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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए पंचायत चुनावों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। पंचायत चुनावों के दौरान वामपंथियों और कांग्रेस के अप्रत्याशित पुनरुत्थान के साथ भाजपा के वोट शेयर में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में 2024 के चुनावों में राज्य से 35 लोकसभा सीटें हासिल करने के पार्टी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर सवाल उठने लगा है।

वामपंथियों और कांग्रेस के बढ़े वोट शेयर

हालांकि, पंचायत चुनावों ने बंगाल भाजपा ने 22.88 फीसदी वोट शेयर के साथ अपनी मुख्य विपक्षी स्थिति बरकरार रखी है, लेकिन यह 2021 के विधानसभा चुनावों में मिले 38 फीसदी वोट से काफी कम है। जबकि वाम-कांग्रेस-आईएसएफ गठबंधन ने अपना वोट शेयर दोगुना कर 20.80 फीसदी कर लिया है, जो पिछले राज्य चुनाव में 10 फीसदी था। यह भाजपा के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश कर रहा है।

टीएमसी ने पिछले विधानसभा चुनावों में लगभग 48 फीसदी के अपने वोट शेयर को पार करते हुए लगभग 51.14 फीसदी का अपना उच्चतम वोट शेयर हासिल किया।

वहीं, राज्य भाजपा नेताओं ने चुनाव के दौरान कथित हिंसा और रक्तपात को वोट शेयर की गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने विधानसभा चुनाव में हार के बाद से भगवा खेमे को परेशान करने वाली आंतरिक संगठनात्मक चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया।

भाजपा के राष्ट्रीय सचिव अनुपम हाजरा ने कहा कि, आप यह दावा करके इनकार नहीं कर सकते कि संगठन में सब कुछ ठीक है और वोट शेयर में गिरावट के लिए हिंसा को जिम्मेदार ठहराकर दूसरी तरफ नहीं देख सकते। संगठनात्मक खामियों को पहचानने और उन्हें दूर करने की जरूरत है। राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने के राज्य इकाई के महत्वाकांक्षी लक्ष्य पर बोलते हुए हाजरा ने कहा, यदि आप संगठन की निराशाजनक स्थिति को देखें तो यह कठिन लगता है।

उन्होंने कहा, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन अगर आप हमारी वर्तमान संगठनात्मक ताकत और पिछले कुछ चुनावों में वोट शेयर में गिरावट को देखें तो इसमें संदेह है। लेकिन साथ ही आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लुभावने प्रभाव को भी स्वीकार करना होगा, जब वह लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू करेंगे, क्योंकि विपक्षी खेमे में उन्हें कोई चुनौती देने वाला नहीं है।

बता दें कि अप्रैल में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा था। त्रिस्तरीय ग्रामीण चुनाव, जिसमें राज्य की लगभग 65 प्रतिशत आबादी ने ग्राम परिषदों के सदस्यों को चुनने के लिए मतदान किया। इससे 2024 के चुनावों से पहले सभी दलों को उनकी बूथ-स्तरीय संगठनात्मक तैयारियों का अनुमान लग गया है। भाजपा को अपनी जमीनी ताकत का आकलन असंतोषजनक बना हुआ है, खासकर उत्तरी बंगाल और आदिवासी बहुल जंगलमहल जिलों के अपने पूर्व गढ़ों में, जिसे लेकर जिला समिति स्तर तक संगठनात्मक बदलावों पर विचार किया जा रहा है।

भाजपा की राज्य महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने कहा कि हम यह नहीं कह रहे हैं कि हमें अपने गिरेबां में झांकने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ खामियां हुई हैं। संगठनात्मक परिवर्तन निकट भविष्य में हैं। कई स्थानीय इकाइयों के अध्यक्ष बदले जाएंगे और कुछ जिला इकाइयों में भी बदलाव किया जाएगा। हम 35 सीटों का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि हिंसा ने भी पार्टी को काफी हद तक प्रभावित किया है।

इस बार त्रिकोणीय मुकाबले से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को फायदा हुआ और उसने आश्चर्यजनक रूप से 79 फीसदी ग्राम पंचायतों, 92 फीसदी पंचायत समितियां और 100 फीसदी जिला परिषद की सीटों पर जीत हासिल कीं। पूर्ण संख्या के संदर्भ में देखे तो टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की 3,317 ग्राम पंचायतों में से 2,634 पर महत्वपूर्ण जीत दर्ज की है।

2021 के विधानसभा चुनावों में अपनी हार के बाद पश्चिम बंगाल में भाजपा आंतरिक संघर्ष, दलबदल और चुनावी असफलताओं से जूझ रही है। जैसा कि पिछले साल भवानीपुर उपचुनाव, कोलकाता नगर निगम (केएमसी) चुनावों में वोट शेयर में गिरावट और सागरदिघी उपचुनाव में सीपीआई (एम) और कांग्रेस-वाम गठबंधन ने उल्लेखनीय बढ़त हासिल की, जिससे राज्य में भगवा पार्टी की स्थिति में और गिरावट आई है।

भाजपा की गिरावट भबानीपुर उपचुनाव से शुरू हुई, जहां उसका वोट शेयर 35 फीसदी से गिरकर 22 फीसदी हो गया और यह केएमसी चुनावों में भी जारी रहा, जहां उसे विधानसभा चुनावों में 29 फीसदी की तुलना में इस क्षेत्र में केवल 20 फीसदी वोट शेयर मिला। भाजपा का निराशाजनक प्रदर्शन 108 नगर पालिकाओं के निकाय चुनावों और आसनसोल लोकसभा उपचुनाव तक बढ़ा, जहां उसे एक महत्वपूर्ण हार का सामना करना पड़ा और अपनी पिछली सीट टीएमसी के हाथों बड़े अंतर से हार गई। इस साल सागरदिघी उपचुनाव में भाजपा और टीएमसी से कांग्रेस की ओर 28 फीसदी वोटों का महत्वपूर्ण झुकाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उस अवधि के दौरान भाजपा का वोट शेयर 24 फीसदी से घटकर 13.94 फीसदी पर आ गया।

भाजपा प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा, हमें नहीं लगता कि ग्रामीण चुनावों को हमारी ताकत या कमजोरी का मानक बनाया जाना चाहिए। हम अगले लोकसभा चुनावों में अपना लक्ष्य हासिल करने को लेकर आश्वस्त हैं। वहीं, टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि भाजपा का पतन 2021 के विधानसभा चुनावों से शुरू हुआ था और अगले लोकसभा चुनावों में केंद्र में उसकी हार के साथ समाप्त हो जाएगा।

राजनीतिक विशेषज्ञ बिश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि नेतृत्व संकट और सबको साथ लेकर चलने की कमी के कारण भगवा खेमे का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। साथ ही उन्होंने भविष्यवाणी की कि गिरावट जारी रहेगी। उन्होंने कहा, 35 सीटों का लक्ष्य भाजपा के लिए एक दूर की कौड़ी है।

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