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कोलकाता/गुवाहाटी: असम और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए पहले चरण के लिए मतदान शांतिपूर्ण संपन्न हो गया। असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के लिए यह चरण इसलिए भी खास है, क्योंकि 126 में से 65 विधानसभा सीटों के लिए मतदान पहले ही चरण में हो रहा है। उधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की साख भी दांव पर है। यहां 294 सीटों वाली विधानसभा के लिए पहले चरण के पहले दौर में सोमवार को 18 सीटों पर मतदान होगा। पश्चिम बंगाल में पहले चरण के तहत दूसरे दौर में 31 सीटों के लिए मतदान 11 अप्रैल को होगा। दोनों ही राज्यों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पहले चरण के लिए सोमवार को वोट डाले जाएंगे। असम में सोमवार को 65 विधानसभा सीटों पर 539 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होना है। यहां सत्तारूढ़ कांग्रेस, बीजेपी-अगप-बीपीएफ गठबंधन और एआईयूडीएफ के बीच में कड़ा मुकाबला है। असम में 45,95,712 महिला सहित 95,11,732 मतदाता 12,190 मतदान केन्द्रों पर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। उधर, पश्चिम बंगाल में भी मैदान में उतरी सभी पार्टियों के 133 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला 40 लाख से भी ज्यादा मतदाता 4,203 मतदान केंद्रों पर सोमवार को करेंगे। तथाकथित नारद स्टिंग ऑपरेशन और शहर के फ्लाइओवर हादसे की चर्चा की गहमा-गहमी के बीच पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण का मतदान हो रहा है।

चुनाव में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। विधानसभा की 294 सीटों के लिए चुनाव छह चरणों में होंगे और ये पांच मई तक चलेंगे। चुनाव के लिए 11, 17, 21, 25, 30 और 5 मई को भी मतदान होंगे। हेलीकॉप्टरों की आवाज, ड्रोन्स और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों और राज्य पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में सोमवार को पुरुलिया की नौ, बंकुरा की तीन और पश्चिमी मिदनापुर की छह सीटों के लिए मतदान होगा। इनमें से नक्सल प्रभावित मानी जाने वाली 13 सीटों पर मतदान प्रक्रिया दो घंटे पहले चार बजे ही समाप्त हो जाएगी। पांच साल पहले तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस और सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के साथ गठबंधन कर ऐतिहासिक जीत हासिल करके 34 साल पुराने वाम मोर्चा का शासन समाप्त कर दिया था। उस समय तृणमूल को 184, वाम मोर्चा को 62 और कांग्रेस को 42 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपना खाता खोलने में भी नाकाम रही थी, जबकि अन्य पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने छह सीटों पर कब्जा जमाया था। इस प्रकार राज्य को ममता के रूप में पहली महिला मुख्यमंत्री मिली थी। बाद में तृणमूल कांग्रेस अपने गठबंधन सहयोगियों से अलग हो गई, फिर भी वह बाद में हुए लोकसभा, पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में विपक्ष को नेस्तनाबूद करने में कामयाब रही थीं। हालांकि विपक्ष ने चुनावी धांधलियों और हिंसा का आरोप लगाया था। आरोपों के कारण चुनाव आयोग ने मतदान प्रक्रिया पर कड़ाई की है। आयोग ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए कई कदम उठाए हैं। केंद्रीय पुलिस बल के 75,000 जवान तैनात किए गए हैं। जनमत सर्वेक्षण एक बार फिर तृणमूल की जीत की भविष्यवाणी कर रहे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी और कांग्रेस-वाम मोर्चा गठबंधन के बीच मत प्रतिशत में बेहद कम अंतर के पूर्वानुमान के चलते राजनीतिक विश्लेषकों ने विधानसभा चुनाव को तृणमूल के लिए अब तक की सबसे मुश्किल लड़ाई बताया है। वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन को देश की आजादी के पहले से ही एक-दूसरे के कट्टर विरोधी के रूप में जाना जाता रहा है। कुछ महीनों पहले तक भी इनका गठबंधन असंभव लगता था, लेकिन पहले जो अकल्पनीय था, वह अब सच्चाई है। वाम मोर्चा और कांग्रेस के बीच यह नई दोस्ती दोनों पार्टियों में नीचे से ऊपर तक दिखाई दे रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के चुनाव अभियान के दौरान माकपा नेताओं की उपस्थिति इसका एक सूचक है। गुटबाजी, करिश्माई नेतृत्व की कमी और एक कमजोर संगठन के कारण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए 2014 के आम चुनाव के समान प्रदर्शन करना आसान नहीं होगा, जब नरेंद्र मोदी लहर पर सवार पार्टी ने बंगाल में आश्चर्यजनक रूप से 17 प्रतिशत मत हासिल कर लिए थे। चुनाव विश्लेषकों ने बीजेपी के लिए इस बार 0-4 सीटों का अनुमान लगाया है। नारद स्टिंग, जिसमें तृणमूल के कई वरिष्ठ नेताओं को कथित तौर पर रिश्वत लेते दिखाया है, खासतौर से शहरी क्षेत्रों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यह देखने वाली बात होगी कि यह सत्तारूढ़ पार्टी को कितना प्रभावित करता है। ममता अल्पसंख्यकों और खासतौर पर 27.1 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिमों को लुभाने के साथ ही अपनी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं 'कन्याश्री', 'खाद्य साथी' आदि का भी प्रचार करती रही हैं। वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन के लिए सबसे बड़ा मुद्दा 'लोकतंत्र कायम करना' और बंगाल को तृणमूल द्वारा खुली छूट दिए गए 'तानाशाही, हिंसा, आतंकवाद और धमकियों' से मुक्ति दिलाना है। वहीं बीजेपी का मुख्य चुनावी वादा 'घुसपैठियों को खदेड़ना' है। विवेकानंद फ्लाइओवर हादसे ने भी राजनीतिक चुनौतियां बढ़ा दी हैं और फ्लाइओवर ढहने की घटना में भ्रष्टाचार को मुख्य कारण बताते हुए विरोधी पार्टियों ने एक-दूसरे पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। मतदान को देखते हुए असम में बराक घाटी में करीमगंज जिले से लगे भारत-बांग्लादेश सीमा को सील कर दिया गया है और राज्यभर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है। ऊपरी असम, पहाड़ी जिलों, उत्तरी घाटों और बराक घाटी में फैले 65 विधानसभाओं में 40,000 से अधिक सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। 48,000 से अधिक चुनाव कर्मचारियों को पहले चरण के लिए तैनात किया गया है। पहले चरण में सत्तारूढ़ कांग्रेस और बीजेपी-अगप-बीपीएफ गठबंधन के बीच अधिकांश रूप से सीधा मुकाबला देखने को मिलेगा, जबकि एआईयूडीएफ ने 27 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं जहां पर तिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है। कांग्रेस पहले चरण के सभी 65 विधानसभाओं में चुनाव लड़ रही है जबकि बीजेपी 54 और उसके गठबंधन सहयोगी अगप 11 और बीपीएफ तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है। एआईयूडीएफ 27, भाकपा और माकपा 10-10 और सीपीआई (माले) (लिबरेशन) छह सीटों पर मैदान में है। गैर मान्यता प्राप्त दलों से 60 जबकि 13 निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में हैं। पहले चरण के मतदान के लिए 53 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है। असम के मुख्य चुनाव अधिकारी विजयेंद्र ने रविवार को गुवाहाटी में संवाददाताओं से कहा कि 535 कंपनियों में से 433 केन्द्रीय बलों की तथा 102 राज्य पुलिस की कंपनियां हैं। एक कंपनी में करीब सौ जवान होते हैं। विजयेंद्र ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों के सभी मतदान केन्द्रों और शहरी क्षेत्रों के 82 प्रतिशत केन्द्रों को 'एक-एक केन्द्रीय कंपनी के आधे भाग' से कवर किया जाएगा। जिला एवं उपसंभागीय मुख्यालय पर एक-एक तथा स्ट्रांग रूम में एक प्लाटून की तैनाती की जाएगी।

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