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बेंगलुरू: कांग्रेस से करीब पांच दशक के अपने संबंध को समाप्त करने के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा ने आज पार्टी नेतृत्व पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्हें उम्र के कारण पार्टी में दरकिनार कर दिया गया और कांग्रेस को ‘जन नेता’ नहीं बल्कि केवल ‘प्रबंधक’ चाहिए।84 वर्षीय कृष्णा ने कहा, ‘दुख और पीड़ा के साथ मैंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया है।’ उन्होंने कहा कि उनके लिए आत्मसम्मान महत्वपूर्ण है। उन्होंने आगे की रणनीति स्पष्ट नहीं की और केवल इतना कहा कि इस बारे में वह सोचेंगे। कृष्णा ने कहा कि कांग्रेस को अचानक पता चला कि ‘मेरी उम्र हो चुकी है।’ उन्होंने कहा, ‘दुर्भाग्य की बात है कि कोई और सोचता है, कोई और फैसले करता है। इसलिए पिछले कुछ दिनों से मुझे लग रहा है कि कांग्रेस को मेरी जरूरत नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस आज प्रबंधकों पर ज्यादा निर्भर है जो पार्टी का प्रबंधन देख सकते हैं। उन्हें मेरे जैसे अनुभवी नेता या कार्यकर्ता नहीं चाहिए। इसलिए मैंने फैसला कर लिया है। हालांकि यह मेरे लिए दुखद रहा है क्योंकि मैं उस घर से दूर हो रहा हूं जो मेरा अपना था।’ पूर्व विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने पार्टी में अच्छाई और बुराई दोनों देखीं और मिठास तथा कड़वाहट दोनों को चखा लेकिन अपनी निष्ठा में कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस इस बात को लेकर भ्रमित है कि उसे जन नेता चाहिए या नहीं। उसके लिए केवल हालात का प्रबंधन करना काफी है।’

कर्नाटक के मैसूरू क्षेत्र की वोक्कालिगा पट्टी में दबदबे के साथ करिश्माई नेता माने जाने वाले कृष्णा ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे के अपने फैसले की जानकारी दी थी। कृष्णा के इस फैसले से पार्टी को झटका लगा है जो केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर चुनौतियों का सामना कर रही है। पार्टी के केंद्रीय और प्रदेश के नेताओं ने कृष्णा को उनके संवाददाता सम्मेलन से पहले अंतिम क्षण तक मनाने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वह अपने निर्णय पर कायम हैं। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, ‘मैंने कांग्रेस नेतृत्व को याद दिलाया है कि अब भी मेरा वजूद है।’ उनके मुताबिक पार्टी नेताओं का ध्यान इस बात पर गया है। अगले कदम के बारे में पूछे जाने पर कृष्णा ने कहा, ‘पार्टी छोड़ने का फैसला लेने में मैंने अपनी पत्नी को छोड़कर किसी की भी सलाह नहीं ली है। मेरा अगला कदम क्या होगा, इस बारे में मुझे विचार करना होगा, आत्मनिरीक्षण करना होगा और आसपास देखने के बाद फैसला करना होगा।’ कृष्णा ने यह भी साफ कर दिया कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रहे। उन्होंने कहा, ‘मेरे शब्दकोश में संन्यास शब्द नहीं है।’ उन्होंने सोनिया गांधी द्वारा ‘विशेष सम्मान’ दिये जाने की बात कही वहीं केंद्रीय नेतृत्व पर परोक्ष निशाना साधा। राहुल गांधी के सवाल पर कृष्णा ने जवाब दिया, ‘मैं उपाध्यक्ष के बारे में बात नहीं करंगा। मैं अध्यक्ष के बारे में बोलूंग।’ जब पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि राहुल गांधी असमर्थ हैं और पार्टी नेतृत्व में बदलाव की जरूरत है तो उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय स्तर की पार्टी होने के नाते हम अध्यक्ष से मतलब रखते हैं, उपाध्यक्ष, महासचिव और कुछ अन्य पदों से नहीं। पार्टी में मेरी वरिष्ठता को देखते हुए मुझे इस स्तर पर अध्यक्ष की ओर देखना चाहिए, दूसरों की ओर नहीं।कांग्रेस के भविष्य के प्रश्न पर कृष्णा ने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब उन लोगों को देना होगा जो कांग्रेस में बहुत सक्रिय हैं।’ उन्होंने कहा, ‘वे निर्णय करेंगे कि कांग्रेस पार्टी में भविष्य है या नहीं, लेकिन कांग्रेस का 129, 130, 131 सालों का लंबा इतिहास है..वैसे कोई नहीं गिन रहा।’ कांग्रेस की साख के सवाल पर उन्होंने कहा, ‘यह बड़ा सवाल है।’’ कृष्णा ने इस बात पर नाखुशी जताई कि 2012 में संप्रग सरकार के मंत्रिमंडल में बड़ी हेरफेर से कुछ दिन पहले उन्हें किस तरह विदेश मंत्री का पद छोड़ना पड़ा। उन्होंने कहा कि उन्हें सम्मानजनक विदाई की उम्मीद थी। जब कृष्णा से पूछा गया कि उनकी अनदेखी कब शुरू हुई तो उन्होंने कहा, ‘2012 से। यह किसी नेता से छुटकारा पाने का तरीका है। कांग्रेस को विनम्र होने की कला सीखनी चाहिए। वे मुझसे कह सकते थे कि हम किसी बड़े कदम के बारे में सोच रहे हैं। यह थोड़ी सम्मानजनक विदाई होती।’ यदि सोनिया गांधी आग्रह करती हैं तो क्या वह कांग्रेस छोड़ने के फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं, इसके जवाब में कृष्णा ने कहा कि वह ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, ‘यह आत्मसम्मान और गौरव की बात है।’ कृष्णा से सवाल पूछा गया कि क्या वह देश के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं और क्या वह भाजपा नेताओं से मिलेंगे, इस पर उन्होंने कहा, ‘क्या आपको लगता है कि मैं पागल हो गया हूं।’’ साल 1999 से 2004 तक कनार्टक के मुख्यमंत्री रहे कृष्णा 2012 में विदेश मंत्री का पद छोड़ने के बाद प्रदेश की राजनीति में लौट गये थे। हालांकि वह केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर अनदेखी के चलते पिछले दो साल से एक तरह से निष्क्रिय थे।

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