नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी स्पीकर नरहरि सीताराम जिरवाल ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है। इसमें एकनाथ शिंदे गुट की याचिका का विरोध किया गया है। पूर्व डिप्टी स्पीकर ने सुप्रीम कोर्ट से अयोग्यता कार्रवाई पूरी होने तक शिंदे गुट को सदन से निलंबित करने की मांग की है। साथ ही कहा है कि अयोग्यता कार्रवाई पूरी होने तक बागी विधायकों के विधानसभा में प्रवेश और सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेने से रोका जाए।
पूर्व डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल ने जवाब में कहा है कि उनको अविश्वास प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सकता, क्योंकि ये प्रस्ताव सिर्फ विधानसभा सत्र चलते समय ही लाया जा सकता है। पूर्व डिप्टी स्पीकर ने कहा कि यदि एकनाथ कैंप 24 घंटे में सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दे सकता है, तो वे 48 घंटे में जारी अयोग्यता नोटिस का जवाब क्यों नहीं दे सकता।
डिप्टी स्पीकर का कहना है कि असत्यापित ईमेल के जरिये 39 विधायकों के पार्टी छोड़ने का नोटिस मेरे पास आया था। इसलिए, मैंने इसे अस्वीकार कर दिया।
उन्होंने कहा, कथित नोटिस एक ऐसे व्यक्ति की ईमेल आईडी से भेजा गया था, जो विधानसभा का सदस्य नहीं है और एक ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया गया था, जो विधायक नहीं है। इसलिए डिप्टी स्पीकर ने प्रामाणिकता/सत्यता पर संदेह किया और इसे रिकॉर्ड पर लेने से इंकार कर दिया गया।
उन्होंने उक्त मेल का जवाब देते हुए कहा था कि वह प्रस्ताव को अस्वीकार कर रहे हैं। कथित नोटिस को रिकॉर्ड में लेने से इंकार करने की सूचना उसी ईमेल आईडी पर भेजी गई थी जहां से ये आया था। उन्होंने कहा कि मैं यह समझने में विफल हूं कि याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य को सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में क्यों नहीं लाया।
डिप्टी स्पीकर का कहना है कि उन्हें हटाने के लिए नोटिस केवल तभी दिया जा सकता है जब विधानसभा सत्र में हो। संविधान, संसदीय सम्मेलन और विधानसभा नियमों के प्रावधानों के तहत, डिप्टी स्पीकर को हटाने का नोटिस तभी दिया जा सकता है जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो। इसलिए नोटिस संविधान के अनुच्छेद 179 (सी) के तहत कभी भी वैध नोटिस नहीं था।
जब शिंदे गुट के लोगों ने 24 घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मेरे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी, तो मैं यह समझने में विफल रहा कि पहली बार में जवाब दाखिल करने के लिए 48 घंटे का नोटिस कैसे और क्यों अपने आप में अनुचित और उल्लंघन है।
हलफनामे में कहा गया है
ये एकनाथ शिंदे का निर्लज्ज आचरण है कि उन्होंने अपने विधायकों के दल के साथ उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली अपनी ही महा विकास अघाड़ी सरकार को गिरा दिया और इस तरह की पार्टी विरोधी गतिविधि के लिए एक इनाम के रूप में उनको मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि राज्य विधानसभा में सबसे अधिक संख्या में भाजपा विधायक हैं।
बागी समूह का ये आचरण संविधान की दसवीं अनुसूची के पैरा 2 (1) (ए) को स्पष्ट रूप से आकर्षित करता है और उन्हें अयोग्य बनाता है। बागियों का आचरण इतना घिनौना और स्पष्ट है कि इसके लिए किसी स्पष्टीकरण की मांग करने की भी आवश्यकता नहीं है। एकनाथ शिंदे की महाराष्ट्र विधानसभा की सदस्यता के साथ-साथ उनका समर्थन करने वाले सभी बागी विधायकों की सदस्यता सीधे समाप्त हो जानी चाहिए।
विधायक दल-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और दलबदल के संवैधानिक पाप के लिए प्रतिबद्ध महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित किए जाने के पात्र हैं। शिंदे भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं। बागी विधायकों का आचरण गंभीर और स्पष्ट है और पार्टी में उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जानी चाहिए।
महाराष्ट्र के विधायक असम में बैठकर प्रस्ताव पारित कर रहे थे, जिसका असर महाराष्ट्र में अपनी ही सरकार को अस्थिर करने के रूप में दिखा। एकनाथ शिंदे गुट द्वारा किए गए विद्रोह के बावजूद, मूल शिवसेना उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में ही है।
सोमवार को होनी है सुनवाई
27 जून को सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी स्पीकर की अयोग्यता नोटिस के खिलाफ एकनाथ शिंदे खेमे द्वारा दायर याचिका पर जवाब मांगते हुए डिप्टी स्पीकर को नोटिस जारी किया था। लेकिन अदालत ने कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया था।