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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को रद्द किया जाए या उन 20,158 सीटों पर फिर से चुनाव कराए जाएं जो टीएमसी द्वारा बिना विरोध जीत ली गईं, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुना दिया। पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव मामले में ममता बनर्जी और टीएमसी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और स्पष्ट कर दिया कि निर्विरोध जीती गई सीटों पर दोबारा पंचायत चुनाव नहीं होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह के आरोप लगाए गए कि नामांकन दाखिल नहीं करने दिया गया, उसके लिए 30 दिनों के भीतर चुनाव याचिका दाखिल की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 20,159 सीटों के नतीजे घोषित करने पर लगी रोक हटाई है। शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब राज्य चुनाव आयोग नतीजे घोषित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के ईमेल से नामांकन दाखिल करने के आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने कहा कि ईमेल या व्हाट्सएप्प से नामांकन नहीं हो सकता क्योंकि ये कानून में नहीं है। हालांकि, पिछली सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने संकेत दिया था कि अदालत जांच करेगी कि क्या बिना विरोध चुनाव होना चुनाव की निष्पक्षता को नष्ट करता है या नहीं।

उस दौरान ममता सरकार ने दोबारा चुनावों का विरोध किया और कहा कि भाजपा की राज्य में कोई उपस्थिति नहीं है। राज्य सरकार ने कहा कि चुनाव में हिंसा दोबारा मतदान के लिए आधार नहीं हो सकता। वरना हर उम्मीदवार जिसके पास जीतने का कोई मौका नहीं है वह हिंसा करा सकता है और चुनाव रोक सकता है। वहीं, सीपीएम और भाजपा ने तर्क दिया कि उनके उम्मीदवारों पीटा गया और नामांकन दाखिल करने से रोका गया।

उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि 20,000 से अधिक टीएमसी उम्मीदवारों को विजेता घोषित करने की मांग की जा रही है जो विपक्षी दलों के लोकतांत्रिक अधिकारों को प्रभावित करता है। पश्चिम बंगाल राज्य चुनाव आयोग ने फिर से चुनावों का विरोध किया।

दरअसल, ग्राम पंचायतों में 48,650 पदों, जिला परिषदों में 825 पद और पंचायत समितियों में 9, 217 पदों के लिए चुनावों में चुनाव हुए थे और आरोप लगाया गया कि लगभग 34 प्रतिशत सीटों पर विपक्ष से कोई प्रत्याशी नहीं था। ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति के लिए कुल 58,692 सीटों में से 20,158 पर टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें राज्य चुनाव आयोग को पंचायत चुनावों के लिए ई-मेल के माध्यम से नामांकन पत्र स्वीकार करने के लिए कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उन उम्मीदवारों के नाम राजपत्र में घोषित नहीं करने का निर्देश दिया था।

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