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कोलकाता: राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के पश्चिम बंगाल में लागू होने की संभावना को लेकर शुक्रवार को कोलकाता नगर निगम के मासिक सत्र के दौरान हंगामा हुआ। महापौर फिरहद हकीम ने पार्षदों को आश्वासन दिया कि जब तक पश्चिम बंगाल में तृणमूल की सरकार है तब तक एनआरसी को लागू नहीं होने दिया जाएगा। तृणमूल सरकार के आश्वासन के बावजूद एनआरसी लागू होने के डर से यहाँ और पूरे पश्चिम बंगाल में सैकड़ों की संख्या में लोग सरकारी कार्यालयों के बाहर अपने जन्म प्रमाण पत्र और अन्य कागजात लेकर इकठ्ठा हुए थे।

महापौर से लोगों की परेशानी का जवाब मांगने के लिए कांग्रेस और वामदल समेत विपक्ष सदन के सभापति के सामने एकजुट हो गया। वरिष्ठ कांग्रेसी पार्षद प्रकाश उपाध्याय ने एनआरसी के प्रति लोगों के डर को लेकर हाकिम से जवाब माँगा। उन्होंने कहा कि केवल भाषण देने से काम नहीं चलेगा, लोगों की चिंता दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। भाजपा पार्षद विजय ओझा ने उपाध्याय का विरोध करते हुए कहा कि केंद्र सरकार जल्दी ही संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक लाकर शरणार्थियों को नागरिकता देगी।

ओझा ने कहा कि एनआरसी केवल अवैध घुसपैठियों को बाहर करने के लिए लागू किया जाएगा और एक भी हिन्दू को देश नहीं छोड़ना होगा।

नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उन हिन्दुओं, जैनियों, ईसाईयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को बिना किसी दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है जो से भारत में कम से कम सात वर्षों से रह रहे हैं। वर्तमान में यह सीमा 12 वर्ष है।

हकीम ने सदन को आश्वस्त करते हुए कहा, “जब तक तृणमूल की सरकार है तब तक राष्ट्रीय नागरिक पंजी लागू नहीं होगी। भाजपा को 2021 के विधानसभा चुनाव में करारा जवाब मिलेगा।”

एक सरकारी अधिकारी ने कहा था कि भाजपा द्वारा शासित असम में एनआरसी से कथित तौर पर बंगालियों के नाम गायब होने से लोगों में परेशानी बढ़ गई थी जिसके कारण 11 लोगों की मौत हो गयी थी। कोलकाता नगर पालिका मुख्यालय के बाहर और बंगाल के अन्य कार्यालयों के बाहर अपने जमीन और और अन्य कागजात के साथ लोगों की लंबी लाइन देखी गई थी। असम में 31 अगस्त को प्रकाशित अंतिम एनआरसी सूची में 19 लाख लोगों का नाम नहीं था।

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