नई दिल्ली: आर्थिक शोध संस्था नोमुरा के मुताबिक भारत में आर्थिक गतिविधियों में हालांकि, जनवरी में कुछ सुधार दिखा है लेकिन यह बहुत व्यापक नहीं है और कुल मिलाकर आर्थिक गतिविधियां नोटबंदी से पूर्व के स्तर से नीचे बनी हुई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में शुरू हुई आर्थिक सुस्ती अब जनवरी-मार्च तिमाही में भी अपना असर दिखाने लगी है। नोमुरा इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री सोनल वर्मा ने एक शोध पत्र में कहा, ‘‘कुल मिलाकर नोमुरा का आर्थिक गतिविधियों की गति में घटबढ को दर्शाने वाला सूचकांक बताता है कि दिसंबर में गतिविधियां काफी कमजोर हुई है। जनवरी में हालांकि, इससे बेहतर दिखता है लेकिन अभी गतिविधियां व्यापक नहीं है और यह नोटबंदी से पहले के स्तर से नीचे बनी हुई हैं।’’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि नये नोट जारी करने का काम बेहतर ढंग से आगे बढ़ रहा है और लेनदेन मांग मार्च अंत तक स्थिर हो जाने की उम्मीद है। ‘‘10 फरवरी को प्रचलन में आये कुल नोट सकल घरेलू उत्पाद :जीडीपी: का 7.2 प्रतिशत थे। एक जनवरी को यह स्तर 5.9 प्रतिशत पर था। हम मार्च अंत तक इस अनुपात के 9 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं। इस स्तर पर लेनदेन मांग को स्थिर करने में मदद मिलेगी।’’ नोमुरा को लगता है कि कैलेंडर वर्ष 2016 की तीसरी तिमाही जुलाई-सितंबर में जीडीपी वद्धि दर धीमी पड़कर 7.3 प्रतिशत से चौथी तिमाही अक्तूबर-दिसंबर में 6 प्रतिशत और 2017 की पहली तिमाही जनवरी-मार्च में 5.7 प्रतिशत रह जायेगी।
हालांकि शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक वृद्धि के 2017 की दूसरी छमाही में उछलकर फिर से 7.5 प्रतिशत और वर्ष 2018 में 7.7 प्रतिशत के औसत पर पहुंच जाने का अनुमान है। नोमुरा को 2017 की पहली छमाही में मुद्रास्फीति 4 से 4.5 प्रतिशत के आसपास रहने का अनुमान है जो कि दूसरी छमाही में इससे कहीं उपर 5.5 से 6 प्रतिशत के दायरे में पहुंच सकता है।