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(आशु सक्सेना) राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष ने भाजपा के दलित प्रत्याशी रामनाथ कोविद के खिलाफ देश की पहली लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी दलित महिला उम्मीदवार मीरा कुमार को चुनाव मैदान में उतार कर राजनीति की बिसात पर भाजपा को जबरदस्त शह दी है। हालांकि राजनीति की बिसात पर इस खेल में मात विपक्ष की होनी तय मानी जा रही है। लेकिन दलित महिला उम्मीदवार उतार कर विपक्ष ने भाजपा को महिला विरोधी साबित करने का मजबूत हथियार अपने हाथ में ले लिया है। इस चुनाव से पहले भाजपा ने 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में जोरशोर से ताल ठोकी थी। उस वक्त भाजपा ने उप राष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत को राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए की महिला उम्मीदवार प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के सामने एनडीए प्रत्याशी बनाया था। इन दोनों ही चुनावों में भाजपा की भूमिका महिला विरोधी नजर आ रही है। जहां तक दलित व्यक्ति को सम्मान देने का सवाल है। उसे विपक्ष ने यह कह कर खारिज कर दिया कि दलित वर्ग को देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने का अवसर पहले भी मिल चुका है। 1997 में केंद्र की सत्ता पर संयुक्त मोर्चा काबिज था। उस वक्त राष्ट्रपति पद के लिए वामपंथी दलों की पहल पर नौकरशाह से राजनीतिज्ञ बने दलित वर्ग के केआर नारायणन का नाम स्वाभाविक रूप से उभरा। वह भाजपा समेत लगभग सभी राजनीतिक दलों के समर्थित उम्मीदवार थे। उनके खिलाफ नौकरशाह टीएन शेषन चुनाव लडे़ थै। जहां तक उनके राजनीतिक कद का सवाल है तो उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर राजनीति में आने का फैसला किया था।

1984 में उन्होंने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और राजीव गांधी मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। वह लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव जीते। प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नही किया, तब उन्हें वामपंथी दलो की पहल पर 1992 में उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया और शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया गया था। इस चुनाव में उनकी जीत हुई थी, लिहाजा 1997 के राष्ट्रपति चुनाव में दलित वर्ग से होने के नाते के आर नारायण देश के सर्बोच्च पद के लिए स्वाभाविक पसंद थे और वह इस वर्ग के पहले व्यक्ति के तौर पर राष्ट्रपति भवन की शोभा बने। यूं तो रामनाथ कोविद पेशे से वकील और राजनीतिज्ञ दोनों हैं। वह एक बार लोकसभा और एक बार विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। हां भाजपा ने उन्हें दो बार राज्यसभा सांसद बनाया और मोदी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था। इस लिहाज से राजनीतिक दृष्टि से केआर नारायण का कद कोविद से बेहतर माना जा सकता है। आजादी के इतिहास में यह पहला मौका है, जब भाजपा का प्रत्याशी राष्ट्रपति भवन में पहुंचेगा। लेकिन चुनाव में भाजपा को राजनीतिक द्ष्टि से ज्यादा कुछ हासिल होने वाला नही है। सत्तारूढ़ भाजपा ने विपक्ष के साथ किसी भी व्यक्ति के नाम पर विचार विमर्श किये बगैर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की एकतरफा घोषणा कर दी। लिहाजा विपक्ष का उम्मीदवार का चुनाव मैदान में आना लगभग तय हो गया था। विपक्ष ने मीरा कुमार को चुनाव मैदान में उतर कर भाजपा के दलित कार्ड का बखूबी जबाव दिया है। यह चुनाव अब दलित वर्ग में महिला बनाम पुरूष बन गया है। मीरा कुमार का राजनीतिक कद भी कम नही आंका जा सकता है। मीरा कुमार दलित समुदाय से हैं और वे पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं। मीरा कुमार 1973 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुईं। वे कई देशों मंे नियुक्त रहीं और बेहतर प्रशासक साबित हुई। राजनीति में उनका प्रवेश अस्सी के दशक में हुआ था। 1984 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के बिजनौर से कांग्रेस के टिकट पर संसद में चुन कर आईं। 1996 में दूसरी बार सांसद बनी। मीरा कुमार 1998 में तीसरी और 2004 में चैथी बार बिहार के सासाराम संसदीय क्षेत्र से सांसद बनी। यूपीए सरकार में वह सामाजिक न्याय मंत्री रहीं। पांचवी बार संसद पहुंचने वाली इस कदावर दलित महिला राजनीतिज्ञ को देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुना गया। बालायोगी के बाद मीरा कुमार दूसरी दलित नेता हैं, जो इस पद तक पहुंची। लिहाज राजनीतिक कद के लिहाज से मीरा कुमार को कमजोर नही कहा जा सकता है। बहुमत की अंकगणित भाजपा प्रत्याशी रामनाथ कोविद के पक्ष में है। दलित होने के नाते मीरा कुमार क्या कुछ राजनीतिक दलों को अपने पक्ष मंे लाने में सफल होंगी। फिलहाल ऐसी कोइ संभावना नजर नही आ रही है। लेकिन उनके चुनाव मैदान में होने से महिलाओं की भागीदारी का मुद्दा जरूर गरम हो जाएगा। भाजपा ने देश की पहली महिला राष्ट्रपति का विरोध किया था और अब फिर यह संदेश जा रहा है कि भाजपा महिला विरोधी पार्टी है।

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