बेंगलुरू: केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों के लंबित रहने का ठीकरा सरकार पर नहीं फोड़ा जा सकता, क्योंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) न्यायपालिका को भेजा जा चुका है। अंग्रेजी अखबार ‘दि हिंदू’ की ओर से आयोजित विचार गोष्ठी ‘दि हडल’ के पहले संस्करण में न्यायाधीशों के चयन में दखलंदाजी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रसाद ने कहा कि यह गलत धारणा है, क्योंकि भाजपा के सदस्य न्यायपालिका की आजादी के लिए जेल तक जा चुके हैं। प्रसाद ने कहा, ‘कृपया यह गलतफहमी दूर कर लें, हम (हमारी पार्टी) न्यायपालिका की आजादी के लिए जेल गए थे। बहरहाल, उच्चतम न्यायालय ने खुद ही कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। हम उस दिशा में काम कर रहे हैं। 1950 और 1960 के दशक के न्यायाधीश बहुत अच्छे होते थे।’ उन्होंने यह भी कहा कि इस मान्यता को भी चुनौती दिए जाने की जरूरत है कि प्रधानमंत्री राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के चुनाव में तो अहम भूमिका निभा सकता है, लेकिन न्यायाधीशों के चयन में नहीं। प्रसाद ने कहा कि कोलेजियम व्यवस्था की शुरूआत से पहले भारत ने न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर, हिदायतुल्ला, गजेंद्र गडकर और पतंजलि शास्त्री जैसे क्षमतावान न्यायाधीश दिए।
उन्होंने कहा, ‘कोलेजियम व्यवस्था की वकालत करने वाले क्या ऐसी क्षमता से लैस नियुक्तियां कर सकते हैं?’ न्यायाधीशों की नियुक्ति की धीमी रफ्तार पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की टिप्पणी के बाबत प्रसाद ने कहा, ‘1993 से कोलेजियम प्रणाली ने 75-80 नियुक्तियां की हैं, पिछले साल हमने 120 नियुक्तियों को मंजूरी दी। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश को सार्वजनिक तौर पर नहीं बोलना चाहिए था, क्योंकि भारत के प्रधान न्यायाधीश और कानून मंत्री लगभग हर पखवाड़े बात करते हैं और चीजों पर निजी तौर पर चर्चा की जा सकती है।’ लोकपाल का गठन अब तक नहीं किए जाने पर एक सवाल के जवाब में प्रसाद ने कहा कि लोकपाल के गठन में देरी होगी, क्योंकि कुछ संशोधनों की प्रक्रिया चल रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर प्रसाद ने कहा, ‘मोदी को कितने जनमत-संग्रह जीतने होंगे ? सत्ता में आने के बाद से हमने निगम चुनाव, राज्यों के चुनाव जीते हैं। उत्तर प्रदेश बदलाव की ओर बढ़ रहा है और हमें यकीन है कि नतीजे अलग होंगे।’