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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे का गुट एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है और उन्होंने एकनाथ शिंदे गुट को सरकार बनाने के राज्यपाल के न्योते को चुनौती दी है। उद्धव ठाकरे खेमे ने 3 जून को हुई विधानसभा की कार्यवाही को भी चुनौती दी है, जहां एक नया अध्यक्ष चुना गया था और 4 जून को फ्लोर टेस्ट हुआ था। ठाकरे खेमे का तर्क है कि जिन 16 बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई लंबित थी, वे विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकते थे।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने एकनाथ शिंदे को राज्य में सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने के महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। एकनाथ शिंदे ने 30 जून को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस के डिप्टी के रूप में शपथ ली, क्योंकि भाजपा और शिवसेना के इस गुट ने उद्धव को सत्ता से बेदखल कर दिया।

इससे पहले भी उद्धव की याचिका पर बुधवार शाम को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान उद्धव ठाकरे ग्रुप ने गवर्नर के राजनीतिक होने का आरोप लगाया।

शिवसेना की ओर से पेश हुए अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ये कहना गलत होगा कि गवर्नर पॉलिटिकल नहीं हो सकता। इन्हीं गवर्नर ने सालों तक 12 सदस्यों को नॉमिनेट नहीं होने दिया। गवर्नर ने किसी भी विधायक से बात तक नहीं की। यहां तक कि मुख्यमंत्री से बात तक नहीं की और एकतरफा फैसला ले लिया था। इसी सुनवाई के दौरान कहा गया कि 'राज्यपाल कोई देवदूत नहीं हैं, वे इंसान हैं और इसलिए पहले भी एसआर बोम्मई और रामेश्वर प्रसाद आदि मामलों में न्यायालय के फैसले आए हैं। 'शक्ति परीक्षण इतने कम समय में कराने का राज्यपाल का आदेश चीजों को गलत तरीके या गलत क्रम से कराने जैसा है।

 

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