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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की अर्जी फिर खारिज कर दी है। महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण के बगैर ही स्थानीय निकाय चुनाव होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ्ते में चुनाव की अधिसूचना जारी करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने साफ किया कि ट्रिपल टेस्ट के बिना ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया है कि राज्य में 2448 स्थानीय निकायों के चुनाव कराने की तैयारी करे।

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार की सुप्रीम कोर्ट में दलील थी कि राज्य में नई नीति के मुताबिक परिसीमन का काम प्रगति पर है। लिहाजा एक बार परिसीमन हो जाए फिर चुनाव कराए जाएं। लेकिन कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि हरेक पांच साल बाद स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएं। इसमें किसी भी तरह को लापरवाही, देरी उचित नहीं है। अदालत ने साफ किया कि ये चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना ही होंगे। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इसी मुद्दे पर दायर अर्जी पर पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को सुनवाई करेगा।

इस साल मार्च में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण के मामले में महाराष्ट्र सरकार को राहत नहीं मिली थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी कोटे के तहत नहीं होंगे। जनरल सीट के तहत ही चुनाव होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र और महाराष्ट्र चुनाव आयोग को पिछड़ा वर्ग आयोग की अंतरिम रिपोर्ट पर कार्रवाई करने से रोक दिया था। अंतरिम रिपोर्ट में स्थानीय निकाय चुनावों में 27% ओबीसी कोटा देने की सिफारिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा था कि अंतरिम रिपोर्ट शोध और अध्ययन के बिना तैयार की गई है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट नेमहाराष्ट्र में आरक्षण के मुद्दे पर गठित आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर आयोग को फटकार लगाई थी।

आयोग ने कहा कि चुनावों में 27% आरक्षण लागू करने के लिए पर्याप्त आंकड़े उपलब्ध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आयोग को यह कैसे पता चलता है कि यह सटीक डेटा है और यह प्रामाणिक है। सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट में कोई डेटा पेश नहीं किया गया है। हमको कैसे पता चलेगा कि यह रिपोर्ट कैसे बनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या यह अधिकारियों के काम करने का तरीका है। आयोग की सिफारिशों के बारे में संदेह हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट के 19 जनवरी 2022 के आदेश का पालन करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव में कोई आरक्षण सीट नहीं होगी। सभी सीट को जनरल सीट के रूप में नोटिफाई करने को कहा गया।

आयोग की रिपोर्ट से असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट में की गई सिफारिशों का आधार आंकड़ों पर आधारित और तर्क संगत बनाने को कहा था। ये आधी अधूरी रिपोर्ट खुद रिपोर्ट करती है कि उसमें कोई आंकड़ा नहीं है और तर्क भी नहीं। ऐसे में ये कोर्ट राज्य के चुनाव आयोग सहित किसी भी संबंधित अधिकरण को ये सिफारिशें लागू करने से मना करती है। जस्टिस एएम खानविलकर की अगुआई वाली पीठ ने आयोग की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आयोग को मुहैया कराए गए आंकड़ों की सत्यता जांचने को पड़ताल करनी चाहिए थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सीधा लिख दिया कि अन्य पिछड़ी जातियों को स्थानीय निकायों में उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है। कोर्ट ने सख्ती से पूछा कि आयोग को कैसे पता चला कि आंकड़े ताजा सही और सटीक हैं?

इस पर सरकार के वकील ने कहा कि आयुक्त की मौजूदगी में ही आंकड़े सीएम के पास आए थे। इस दलील से नाराज जस्टिस खानविलकर ने कहा कि सरकारी काम काज क्या ऐसे ही होता है? कोई तो अनुशासन और विधि प्रक्रिया होगी कामकाज की? रिपोर्ट पर कोई तारीख नहीं है तो ऐसे में हम ये कैसे पता लगाएं कि रिपोर्ट मामले की गहराई तक सोच समझ के बाद बनाई गई है या फिर बस यूं ही! आयोग के कामकाज का यही ढर्रा रहेगा तो हमें रिपोर्ट और इसमें की गई अनुशंसाओं पर शक क्यों न हो? क्योंकि लगता है ये कहीं से कट पेस्ट किया गया है! रेशनल की वर्तनी तक सही नहीं लिखी गई है। जस्टिस माहेश्वरी ने टिप्पणी की कि आपकी रिपोर्ट के समर्थन में एक भी तर्क नहीं है।

अपनी सिफारिशों को तर्क से सिद्ध करने का एक भी प्रयास नहीं। बचाव करते हुए आयोग की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने कहा कि ये तो अंतरिम रिपोर्ट है। ये सिर्फ रिजर्वेशन के अनुपात और अन्य मानदंडों की समीक्षा करती है। जस्टिस खानविलकर ने कहा कि इस दलील में भी दम नहीं है क्योंकि आयोग ने अपनी रिपोर्ट और अनुशंसा में पहले आंकड़ों को नकार ही दिया। फिर उन्हीं पर अपनी रिपोर्ट को आधारित भी कर दिया। लेकिन बिना तर्क और दलीलों के आखिर आपकी रिपोर्ट का आधार क्या है?

नाफड़े ने फिर कहा कि आयोग अपनी सिफारिशों को हरेक स्थानीय निकाय के साथ तर्क संगत ढंग से सिद्ध कर सकता है। जस्टिस खानविलकर ने कहा तो एक हफ्ते एक महीने या फिर किसी भी अवधि में साबित करे। लेकिन बिना इसके हम आपको इस अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर तो आगे नहीं बढ़ने देंगे। जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि डाटा को जस का तस चिपका देने के अलावा भी आपको अपनी ओर से कुछ तो करना था। जस्टिस खानविलकर ने कहा कि उसी वजह से आपकी आरक्षण नीति को पहले भी मंजूरी नहीं मिली थी।

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