वॉशिंगटन: पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज मुशर्रफ ने कहा कि सेना ने पाकिस्तान के शासन में अक्सर अहम भूमिका निभाई है क्योंकि लोकतंत्र को इसके माहौल के अनुसार नहीं ढाला गया है। मुशर्रफ ने यहां गुरुवार को ‘वाशिंगटन आइडियाज फोरम’ में एक साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘हमारी आजादी के बाद से सेना की हमेशा भूमिका रही है। सेना ने पाकिस्तान के शासन में बहुत अहम भूमिका निभाई है। इसका मुख्य कारण तथाकथित लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों का कुशासन रहा है।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की मूल कमजोरी यह रही है कि इस देश में माहौल के अनुसार लोकतंत्र को नहीं ढाला गया। मुशर्रफ ने देश में बार बार हुए सैन्य तख्तापलट को सही बताते हुए कहा, ‘इसलिए सेना को राजनीतिक माहौल में जबरन घुसाया, खींचा जाता है, खासकर तब जब कुशासन जारी है और पाकिस्तान सामाजिक आर्थिक रूप से नीचे की ओर जा रहा है। लोग और जनता सैन्य प्रमुख की ओर भागती है और इस तरह सेना संलिप्त हो जाती है।’ उन्होंने कहा कि इस वजह से पाकिस्तान में सैन्य सरकारें रही हैं और सेना का कद उंचा है। मुशर्रफ ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, ‘पाकिस्तान के लोग सेना को प्यार करते हैं और उससे बहुत उम्मीदें रखते हैं। इसलिए मुझे इस बात पर गर्व है कि सेना ने मुझे समर्थन दिया है क्योंकि मैं 40 साल तक उसके साथ रहा हूं। मैंने उनके साथ युद्ध लड़े। मैंने दो युद्ध लड़े और मैं कई कार्रवाइयों में उनके साथ रहा। इसलिये मुझे पता है कि उन लोगों ने ही मुझे चुना है।’ उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमें पाकिस्तान जो कहता है, उसके हिसाब से राजनीतिक संरचना को ढालना होगा, नियंत्रण एवं संतुलन लागू करना होगा ताकि कुशासन नहीं हो सके और सेना को राजनीति में न आना पड़े।’
मुशर्रफ ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने अपनी सुविधानुसार उनके देश का इस्तेमाल किया और उसे धोखा दिया। उन्होंने कहा कि वह अपने देश वापस लौटने की योजना बना रहे हैं, ‘मुझे पता है कि यह मुकदमा पूरी तरह से राजनीतिक है लेकिन मुझे इसका सामना करना होगा। और जैसा कि वह कहते हैं कि इसमें कोई खतरा या फायदा नहीं है।’ हालांकि उन्होंने कहा, ‘यदि पाकिस्तान की सरकार ठीक से काम करती है तो वह वापस नहीं जाएंगे। मुशर्रफ ने कहा, ‘वास्तव में मुझे वापस जाने और फिर से शासन करने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। मैं केवल यह चाहता हूं कि लोग पाकिस्तान को ठीक से चलायें, क्योंकि पाकिस्तान मेरा जुनून है।’ हालांकि पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी वापसी के लिए कुछ शर्ते रखी हैं। मुशर्रफ ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैं मूर्ख नहीं हूं। इसलिए मैं वहां सही माहौल देखना चाहता हूं जिसमें राजनीतिक परिवर्तन के लिए तीसरी राजनीतिक शक्ति की संभावना हो। मैं मामलों को उस स्तर पर देखना चाहता हूं, जहां मेरी गतिविधियां प्रतिबंधित नहीं हों, भले ही मेरे उपर मामले चलते रहें।’ उन्होंने तर्क दिया, ‘मैं चाहता हूं कि मेरी गतिविधियों प्रतिबंधित नहीं की जायें क्योंकि मुझे अहसास है कि मैं जन समर्थन जुटाने में सक्षम रहूंगा, क्योंकि मुझे राजनीतिक तौर पर तीसरा मोर्चा बनाने की जरूरत है।’ मुशर्रफ ने दावे के साथ कहा कि उन्हें ओसाबा बिन लादेन की पाकिस्तान में मौजूदगी का पता नहीं था। उन्होंने उस स्थान को महल कहे जाने पर भी आपत्ति जाहिर की जहां ओसामा छिपा हुआ था। ओसामा जिस मकान में छिपा था उसके बाहर एक दीवार बनाए जाने के बारे में उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान के उस इलाके के लिए यह ‘बहुत सामान्य’ बात है इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है। मुशर्रफ ने कहा कि उन्हें इस बात में भी संदेह है कि बिन लादेन वास्तव में पांच साल तक एबटाबाद वाले मकान में रहा होगा। मुशर्रफ ने कहा, ‘हो सकता है वह वहां आता जाता रहा हो। मुझे अभी भी ऐसा ही लगता है और यदि वह वहां रहता था, तो जैसा कि मैने एक सभा में भी सवालों की बौछार के बीच कहा था, ‘एक व्यक्ति अगर पांच साल तक अपनी तीन पत्नियों और 18 बच्चों के साथ एक ही कमरे में रह रहा था, तो मुझे लगता है कि उसने सीआईए को भी खुद ही फोन कर बताया होगा कि वह वहां रह रहा है।’ इसपर उपस्थित जन समुदाय ने जोरदार ठहाके लगाए थे।