नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक संबंधी विवाद में कहा कि महिलाओं को मंदिर में पूजा करने से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पीठ ने यंग इंडिया लॉयर्स एसोसिएशन की याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि हिंदू धर्म में महिलाओं और पुरुषों के बीच किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया गया है। हिंदू हिन्दू होता है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि महिलाओं को मंदिर में पूजा करने से रोकना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा। हालांकि सबरीमाला मंदिर के ट्रस्ट और केरल सरकार ने दलील दी कि महिलाओं के मंदिर में पूजा करने पर लगी पारंपरिक रोक को नहीं हटाया जाना चाहिए। मंदिर की ओर से मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल ने दलील दी कि मंदिर के अंदर विराजमान देवता ब्रह्मचारी हैं, मंदिर में महिलाओं का प्रवेश उनकी पवित्रता को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह 1000 साल पुरानी परम्परा है, जिससे छेड़छाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने दलील दी कि मासिक धर्म के दौरान महिलाएं अपवित्र रहती हैं, इसलिए 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए।