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नई दिल्ली: कर्जदारों के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि अमीर करोड़ों रुपये का कर्ज लेकर खुद को दिवालिया घोषित कर देते हैं और बैंक उनका कुछ नहीं करते। वहीं कोई गरीब किसान अगर थोड़ा सा कर्ज न चुकाए तो बैंक उसकी संपत्ति जब्त कर लेते हैं। कोर्ट ने कहा कि आरबीआई का काम बैंकों पर नजर रखना भी है। इसलिए उसे पता होना चाहिए कि बैंक आम जनता का पैसा किसे कर्ज के रूप में दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के साथ केंद्र सरकार से भी पूछा कि वे बकायदारों से रकम वसूलने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं। मामले की अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने करीब एक दशक पहले हुडको में हुए घोटाले को लेकर बड़े कर्जदारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। कोर्ट उसी पर सुनवाई कर रहा है। भूषण के मुताबिक, हर साल सरकारी बैकों की ओर से हजारों करोड़ के कर्जदारों के मामलों को बंद कर दिया जाता है। बैंक ऐसे लोगों को एनपीए (नाॠन परफोर्मिंग एसेट्स) की सूची में डाल देते हैं। आरबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बकायेदारों की एक सूची सौंपी है। इसमें 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के देनदारों के नाम है। कोर्ट ने वित्त मंत्रालय और बैंकों से पूछा है कि क्यों न इन लोगों के नाम बता दिए जाएं?

आरबीआई ने कोर्ट में बड़े बकायेदारों के नाम सार्वजनिक करने का विरोध किया है। उसका कहना है कि ऐसा होने पर देश की अर्थव्यवस्था पर खराब असर पड़ेगा। एनपीए वो कर्ज होता है जिसे वसूल नहीं किया जा सकता है। हर साल बैंक हजारों ऐसे मामलों को बंद कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट में आरबीआई ने खुद माना है कि एनपीए की रकम कई लाखों-करोड़ों में पहुंच चुकी है। हाल ही में एक आरटीआई से खुलासा हुआ था कि 29 बैंकों ने 2014-15 के दौरान करीब 2.11 लाख करोड़ रुपये के कर्ज मामलों को बंद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि वह इतनी बड़ी राशि देखकर हैरान है। रिजर्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि जो बैंक उसके नियमों को पालन नहीं कर रहे, उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। कई बैंकों इस मामले में दंडित भी किया गया है।

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