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नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) से मिला डेटा गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। चुनाव आयोग की वेबसाइट में 763 पेजों की दो लिस्ट डाली गई है। एक लिस्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल है। दूसरी लिस्ट में राजनीतिक पार्टियों को मिले बॉन्ड का ब्यौरा है। चुनाव आयोग की वेबसाइट में अपलोड की गई सारी जानकारी 3 मूल्यवर्ग के बॉन्ड की खरीद से जुड़ा हुआ है। इलेक्टोरल बॉन्ड 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के खरीदे गए हैं। हालांकि, दी गई जानकारी में ये पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को डोनेशन दिया है।

सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान बेंच ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था। एसबीआई ने मंगलवार शाम 5.30 बजे चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था। 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को फटकार लगाई थी और 12 मार्च शाम तक यह डिटेल देने का निर्देश दिया था।

चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी, कांग्रेस, एआईएडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस को डोनेशन मिला। इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीदारों में अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन और सन फार्मा शामिल हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों में टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स, वेदांता लिमिटेड भी शामिल हैं। ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज ने भी राजनीतिक दलों को चंदा दिया है।

एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी मोहलत

4 मार्च को एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। एसबीआई का कहना था कि डेटा का मिलान करने में समय लगेगा। इसके लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी गई थी।

एडीआर यानि एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने 7 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के खिलाफ अवमानना याचिका दायर कर दी थी। एडीआर ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने के लिए एसबीआई का 30 जून तक की मोहलत मांगना इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है। एडीआर ने तर्क दिया कि एसबीआई का आईटी सिस्टम इसे आसानी से मैनेज कर सकता है। हर बॉन्ड में एक यूनीक नंबर होता है। इसके जरिए रिपोर्ट तैयार कर इलेक्शन कमीशन को दी जा सकती है।

11 मार्च को हुई थी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में एसबीआई की याचिका पर सोमवार (11 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 मिनट सुनवाई की थी। एसबीआई ने कोर्ट से कहा था, 'बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए।' इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा, 'पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया?' सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, 'एसबीआई 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे।'

चुनाव आयोग में दिए गए एसबीआई के एफिडेविट के मुताबिक, 1 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक 22 हजार 217 इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। इनमें से 22,030 बॉन्ड का पैसा राजनीतिक पार्टियों ने कैश करा लिया। पार्टियों ने 15 दिन की वैलिडिटी के भीतर 187 बॉन्ड कैश नहीं किए। रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर कर दी गई।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है?

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। एसबीआई से इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। सरकार का दावा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। साथ ही ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा।

दूसरी ओर, इसका विरोध करने वालों का तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

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