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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक अहम् फैसले में पश्चिम बंगाल सरकार को आदेश दिया है कि वो 12 हफ़्तों के भीतर सिंगूर में टाटा नैनो की फैक्ट्री के लिए अधिग्रहित की गई 1000 एकड़ ज़मीन को जमीन के मालिकों को वापस कर दे। कोर्ट के फैसले के मुताबिक जमीन के मालिकों से मुआवजा भी वापस नहीं लिया जाएगा। कोर्ट का कहना है कि उनसे ज़मीन लेकर उनकी आजीविका को 10 सालों तक अधर में लटकाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले के साथ ही इस केस में दिए गए कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि इस भूमि अधिग्रहण में बेतहाशा खामियां पाई गई हैं। भूमि अधिग्रहण कलेक्टर ने जमीनों के अधिग्रहण के बारे में किसानों की शिकायतों की उचित तरीके से जांच नहीं की। कोर्ट ने लेफ्ट सरकार को नसीहत देते हुए कहा कि उन्हें समझना चाहिए था कि किसी कंपनी के लिए राज्य द्वारा भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उददेश्य के दायरे में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन बुद्धदेब भट्टाचार्य सरकार पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार ने सत्ता के साथ फ्रॉड किया। सुप्रीम कोर्ट ने अब किसानों को उनकी ज़मीन लौटाने के लिए 12 हफ्ते का वक्त दिया है। गौरतलब है कि साल 2006 में वेस्ट बंगाल की लेफ्ट सरकार ने टाटा की नैनो कार प्लांट के लिए इस भूमि अधिग्रहण किया था। कोर्ट ने कहा, प्राइवेट कंपनी के लिए ज़मीन अधिग्रहण करना जनहित का फैसला नहीं होता, और राज्य सरकार ने इस मामले में सही तरीके से नियमों का पालन नहीं किया, इसलिए यह अधिग्रहण पूरी तरह गैरकानूनी है।

राज्य सरकार ने उस वक्त विरोध कर रहे किसानों की बात तक नहीं सुनी, और उन्हें अधिग्रहण के लिए सही मुआवजा भी नहीं दिया गया। अपने फैसले में कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन किसानों को मुआवजा मिल चुका है, उनसे वापस नहीं लिया जा सकता, क्योंकि एक दशक से वे अपनी ज़मीनों से वंचित हैं। इससे पहले, कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार के अधिग्रहण को सही ठहराया था, जिसके खिलाफ किसानों की ओर से गैर सरकारी संगठनों ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्ट सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा था कि लगता है सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए जिस तरह जमीन का अधिग्रहण किया, वह तमाशा और नियम-कानून को ताक पर रखकर जल्दबाजी में लिया गया फैसला था। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था, सरकार ने यह तय कर लिया था कि इसी प्रोजेक्ट को जमीन देनी है और भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 का पूरी तरह पालन नहीं किया गया। वहीं, टाटा ने मामले को पांच जजों की संवैधानिक पीठ को भेजे जाने की मांग की थी। वैसे हालात को देखते हुए टाटा ने नैनो प्रोजेक्ट को गुजरात में स्थानांतरित कर दिया था, लेकिन टाटा का यह भी कहना था कि सिंगूर की यह जमीन वह किसी और प्रोजेक्ट के लिए रखेगी।

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