को उभारने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी है। पीएम मोदी ने दीपावली के पर्व से पहले देव भूमि उत्तराखंड़ और हिमाचल के दौरे किये। इस दौरान पीएम मोदी के धार्मिक अनुष्ठानों का सीधा प्रसारण हुआ। दीपावली की पूर्व संध्या पर अयोध्या में आयोजित दीप उत्सव में भी शिरकत की। इस सबका गुजरात के चुनावी समीकरणों पर क्या असर रहा, यह तो चुनाव नतीज़ों के बाद तय होगा। फिलहाल इस दौरान पीएम मोदी के परिधान और धार्मिक भाषण ज़रूर चर्चा का विषय बने हुए है। वहीं दूसरी और आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल खुद को पीएम मोदी से बड़ा हिंदू साबित करने की कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
खुद को हनुमान भक्त घोषित करने वाले सीएम केजरीवाल यूं तो गुजरात मे अपनी चुनावी सभाओं में बुर्जुगों को तीर्थयात्रा के वादे के तहत अयोध्या में रामलला के दर्शन कराने का लगातार वादा कर रही रहे थे। लेकिन दीपावली पर्व के बाद भारतीय नोटों पर लक्ष्मी गणेश जी की तस्वीर छापने की बात कह कर उन्होंने हिंदू मतों के धुव्रीकरण की रणनीति के तहत एक नया शगूफा छोड़ दिया है।
आपको याद दिला दें कि 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में पहली बार आप ने 70 सीट वाली विधानसभा में 29 सीट जीत कर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने का करिश्मा कर दिखाया था। इस चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचार और पीएम पद के दावेदार गुजरात के सीएम मोदी ने चुनाव प्रचार किया था और पार्टी 32 सीट के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी थी। लेकिन बहुमत से पीछे रह गयी थी। उस वक्त कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने की रणनीति के तहत आप को अपने आठ विधायकों का बिना शर्त समर्थन दिया था और अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से पहली बार मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। लेकिन 49 दिन बाद जनमत संग्रह का हवाला देते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस समर्थित सरकार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद दिल्ली राष्ट्रपति शासन लग गया था।
उसके बाद 2015 में दिल्ली विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए थे। इस चुनाव में पीएम मोदी ने जमकर चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने अपनी चुनावी सभाओं में कहा था कि दिल्ली 'मिनी इंडिया' है और यहां के नतीज़ों का संदेश पूरे देश में जाता है। इस चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। पिछले चुनाव में सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी भाजपा तीन सीट पर सिमट गयी थी। वहीं कांग्रेस शून्य पर पहुंच गयी थी। वहीं सीएम केजरीवाल लगातार तीसरी बार दिल्ली में सत्ता सुख भोग रहे हैं।
यूं तो केजरीवाल ने 2014 में वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़कर भाजपा के स्टार प्रचार पीएम नरेंद्र मोदी को पहली बार सीधी चुनौती दी थी। लेकिन अब आठ साल बाद उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ उनके गृह प्रदेश में ताल ठोकी है। दिलचस्प पहलू यह है कि इस मुकाबले को वह कौन सच्चा 'हिंदू' पर केंद्रित कर रहे है। गुजरात की एक जनसभा में केजरीवाल ने खुद पर हनुमान जी की विशेष कृपा की बात कहते हुए सूबे की सत्तारूढ पार्टी के लोगों को कंस की औलादें बातते हुए पीएम मोदी के मां गंगा ने बुलाया है वाले अंदाज में कहा था कि भगवान ने उन्हें खास मकसद से कंस के वंशजों का विनाश करने के लिए इस धरती पर भेजा है। दीपावली पर जब पीएम मोदी के मुकाबले में उनको अपना हिंदुत्व कमजोर पड़ता नज़र आया, तब केजरीवाल ने हिंदुत्व की गेंद सीधे प्रधानमंत्री के पाले में डालते हुए भारतीय करेंसी यानी नोटों पर लक्ष्मी और गणेश की फ़ोटो छापने की मांग कर डाली। इस संबंध में सीएम केजरीवाल ने पीएम मोदी को एक ख़त भी लिखा है।
बहरहाल गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों की हालांकि अभी घोषणा नहीं की गयी है, लेकिन यह तय माना जा रहा है कि सूबे के चुनाव नतीज़े हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीज़ों के साथ 8 दिसंबर को ही सामने आएंगे। फिलहाल तक सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस मुकाबले में काफी कमज़ोर नज़र आ रही है। कांग्रेस में हाल ही में हुए नेतृत्व परिवर्तन और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का चुनाव नतीज़ों पर क्या असर रहा, यह तो चुनाव नतीज़ों के बाद ही तय होगा। फिलहाल सूबे का जो राजनीतिक परिदृश्य है, उसमें आप और भाजपा के बीच हिंदुत्व के मुद्दे पर सीधा मुकाबला नज़र आ रहा है। आप अगर भाजपा के कौर वोट बैंक हिंदू मतदाताओं में सेंध लगाने में कामयाब रही, तो पीएम मोदी के लिए डबल इंजन की सरकार की वापसी कराना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में त्रिशंकू विधानसभा की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। चूंकि त्रिशंकू विधानसभा में आप और कांग्रेस का एक मंच पर आना 2024 के समीकरणों के लिहाज से फिलहाल संभव प्रतीत नहीं होता है। इस परिदृश्य के मद्देनज़र सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होगा। पीएम मोदी के गृह सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाना निश्चित ही उनके राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा देगा।