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कोलकाता: पश्चिम बंगाल का स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र संकट की स्थिति में है। निजी अस्पतालों से 350 से अधिक नर्सें नौकरी छोड़कर मणिपुर समेत देश के अन्य हिस्सों में स्थित अपने घरों के लिए निकल गई हैं। वहीं अस्पतालों ने अब निर्णय किया है कि वे सीमित संख्या में मरीजों को भर्ती करेंगे और मौजूदा कर्मियों को परामर्श देंगे ताकि वे नौकरी न छोड़ें। कोलकाता के 17 निजी चिकित्सा संस्थानों की संस्था 'दी एसोसिएशन ऑफ हॉस्पिटल्स ऑफ ईस्टर्न इंडिया' (एएचआईई) ने मुख्य सचिव राजीव सिन्हा को इस समस्या को लेकर पत्र लिखा।

निजी अस्पतालों के सूत्रों ने बताया कि इस हफ्ते की शुरुआत में 185 नर्सें मणिपुर के लिए निकल गईं। शनिवार को कुल 169 नर्सें मणिपुर, त्रिपुरा, ओडिशा और झारखंड के लिए रवाना हो गईं। एएचआईई के अध्यक्ष प्रदीप लाल मेहता ने अपने पत्र में कहा कि वे क्यों छोड़कर जा रही हैं, इसका सही-सही कारण तो हमें नहीं पता लेकिन जो नर्सें अब भी यहां हैं उनका कहना है कि मणिपुर सरकार उन्हें घर वापसी के लिए लुभावने प्रस्ताव दे रही है। हालांकि, मणिपुर के मुख्यमंत्री नांगथोमबम बीरेन सिंह ने फेसबुक पोस्ट पर इस दावे को खारिज किया।

उन्होंने कहा कि राज्य ने ऐसा कोई परामर्श जारी नहीं किया है। हम किसी को भी लौटने को नहीं कह रहे। हमें उन पर गर्व है कि वे कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई में मरीजों की सेवा कर रही हैं। हमने उनसे पहले ही कहा था कि कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने पर हम उन्हें मुआवजा और ईनाम देंगे।

उन्होंने कहा कि नर्सें और चिकित्सक जहां काम कर रहे हैं, वहां उन्हें ठीक नहीं लग रहा है, तो यह उनका फैसला है। मैं उन पर वहां बने रहने के लिए दबाव नहीं बना सकता। मणिपुर लौट चुकी एक नर्स ने बताया कि सुरक्षा संबंधी चिंता और उसके माता-पिता का दबाव नौकरी छोड़ने के दो मुख्य कारण हैं।

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