नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बिहार के 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने के मामले में अंतिम सुनवाई बुधवार को जारी रहेगी। राज्य में 52 हजार शिक्षक नियमित हैं जबकि पंचायतों के जरिये भर्ती शिक्षकों की संख्या 3.7 लाख है। जस्टिस एएम सप्रे और यूयू ललित की पीठ के समक्ष मंगलवार को राज्य सरकार ने कहा कि शिक्षकों को समान वेतन देने से राज्य की आर्थिक हालत खराब हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सरकार ने 2006 में इन शिक्षकों को पारिश्रमिक पर रखा था। अब इनकी और भर्ती नहीं की जा रही है, इस कैडर को चरणबद्ध तरीके समाप्त किया जा रहा है। इस पर पीठ ने सरकार से सवाल किया कि जब नियोजित शिक्षकों की योग्यता और अन्य शर्तें नियमित शिक्षकों के समान हैं तो उन्हें एक समान वेतन देने में क्या परेशानी है। सिर्फ इस बात पर उनकी भर्ती का स्रोत अलग है क्या सरकार उनके साथ यह भेदभाव कर सकती है।
पीठ के एक जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि यदि नियम वेतन में इस भेदभाव को उचित ठहराते हैं तो इन नियमों में दिक्कत है। बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी, गोपाल सिंह और मनीष कुमार पेश हुए। उन्होंने कहा कि यदि नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की तर्ज पर समान कार्य के लिए समान वेतन अगर दिया जाता है तो राज्य सरकार पर प्रति वर्ष करीब 52 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आएगा, जिसे वहन करना मुश्किल है।
इससे पूर्व केंद्र सरकार नियोजित शिक्षकों को वेतन लाभ देने से मना कर चुकी है। उसने कहा था कि बिहार के बाद अन्य राज्यों की ओर से भी इसी तरह की मांग उठने लगेगी जिसे पूरा करना मुश्किल हो जाएगा।