नई दिल्ली: मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का मानना है कि भारत की आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियों में नपेतुले हस्तक्षेप की परिपक्वता का अभाव है जिसके कारण वह अक्सर प्रतिबंध और अंकुशों पर उतर आती है। एक कार्यक्रम में उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि भारत में न्यायपालिका ने विधायिका से अधिक अधिकार हासिल कर लिए हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज भी कुछ अधिक ही मुकदमेबाज समाज हो गया है।मुख्य आर्थिक सलाहकार ने देश में स्वतंत्र नियामकीय संस्थानों की वकालत की और कहा कि ये संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होनीं चाहिए। सुब्रमण्यन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि भारत में नियामकीय संस्थाएं अभी विकास के क्रम में हैं। मुझे नहीं लगता कि हमने अभी नियामकीय संस्थानों के मामले में वह परिपक्वता हासिल कर ली है जो होनी चाहिए। इस मामले में हमें ईमानदारी से सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए।’उन्होंने विभिन्न संस्थानों में क्षमता निर्माण पर जोर दिया। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि हमारी आर्थिक और राजनीतिक प्रणाली ने अभी वह परिपक्वता हासिल नहीं की है जिसमें हम समस्याओं के समाधान के लिए सधे तरीके से हस्तक्षेप करें। ऐसे में हम प्रतिबंध और अंकुश जैसे भोथरे हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। प्रतिस्पर्धा नीति के क्षेत्र में मेरा मानना है कि जहां भी जरूरी हो वहां नपे तुले अंदाज में हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।
हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसा करना कोई आसान काम नहीं है। इस लिए सधे भोथरे हथियारों की जगह सधे नपे तुले हस्तक्षेप की क्षमता का विकास करना महत्वपूर्ण है और निश्चित तौर पर सभी विनियामकीय संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होनीं चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ भी हो, 'हर मामला अपील में चला जाता है। इस तरह हमारा समाज बहुत अधिक मुकदमेबाजी करने वाला समाज बन गया है।.. न्यायापालिका और न्यायपालिका जैसी संस्थाओं ने विधायिका से ज्यादा अधिकार हालिस कर लिए हैं।’