मुंबई: महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस को हिरासत में लिया गया है। वह एनसीपी के नेता नवाब मलिक के खिलाफ मोर्चा निकाल रहे थे। बता दें कि मेट्रो जंक्शन के आगे पुलिस ने जाने नहीं दिया इसलिए देवेंद्र फडणवीस और बाकी नेताओं को पुलिस ने हिरासत में लिया और पुलिस वैन में बैठाकर ले गई। भाजपा नेताओं के हिरासत में लिए जाने के बाद कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की।
बता दें कि देवेंद्र फडणवीस और भाजपा के अन्य नेता एनसीपी के नेता नवाब मलिक के इस्तीफे की मांग को लेकर आजाद मैदान में प्रदर्शन कर रहे थे। इसी के चलते उन्हें हिरासत में लिया गया। उन्हें हिरासत में लेने के बाद मेट्रो जंक्शन के पास से बैरिकेट्स हटाकर रास्ता खोल दिया गया।
गौरतलब है कि नवाब मलिक मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने अरेस्ट किया था। मुंबई अंडरवर्ल्ड, भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके गुर्गों की गतिविधियों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने पूछताछ के बाद मलिक को गिरफ्तार किया था।
जानकारी के अनुसार,, दाऊद के साथियों के साथ कथित लेन-देन और उनके साथ जमीन के सौदे को लेकर नवाब मलिक से पूछताछ की गई थी। ईडी का कहना है कि पूछताछ के दौरान नवाब मलिक टाल-मटोल कर रहे थे और उन्होंने जांच में सहयोग नहीं किया। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने कई जगहों पर छापेमारी की थी और इस मामले में दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर को भी कस्टडी में लिया था।
महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक कार्य मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मलिक को ईडी ने भगोड़े गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगियों की गतिविधियों से जुड़े धनशोधन मामले की जांच के सिलसिले में 23 फरवरी को गिरफ्तार किया था। मंत्री को पहले ईडी की हिरासत में भेजा गया और बाद में न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था।
मलिक के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता अमित देसाई ने पहले उच्च न्यायालय को बताया था कि मंत्री की गिरफ्तारी और उसके बाद की हिरासत अवैध है। उन्होंने अपील की थी कि गिरफ्तारी रद्द की जाए और उन्हें तुरंत हिरासत से रिहा कर अंतरिम राहत प्रदान की जाए।
ईडी के वकील, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह और अधिवक्ता हितेन वेनेगाओकर ने अदालत को सूचित किया था कि मलिक को उचित प्रक्रिया अपनाने के बाद गिरफ्तार किया गया और विशेष पीएमएलए अदालत द्वारा जारी रिमांड आदेश ने उन्हें ईडी की हिरासत और फिर न्यायिक हिरासत में भेजने के वैध कारण बताए गए हैं।
उन्होंने तर्क दिया था कि मंत्री की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका जायज नहीं है। उन्होंने कहा था कि इसके बजाय उन्हें मामले में नियमित जमानत की अपील करनी चाहिए।