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मुंबई: केंद्र और महाराष्ट्र में भाजपा की सत्तारूढ़ साझेदार शिवसेना ने गुरुवार को कहा कि वह राष्ट्रपति चुनाव में अपना अलग रुख अपना सकती है। शिवसेना ने यह भी कहा कि वह राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की उम्मीदवारी पर जोर देती रहेगी। शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि हम आगामी राष्ट्रपति चुनाव में अपने वोट को लेकर अलग रुख अपना सकते हैं। हमने बार बार कहा है कि हम हिंदू राष्ट्र के सपने को पूरा करने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत से अधिक सक्षम किसी और को नहीं देखते। राज्यसभा सदस्य राउत ने यहां संवाददाताओं से कहा कि पार्टी आखिर तक भागवत का नाम सुझाती रहेगी। सबसे पुराने सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में संप्रग के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन करके भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी। भाजपा ने इस पद के लिए पीए संगमा का समर्थन किया था। शिवसेना ने 2007 में भी राजग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भैंरो सिंह शेखावत के बजाय संप्रग की उम्मीदवार और कांग्रेस नेता प्रतिभा पाटिल के लिए वोट दिया था। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी और उन्हें बड़ा भाई कहा था। इस तरह से उन्होंने दोनों भगवा दलों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों में नरमी का संकेत दिया था।

मुंबई: शिवसेना ने केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा है कि उसने ‘‘नोटबंदी का चाबुक’’ चलाकर कर्ज में दबे किसानों को गहरी निराशा में धकेला और उनके खेतों को बर्बाद हो जाने दिया। एक ऐसे समय में जब उद्योग जगत और सेवा क्षेत्र को विकास के लिए एक के बाद एक प्रोत्साहन मिल रहे हैं। ऐसे में कृषि क्षेत्र के प्रति सरकार की बेपरवाही पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में सवाल उठाया। शिवसेना ने कहा, ‘‘कई साल बाद, पिछले साल का मानसून किसानों के लिए उम्मीदें लेकर आया था और भारी फसल उत्पादन हुआ था। लेकिन नोटबंदी के चाबुक ने उन्हें अपनी फसलों को मिट्टी के मोल बेचने पर विवश कर दिया। उन्हें अपना लगाया धन भी नहीं मिल पाया और नतीजा यह हुआ कि कर्ज में दबे किसान भारी घाटे में डूब गए।’’ शिवसेना ने कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के विकास के वादे के साथ सत्ता में आई थी लेकिन आज वह इस क्षेत्र को कर लगा देने के नाम पर डराती रहती है। संपादकीय में कहा गया, ‘पंचायत से लेकर नगर निगमों तक के चुनाव जीत लेना आसान है। यदि आपके पास पैसा है तो आप चांद पर हो रहा चुनाव भी जीत सकते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि जनता आपकी नौकर है। किसानों की भावनाओं को समझने के लिए जरूरी है कि यह समझ लिया जाए कि वे महज वोटबैंक नहीं हैं।

मुंबई: देश में बीफ पर प्रतिबंध को लेकर चल रही बहस के बीच केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि वह खुद भी मांसाहारी हैं और भोजन हर व्यक्ति की अपनी पसंद का विषय है। उन्होंने इससे साफ इनकार किया कि भाजपा ‘‘सभी को शाकाहारी बनाना चाहती है।’’ मुंबई में औपचारिक संवाददाता सम्मेलन से पहले संवाददाताओं से बातचीत में नायडू ने कहा, ‘‘कुछ पागल लोग ऐसी बातें करते रहते हैं :कि भाजपा सभी को शाकाहारी बनाना चाहती है।: यह लोगों की पसंद है कि वह क्या खाना चाहते हैं और क्या नहीं।’’ उन्होंने कहा कि मुद्दे पर राजनीति हो रही है। केन्द्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘एक राजनीतिक दल ने टिप्पणी की थी कि भाजपा सभी को शाकाहारी बनाना चाहती है और इसपर टीवी डिबेट भी हुआ। मैंने अपने पत्रकार मित्रों को बताया कि मैं हैदराबाद में राज्य :भाजपा: प्रमुख था और मांसाहारी भी हूं, फिर भी मैं पार्टी अध्यक्ष बना।’’ पिछले तीन वषरें में देश के विभिन्न हिस्सों से गौरक्षकों द्वारा हिंसक घटनाओं की खबरें आयी हैं।

मुंबई: शिवसेना ने सोमवार को किसानों के आंदोलन को लेकर महाराष्ट्र सरकार पर हमला बोला और उस पर किसानों की एकता तोड़ने के लिये उनके बीच दरार डालने का आरोप लगाया। शिव सेना ने आरोप लगाया कि इससे पहले मराठा आंदोलन को कुचलने के लिये भी इसी प्रकार की कोशिश की गयी थी। पार्टी मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में शिवसेना ने कहा, ‘‘यदि किसानों की मांगें स्वीकार की जातीं, तो वे फूलों से मुख्यमंत्री का स्वागत करते, लेकिन सरकार के कुछ लोगों ने सदाभाऊ खोट (कृषि राज्य मंत्री) को अपने साथ ले लिया और किसानों की एकता तोड़ने की कोशिश की।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘बांटो और राज करो की नीति अपनायी गयी है। जो लोग मुख्यमंत्री से बात करने के लिए उनके आवास ‘वर्षा’ गए थे, उन्हें यह जवाब देने की जरूरत है कि क्या किसानों की कोई मांग मानी गई।’’ महाराष्ट्र में किसानों ने फसल खराब होने की वजह से ऋण माफी तथा एमएसपी की गारंटी सहित विभिन्न मांगों के लिए एक जून को आंदोलन शुरू किया था। शिवसेना ने सवाल किया, ‘‘मुख्यमंत्री ने कहा कि ऋण माफी से 30 से 40 लाख किसानों को लाभ होगा। लेकिन क्या वह बताएंगे कि मराठवाड़ा के किसानों का क्या होगा जिनके पास दो हेक्टेयर से अधिक जमीन है और जो बारिश पर निर्भर करते हैं।’’

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