नई दिल्ली: पंजाब पीसीसी चीफ और अमृतसर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे नवजोत सिंह सिद्धू 33 साल पुराने रोड रेज मामले में मुश्किल में पड़ सकते हैं। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई की। सुप्रीम अदालत ने साधारण चोट की बजाए गंभीर अपराध की सजा देने की याचिका पर सिद्धू को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा है। पीड़ित परिवार ने याचिका दाखिल कर रोड रेज केस में साधारण चोट नहीं बल्कि गंभीर अपराध के तहत सजा बढ़ाने की मांग की है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने साधारण चोट का मामला बताते हुए सिर्फ ये तय करने का फैसला किया था कि क्या सिद्धू को जेल की सजा सुनाई जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ के सामने याचिकाकर्ता पीड़ित परिवार की ओर से वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कई पुराने मामलों में आए फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सड़क पर हुई हत्या और उसकी वजह पर कोई विवाद नहीं है। उन्होंने कहा कि पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से भी साफ है कि यह हत्या का मामला है और चोट हमले की वजह से आई थी न कि हार्ट अटैक से मौत हुई।
याचिकाकर्ता के वकील ने दोषी को दी जाने वाली सजा को और बढ़ाने की मांग की।
वहीं, नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से पी चिदंबरम ने याचिकाकर्ता की दलीलों का विरोध किया। उन्होंने याचिकाकर्ता पर मामले को अलग दिशा देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ये मामला तो आईपीसी की धारा 323 के तहत आता है। यह घटना 1998 की है। कोर्ट इसमें दोषी को मामूली चोट पहुंचाने के जुर्म में एक साल की सजा सुना चुका है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि पिछले फैसले जो लिए गए थे। उनके मुताबिक ये सिर्फ मामूली चोट का मामला नहीं बल्कि एक खास श्रेणी में आता है और अब आपको उन दलीलों के साथ बचाव करना है। पूरे फैसले के बजाय आपको सजा की इन्हीं दलीलों पर अपना जवाब रखना है. मौजूदा स्थिति में हम सिर्फ इसी पर सुनवाई को फोकस रखना चाहते हैं। जस्टिस कौल ने कहा कि हम पेंडोरा बॉक्स नहीं खोलना चाहते।
इससे पहले नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। इसमें सिद्धू ने अपने खिलाफ पुनर्विचार याचिका को खारिज करने की मांग की। सिद्धू ने अनुरोध किया है कि उनको जेल की सजा न दी जाए। साथ ही कहा कि फैसले पर पुनर्विचार के लिए कोई वैध आधार नहीं है। उनकी यह भी दलील है कि ई हथियार बरामद नहीं हुआ, कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी और साथ ही घटना को 3 दशक से अधिक समय बीत चुका है।
क्या है पूरा मामला
27 दिसम्बर 1988 को नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू की पटियाला में कार पार्किंग को लेकर गुरनाम सिंह नाम के बुजुर्ग के साथ कहासुनी हो गई थी। झगड़े में गुरनाम की मौत हो गई। सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया था। पंजाब सरकार और पीड़ित परिवार की तरफ से मामला दर्ज करवाया गया था।
साल 1999 में सेशन कोर्ट से सिद्धू को राहत मिली और केस को खारिज कर दिया गया। कोर्ट का कहना था कि आरोपी के खिलाफ पक्के सबूत नहीं हैं और ऐसे में सिर्फ शक के आधार पर केस नहीं चलाया जा सकता, लेकिन साल 2002 में राज्य सरकार ने सिद्धू के खिलाफ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में अपील की। 1 दिसम्बर 2006 को हाईकोर्ट बेंच ने सिद्धू और उनके दोस्त को दोषी माना।
6 दिसम्बर को सुनाए गए फैसले में सिद्धू और संधू को 3-3 साल की सजा सुनाई गई और एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगा। सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 10 जनवरी 2007 तक का समय दिया गया। दोनों आरोपियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और 11 जनवरी को चंडीगढ़ की कोर्ट में सरेंडर किया गया। 12 जनवरी को सिद्धू और उनके दोस्त को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक लगा दी। वहीं शिकायतकर्ता भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और सिद्धू को हत्या का दोषी करार देने की मांग की है।