नई दिल्ली: नेताजी सुभाषचंद्र बोस के पोते चंद्रकुमार बोस और त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय के बीच बकरे का मांस खाने और ना खाने के मुद्दे पर ट्विटर पर टकराव शुरू हो गया। भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के उपाध्यक्ष बोस ने 25 जुलाई को महात्मा गांधी और उनके खानपान की आदतों का हवाला देते हुए कहा था कि हिंदुओं को बकरे का मांस खाना बंद कर देना चाहिए। बोस ने ट्विटर पर लिखा था कि गांधीजी मेरे दादा शरतचंद्र बोस के कोलकाता के 1, वुडबर्न पार्क घर में ठहरते थे। वह पीने के लिए बकरी का दूध मांगते थे। इसके लिए घर पर दो बकरियां लायी गयीं। हिदुओं के रक्षक गांधी बकरियों का दूध पीते थे, उन्हें अपनी मां मानते थे। हिंदुओं को बकरे का मांस खाना बंद कर देना चाहिए।
इसके जवाब में तथागत रॉय ने कहा कि ना तो गांधीजी और ना ही नेताजी बकरियों को मां मानते थे। उन्होंने 26 जुलाई को ट्विटर पर लिखा, ''ना तो गांधीजी और ना ही आपके दादा ने कभी भी बकरियों को मां कहा, यह बस आपका मानना है। ना ही गांधीजी ने (या किसी और ने) कभी यह दावा किया कि वे हिंदुओं के रक्षक हैं। हम हिंदू गाय को अपनी मां मानते हैं, बकरियों को नहीं।
कृपया इस तरह की सड़ी चीज को बढ़ावा ना दें।
बोस ने अपने ट्वीट को विस्तार से समझाते हुए आगे लिखा था कि उन्होंने गांधीजी की बात को एक उपमा के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा, ''लोगों को मेरे ट्वीट के मायने और प्रतीकात्मकता को समझना चाहिए। मैं राजनीतिक बिरादरी को संदेश देना चाहता हूं कि धर्म और राजनीति का घालमेल ना करें। हमें पशुओं की रक्षा करनी चाहिए लेकिन हम ऐसा इंसानों की कीमत पर ना करें तो अच्छा है।
भाजपा उपाध्यक्ष ने सोमवार को फिर से ट्विटर पर लिखा कि चीजों को सही रूप में रखने की जरूरत है। लोगों से कहना बंद करें कि वे क्या खाएं, क्या ना खाएं। अगर आप लोगों को गोमांस खाने नहीं देंगे तो आप बकरे का मांस खाना भी बंद कर दें। राजनीति और धर्म का घालमेल ना करें। राजनीति का किसी भी धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
बोस ने आज कहा कि मैंने इसका इस्तेमाल एक संदर्भ के रूप में किया था। देश के कई हिस्से में देवी काली की पूजा के दौरान बकरे की बलि दी जाती थी। अगर बकरे पवित्र जानवर नहीं हैं तो काली पूजा में उसका इस्तेमाल क्यों होता था। इस तर्क से हमें बकरे का मांस नहीं खाना चाहिए। प्रदेश भाजपा ने ट्विटर वाकयुद्ध पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।