(आशु सक्सेना) पिछले दिनों वीवीआईपी कल्चर खत्म करने की मुहिम के तहत कार से लाल बत्ती हटाने का मुद्दा काफी चर्चित रहा था। मोदी सरकार की एक खूबी है कि ऐसे फैसलों को "इवेंट" की शक्ल दे देती है। हांलाकि लाल बत्ती हटाना सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लागू करने की अनिवार्यता थी। फिर भी केंद्र और प्रदेशों के मंत्रियों ने खुद उस बत्ती को हटाते हुए फोटो खिंचवाई और यह मीड़िया की सुर्खियां भी बनीं। दरअसल मोदी सरकार का यह "इवेंट" आज "जनादेश" ने प्रसंगवश याद किया है। सवाल यह है कि वीवीआईपी कल्चर खत्म करना क्या सिर्फ कार से लाल बत्ती हटाने तक सीमित है या फिर उसे खत्म करने के लिए सरकार को जनहित में कुछ ओर बड़े फैसले करने होंगे। यूँ तो देश के हर शहर का नागरिक वीआईपी रूट की परंपरा से वाकिफ होगा। लेकिन पीएम मोदी के "मिनी इंड़िया" यानि दिल्ली के लोगों को इस परंपरा से सबसे ज्यादा दो चार होना होता है। जनादेश आज वीवीआईपी कल्चर यानि वीआईपी रूट लगने से दिल्ली की बसों में सफर करने वाले लोगों को होने वाली परेशानियों की कहानी सुनाने जा रहा है। यूँ तो दिल्ली में वीआईपी रूट लगने की प्रथा पुरानी है।
लेकिन मोदी सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद इस प्रथा से लोगों की समस्या में कुछ ज़्यादा इज़ाफा हुआ है। किसी भी चैराहे पर अचानक ट्रैफिक पुलिस का डियूटी पर तैनात जवान बस चालाक को उसके रूट पर जाने से रोकते हुए आगे जाने का इशारा कर देता है। बस चालाक इस सरकारी आदेश का पालन करते हुए रूट बदल देता है। बस चालक के अचानक रूट बदलते ही बस में सवार लोगों की चिंता बढ़ जाती है कि उन्हें अब कहा छोड़ा जाएगा। इस बाबत बस चालक से पूछने पर एक ही जबाब मिलता है कि आगे जहां से पुलिस वाले जाने देंगे। हुआ यूँ कि सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए पार्टी कार्यालय अशोक रोड़ आना था। लिहाजा वीआईपी रूट प्रथा के तहत फिरोजशाह रोड़ के रूट से जाने वाली बसों को मंड़ी हाउस से कनाट प्लेस की ओर जाने का निर्देश दिया गया। फिरोजशाह रोड़ ना जाते देख बस नंबर 740 में सवार एक महिला ने बस चालक के पास जाकर पूछा कि क्या यह बस गुरूद्वारा रकाबगंज नही जाएगी। चालक ने उस महिला को कोई संतोषजनक जबाव नही दिया। इत्तेफाक से इस बस मे हम भी सवार थे और हमें रायसीना रोड़ स्थित नेशनल मीडिया सेंटर जाना था। लिहाजा हमने भी बस चालक से जानना चाहा कि क्या वह कृषि भवन की तरफ जाएगा। चालक ने कोई जबाब नही दिया, तब हमने उससे पुछा कि वह अब हमें कहा छोड़ेगा। तब तक पुलिस वालों ने इस बस को राजीव चैक तक पहुंचा दिया था। इस दौरान बातचीत में रकाबगंज जाने वाली महिला ने अपनी व्यथा का ज़िक्र करते हुए बताया कि उसे 740 नंबर की एक बस से पहले भी यह कह कर मंड़ी हाउस पर उतारा गया था कि आगे रास्ता बंद है, यह बस उधर नही जाएगी। अब यह बस भी रास्ता बदल चुकी है। बहरहाल बस रूट का ज़िक्र इसलिए किया ताकि आपको बताया जा सके कि पीएम के मूवमेंट पर फिरोजशाह रोड़ को बंद करने का कोई औचित्य नही है। बस नंबर 740 फिरोजशाह रोड़ से जनपथ को छूती हुई राजेन्द्र प्रसाद रोड़ से कृषि भवन, रेल भवन होती हुई जाती है। हां यह बस अशोक रोड़ को क्रास करती है, लेकिन प्रधानमंत्री के रूट को बाधित नही करती है। इसके बावजूद पिछले तीन साल से यह व्यवस्था कायम है। प्रधानमंत्री कार्यालय या निवास से भाजपा कार्यालय तक आने के लिए पीएम का काफिला किसी रास्ते से फिरोजशाह रोड़ से डा. राजेंद्र प्रसाद रोड़ होकर जाने वाले रास्ते से नही गुजरता है, और इस रूट पर चलने वाला ट्रैफिक भी पीएम के काफिले को कहीं पर भी बाधित करता है। फिर इस रूट को मोदी के मूवमेंट पर क्यों बंद किया जाता है। देखने में आया है कि पीएम मोदी की चौकसी पिछले पीएम की अपेक्षा कुछ ज्यादा है। बहरहाल अब सवाल यह नही है कि वीआईपी रूट वीआईपी कल्चर के दायरे में आता है या नही। सवाल यह है कि ऐसा करते वक्त ट्रैफिक पुलिस को यह नही बताना चाहिए कि उसने वैकल्पिक रास्ता कौन सा तय किया है। पिछले तीन साल से मंड़ी हाउस से फिरोजशाह रोड़ का रास्ता बंद करना आम बात है और आए दिन लोगों इस समस्या से दो चार होना होता है। कई बार तो अचानक रास्ता बंद होने के बाद जाम लग जाता है और इसका असर लगभग पूरी दिल्ली पर पड़ता है। आज गनीमत थी कि बस चालक ने राजीव चौक से संसद मार्ग का रास्ता पकड़ लिया और गुश्द्वारा रकाबगंज जाने वाली महिला ने उस वक्त राहत महसूस की जब उस बस ने चुनाव आयोग के सामने से अशोक रोड़ होते हुए गोल डाकखाने का रास्ता पकड़ा। बस चालक ने हमें भी "पटेल चौक" पर "अशोक रोड़" के मुहाने पर उतार दिया। यहां ठीक ठाक तादाद में ट्रैफिक पुलिस तैनात थी। हमने एक सिपाही से पूछा, क्यों डाईवरट किया गया है। वह सिपाही यह कहता हुआ आगे बढ़ गया कि पीएम मूवमेंट है। उस सिपाही के हाथ में एक मशीन थी और वह चालन काटने की प्राथमिक डियूटी पर था। लिहाजा हमने वहां खडे़ दूसरे जवान से पूछा कि क्या रूट डाईवरट करते वक्त पुलिस को वैकल्पिक रास्ता नही बताना चाहिए। इस पर उस सिपाही का जबाब था कि बस वाले खुद रास्ता तय कर लेते है। मैंने उस पुलिस वाले से कहा कि क्या आपका यह बयान मैं आपकी फोटो के साथ छाप सकता हूॅ। नेम प्लेट पर दर्ज कृष्ण नाम के इस सिपाही ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि किसी पुलिस वाले की फोटो लेते मत दिख जाना, नही तो अंदर होगे। बहरहाल यह कहानी इसलिए सुनायी कि क्या वीआईपी रूट की परंपरा वीआईपी कल्चर नही है। क्या सरकार को कार से लाल बत्ती हटाने के प्रचार की जगह इस व्यवस्था से लोगों को होने वाली परेशानी दूर करने के उपाय पर ध्यान केंद्रीत नही करना चाहिए। देशभर में ऐसी किसी व्यवस्था के लागू होने से पहले प्रयोग के तौर उसकी शुरूआत पीएम मोदी के मिनी इंडिया यानि दिल्ली के लोगों को इस समस्या से निजात दिलाकर की जाये तो घिरे धीरे यह सुव्यवस्था समूचे देश में सफाई अभियान की तरह पहुँच जाएगी।