मुंबई: रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि सरकार तथा आरबीआई को अपने मतभेद ‘बंद दरवाजे के अंदर’ रखने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जब मौद्रिक नीति की बात हो तो केंद्रीय बैंक को अपनी बात को उपर रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक रिजर्व बैंक अपनी स्वायत्ता की बात करता है, उसमें असहमति का कोई मायने नहीं होना चहिए। केंद्रीय बैंक का गवर्नर बैंक बनने से पहले वित्त सचिव रहे सुब्बाराव ने यह भी कहा कि गवर्नर को सरकार के नजरिये के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन साथ ही रिजर्व बैंक की स्वायत्ता का भी सम्मान किया जाना चाहिए। सुब्बाराव ने 2008 से 2013 के बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में अपनी यादों को कलमबद्ध किया है। उनकी किताब हाल ही में प्रकाशित हुई। पुस्तक में उन्होंने सरकार तथा केंद्रीय बैंक के बीच ब्याज दर समेत विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों के बारे में कई उदाहरण दिये हैं। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के जरिये नीतिगत दर तय करने की नई व्यवस्था से रिजर्व बैंक की स्वायत्ता बढ़ेगी। सुब्बाराव ने कहा कि इस प्रकार के मतभेद हमेशा बने रहते हैं क्योंकि लोकतंत्र में सरकार चुनावी चक्र से चलती है और इसीलिए मुद्रास्फीति के ऊपर आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देती है। केंद्रीय कीमत स्थिरता पर दीर्घकालीन सोच के साथ काम करता है, ऐसे में हो सकता है अल्पकाल में वृद्धि को महत्व नहीं दिया जाए।
अपनी पुस्तक ‘हू मूव्ड माइ इंटरेस्ट रेट’ में सुब्बाराव ने अपने कार्यकाल के दौरान दो वित्त मंत्रियों..प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम के साथ मतभेद रहे। सुब्बाराव ने अपनी किताब पर अच्छे शब्द के लिए चिदंबरम की तरीफ की है।