ताज़ा खबरें

नई दिल्ली: अपने बड़बोलेपन की वजह से मशहूर और बात-बात में पाकिस्तान भेजने की बात कहने वाले भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह अपनी ही पार्टी के फैसले से नाराज चल रहे हैं। पिछली बार की तरह ही इस बार भी गिरिराज सिंह नवादा लोकसभा सीट से ताल ठोकने की तैयारी कर ही रहे थे कि ऐन मौके पर भाजपा ने उनका पत्ता नवादा से काटकर बेगूसराय से टिकट दे दिया। अपने बोल-कुबोल से मीडिया की सुर्खियों में रहने वाले भाजपा नेता गिरिराज सिंह एक बार फिर से अपनी दावेदारी की जगह को लेकर मीडिया की सुर्खियों में हैं।

भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिए बिहार में अपने सभी उम्मीदवारों का एलान कर दिया है। इसी क्रम में भाजपा ने गिरिराज सिंह को नवादा सीट की जगह बिहार के बेगूसराय से टिकट दिया है। माना जा रहा है कि गिरिराज सिंह बेगूसराय सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, वह नवादा सीट से ही इस बार भी हुंकार भरना चाहते हैं। यही वजह है कि दबी जुबान में वह कई बार इसकी झलक भी दे चुके हैं। सूत्रों की मानें तो गिरिराज सिंह का नाम जब भाजपा ने बेगूसराय से तय किया तभी से वह लगातार इस बात की कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह उनका नाम फिर नवादा के लिए तय हो जाए।

बेगूसराय से अपनी उम्मीदवारी से नाराज गिरिराज सिंह लगातार मीडिया में बयान दे रहे हैं कि नवाटा सीट से उनका टिकट काट कर बेगूसराय स्थांतरित किया जाना उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने समान है। इसके लिए गिरिराज सिंह भाजपा नेतृत्व को ही दोषी मान रहे हैं। हालांकि, गिरिराज सिंह ने कभी खुलकर इसका विरोध नहीं किया है। मगर उन्होंने बिहार भाजपा से अपनी नाराजगी जरूर जाहिर की है।

नवादा के सांसद और भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने मीडिया से कहा कि 'मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंची है क्योंकि बिहार में किसी भी सासंद की सीट नहीं बदली गई है। मुझसे बिना पूछे इसका फैसला लिया गया। बिहार भाजपा नेतृत्व को मुझे बताना चाहिए कि ऐसा क्यों किया गया। बेगूसराय से मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मगर मैं अपने आत्म सम्मान के साथ समझौता नहीं कर सकता।'

बता दें कि बिहार में भाजपा ने सिर्फ गिरिराज सिंह की ही सीट को बदला है। सूत्रों की मानें तो गिरिराज सिंह इस विषय़ पर केंद्रीय नेतृत्व से बातचीत करना चाहते हैं और वह चाहते हैं कि किसी तरह उन्हें फिर से नवादा सीट से ही लड़वाया जाए। यही वजह है कि उन्होंने अब तक बेगूसराय से चुनावी तैयारियां भी नहीं शुरू की है। हालांकि, खबर यह भी है कि भाजपा ने जो सीटें तय कर दी है, उससे अब वह पीछे नहीं हटने वाली है और अब गिरिराज सिंह को मनाने की कोशिश भी भाजपा नहीं कर रही है। यानी अब बेगूसराय से ही गिरिराज सिंह को लड़ना होगा।

सूत्र यह भी बता रहे हैं कि गिरिराज सिंह अमित शाह से भी इस विषय में बातचीत करना चाहते हैं। गिरिराज सिंह को लगता है कि भाजपा की राज्य इकाई ने बेगूसराय से उनकी दावेदारी का फैसला लिया है। बेगूसराय से नहीं लड़ने की इच्छा के पीछे गिरिराज सिंह की मजबूरी भी मानी जा रही है। बेगूसराय में यह बात सही है कि भूमिहार जाति के लोगों का दबदबा है और इस जाति के वोटरों की संख्या भी सबसे अधिक है। हालांकि, अगर गिरिराज सिंह बेगूसराय से ही लड़ते हैं तो यहां पर दो बड़े उम्मीदवार ऐसे हैं, जो भूमिहार जाति से ही आते हैं। लेफ्ट की ओर से कन्हैया कुमार बैटिंग कर रहे हैं, जो भूमिहार जाति से आते हैं। वहीं भाजपा की ओर से गिरिराज सिंह हैं, वह भी भूमिहार जाति से आते हैं।

जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके कन्हैया कुमार पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद लगातार बेगूसराय में हैं और वह अपनी रानजीतिक जमीन बनाने की जुगत में लग गए हैं। लगातार वह कैंपेनिंग कर रहे हैं और अपने पक्ष में माहौल बना रहे हैं। वहीं गिरिराज सिंह ने अभी बेगूसराय के नाम पर अपनी सहमति भी प्रकट नहीं की है।

सूत्रों की मानें तो बेगूसराय सीट पर दो भूमिहार जाति के उम्मीदवार होने की वजह से भी गिरिराज सिंह को हार का डर सता रहा है। पिछले चुनाव में राजद के तनवीर हसन का प्रदर्शन काफी हद तक अच्छा था। यही वजह है कि राजद ने एक बार फिर से उन पर विश्वास जताया है। तेजस्वी यादव को लगता है कि उनके उम्मीदवार तनवीर हसन जो पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद पिछले करीब 60 हजार वोटों के अंतर से हार गए थे, अगर इस बार उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया गया तो तनवीर हसन राजद को यह सीट जीता सकते हैं।

गिरिराज सिंह को शायद यह डर सता रहा है कि दो भूमिहारों की लड़ाई में कहीं बाजी राजद के तनवीर हसन न मार लें। यही वजह है कि वह नवादा से ही चुनाव लड़ने पर अमादा हैं। इसके अलावा गिरिराज सिंह को कन्हैया कुमार की लोकप्रियता से भी खतरा महसूस हो रहा है। गिरिराज सिंह को लगता है कि कन्हैया की लोकप्रियता उन पर भारी पड़ सकती है और वह उनसे हार भी सकते हैं। यही वजह है कि गिरिराज सिंह सेफ खेलना चाहते हैं। कन्हैया ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था कि बेगूसराय में मुकाबला उनके और गिरिराज सिंह के बीच ही है।

दरअसल, बिहार के बेगूसराय को एक ज़माने में लेफ्ट ख़ासकर सीपीआई का गढ़ माना जाता था और इस संसदीय सीट पर कई बार पार्टी के उम्मीदवारों ने ही जीत का परचम लहराया। मगर 90 के दशक के बाद सीपीआई कमजोर होने लगी। लेफ्ट की जीत अब राजद के समर्थन पर निर्भर होने लगी। मगर कन्हैया के आने से वाम कार्यकर्ताओं में जोश भरा है। एक बार फिर से बेगूसराय में लेफ्ट विचार के लोगों गोलबंद होते दिख रहे हैं। यही वजह है कि गिरिराज सिंह बेगूसराय से नहीं लड़ना चाह रहे हैं।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख