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लंदन/नई दिल्ली: सहारा समूह ने बुधवार को निवेशकों के एक समूह की ओर से ब्रिटेन और अमेरिका स्थित अपने तीन मशहूर होटलों के लिए 1.3 अरब डॉलर की पेशकश खारिज कर दी है और इसे कीमत कम करने की ‘चालाक कोशिश’ बताया। समूह ने यह भी कहा कि यह उन अन्य बोलीकर्ताओं की धारणा को प्रभावित करने की कोशिश करार दिया जो इन संपत्तियों के लिए ज्यादा ऊंची बोली लगा रहे हैं। ब्रिटेन की कंपनी जसदेव सग्गर के नेतृत्व वाली 3 एसोसिएट्स की अगुवाई में निजी संपत्ति प्रबंधन सलाहकार कंपनियों के एक समूह की ओर से आयी ताजा पेशकश पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए सहारा समूह ने कहा कि यह कुछ गलत लोगों की ओर से गलत मंशा से और बिना गंभीरता के की गयी कोशिश है। 3 एसोसिएट्स की पेशकश के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में सहारा के प्रवक्ता ने कहा, ‘उक्त प्रस्ताव आधारहीन है। यह परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य से काफी कम दर पर न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने की चालाक कोशिश है ताकि इनका बाजार खराब किया जा सके और वास्तविक बोलीकर्ताओं की धारणा को प्रभावित किया जा सके जो बाजार मूल्य पर बोली लगा रहे हैं और वह काफी ऊंचा है।’ उन्होंने कहा, ‘कृपया ध्यान में रखें कि यह कुछ गलत लोगों की आरे से गलत मंशा से की गई गैर-गंभीर कोशिश है।’ सहारा ने हालांकि तीन होटलों के लिए मिली अन्य पेशकशों का ब्योरा नहीं दिया। सहारा द्वारा बोली खारिज किए जाने के संबंध में प्रतिक्रिया मांगने पर 3 एसोसिएट्स के प्रबंध निदेशक, जसदेव सग्गर ने कहा, ‘हमने प्रक्रिया का पालन किया है और नियमों का अनुपालन करते हुए बोली सौंपी है।
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार को बेनामी संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार देने और बेनामी लेनदेन करने वालों पर अभियोजन एवं दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान वाले बेनामी संव्यवहार (प्रतिषेध) संशोधन विधेयक को आज लोकसभा ने मंजूरी दे दी। विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि यह काले धन पर रोक लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। विधेयक में बेनामी लेनदेन करने वाले दोनों पक्षों पर अभियोजन के साथ एक से सात वर्ष तक की सजा अथवा जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है। बेनामी संपत्ति से संबंधित 1988 के कानून में संशोधन करने के बजाय नया कानून लाने की संसदीय समिति की सिफारिश को नहीं मानने के कुछ सदस्यों के सवाल पर जेटली ने कहा कि 1988 का कानून बहुत छोटा था और इसमें केवल नौ धाराएं थीं। इसमें केवल अधिग्रहण का प्रावधान था और अनुपालन की कोई मशीनरी नहीं बन पाई थी। उन्होंने कहा कि कानून मंत्रालय ने अध्ययन के बाद कहा कि इसके लिए नियम नहीं बनाये जा सकते और कोई प्रवर्तन प्रणाली नहीं होने के चलते यह कानून प्रभाव में नहीं आ सका। जेटली ने कहा कि अगर हम 1988 के कानून को निष्प्रभावी करके नया विधेयक लाने की सिफारिश स्वीकार कर लेते तो तब से लेकर 2016 तक बेनामी लेनदेन करने वाले लोग इस कानून के दायरे से बच जाते।
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मुंबई: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि सरकार तथा आरबीआई को अपने मतभेद ‘बंद दरवाजे के अंदर’ रखने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब मौद्रिक नीति की बात हो तो केंद्रीय बैंक को अपनी बात को उपर रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक रिजर्व बैंक अपनी स्वायत्ता की बात करता है, उसमें असहमति का कोई मायने नहीं होना चहिए। केंद्रीय बैंक का गवर्नर बैंक बनने से पहले वित्त सचिव रहे सुब्बाराव ने यह भी कहा कि गवर्नर को सरकार के नजरिये के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन साथ ही रिजर्व बैंक की स्वायत्ता का भी सम्मान किया जाना चाहिए। सुब्बाराव ने 2008 से 2013 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में अपनी यादों को कलमबद्ध किया है। उनकी किताब हाल ही में प्रकाशित हुई। पुस्तक में उन्होंने सरकार तथा केंद्रीय बैंक के बीच ब्याज दर समेत विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों के बारे में कई उदाहरण दिये हैं। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के जरिये नीतिगत दर तय करने की नई व्यवस्था से रिजर्व बैंक की स्वायत्ता बढ़ेगी। सुब्बाराव ने कहा कि इस प्रकार के मतभेद हमेशा बने रहते हैं क्योंकि लोकतंत्र में सरकार चुनावी चक्र से चलती है और इसीलिए मुद्रास्फीति के ऊपर आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देती है। केंद्रीय कीमत स्थिरता पर दीर्घकालीन सोच के साथ काम करता है, ऐसे में हो सकता है अल्पकाल में वृद्धि को महत्व नहीं दिया जाए।
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने आज (मंगलवार) 7वें वेतन आयोग की गजट अधिसूचना जारी कर दी है। इससे केंद्र सरकार के लाखों कर्मचारियों को अगस्त से ही बढ़ा हुआ वेतन मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। कैबिनेट ने 29 जून को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दी थी। अभी करीब 47 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और करीब 53 लाख पेंशनधारियों को इससे लाभ होगा। हालांकि नोटिफिकेशन के बाद काफी हद तक सवालों के जवाब मिल जाएंगे, लेकिन फिर भी कुछ मसलों पर कर्मचारी संगठनों और सरकार में अभी बातचीत होनी है। इस सबके पीछे तृतीय और चतुर्थ श्रेणियों के कर्मचारियों की हड़ताल की धमकी के बाद सरकार द्वारा न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग को स्वीकार कर करीब 33 लाख कर्मचारियों को लिखित में आश्वासन देना है। सरकार ने इसके लिए एक समिति के गठन की बात भी कही है, जो चार महीनों में सभी संबंधित पक्षों से बात करके अपनी रिपोर्ट देगी। इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार न्यूनतम वेतनमान को बढ़ाने का फैसला लेगी। 7वें वेतन आयोग को मंजूरी के समय वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि पे बैंड एवं ग्रेड पे की वर्तमान प्रणाली समाप्त कर दी गई है और आयोग की सिफारिश के अनुरूप एक नई वेतन संरचना (पे मैट्रिक्स) को मंजूरी दी गई है। अब से कर्मचारी के दर्जे का निर्धारण पे मैट्रिक्स में उसके स्तर के आधार पर होगा, जबकि अभी तक ग्रेड पे के अनुसार इसका निर्धारण होता था।अलग-अलग वेतन संरचनाएं असैन्य (सिविलयन), रक्षा कार्मिकों और सैन्य नर्सिंग सेवा के लिए तैयार की गई हैं।
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