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(धर्मपाल धनखड़) इन दिनों हरियाणा में 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दल माहौल गर्माने में लगे हैं। वास्तव में देखा जाये तो बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर, बाकी पार्टियां लोकसभा चुनाव को ज्यादा महत्व नहीं दे रही हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज होना है। तमाम पार्टियों और उनके प्रमुखों की जंग मुख्यमंत्री बनने को लेकर है।

सबसे पहले प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की बात करते हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और हाथ से हाथ जोड़ों अभियान के बाद इन दिनों कांग्रेस 'विपक्ष आपके समक्ष' कार्यक्रम चला रही हैं। बेशक गुटबाजी की शिकार कांग्रेस पिछले नौ साल में धरातल पर संगठन भी नहीं खड़ा कर पायी है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान को लेकर ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रहे हैं। और उन्हें जनता का समर्थन भी मिला रहा है। वहीं कांग्रेस के अलग-अलग गुटों के नेताओं के बीच भी मुख्यमंत्री बनने की जंग तेज होती दिख रही है।

कर्नाटक में पार्टी की जीत के बाद रणदीप सुरजेवाला ने कैथल में एक बड़ी रैली करके शक्ति प्रदर्शन किया। इसके बाद सोशल मीडिया पर "सीएम रणदीप हो इस बार." गाना ट्रेंड करने लगा। इससे पहले रणदीप ने पार्टी हाईकमान को चिट्ठी लिखकर कर्नाटक के प्रदेश प्रभार से मुक्त करने का निवेदन किया था। इसको लेकर चर्चा है कि अब वे प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ाकर खुद को भावी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल करना चाहते हैं! इसी तरह छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी शैलजा जब तब मुख्यमंत्री बनाये जाने को लेकर बयान देती रहती है। जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं गर्म रहती हैं।

गौरतलब है कि हरियाणा में पार्टी आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री को एक तरह से फ्री हैंड दे रखा है। और वे खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश करते हुए कर्नाटक और हिमाचल पकी तर्ज पर पार्टी की ओर से चुनावी वादे भी कर रहे हैं। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस के भीतर भी मुख्यमंत्री पद को लेकर संघर्ष और तेज होगा। हालांकि बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार के खिलाफ लोगों में बढ़ रही नाराजगी का सीधा फायदा कांग्रेस को मिल रहा है। अब ये देखने वाली बात होगी कि गुटों में बंटी कांग्रेस चुनाव में विरोधियों को कैसे पटकनी दे पायेगी।

वहीं इंडियन नेशनल लोकदल परिवर्तन पद यात्रा के जरिए अपना खोया आधार पाने की कोशिश में है। इस यात्रा के जरिए अभय चौटाला और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला भी जहां प्रदेश सरकार को निशाने पर ले रहे हैं, वहीं वे जेजेपी की भी कड़ी आलोचना कर रहे हैं। इस यात्रा को लेकर पार्टी के कुछ खास कार्यकर्ता तो इतने उत्साहित हैं कि वे अभी से अभय चौटाला को मुख्यमंत्री मानकर चल रहे हैं। इस पदयात्रा से इतना जरूर है कि पार्टी पुनर्जीवित हो रही है। इसके अलावा महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू भी एक पद यात्रा कर चुके हैं और वे अपनी नयी पार्टी को लेकर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।

इन दिनों प्रदेश में आम आदमी पार्टी भी खूब सक्रिय है। पिछले दिनों ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी जींद में प्रदेश स्तरीय तिरंगा यात्रा निकाली। इस मौके पर उनके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी थे। केजरीवाल ने सरकार बनने पर हरियाणा में भी मुफ्त बिजली देने का‌ वादा किया। साथ ही दिल्ली की तर्ज पर शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएं देने के भी सपने दिखाए। आम आदमी पार्टी पूरे प्रदेश में अपना संगठन खड़ा कर चुकी है। लेकिन उन्हें कोई बड़ी सफलता हाथ लगेगी, इसकी उम्मीद कम है। चूंकि एसवाईएल के पानी पर हरियाणा का हक नहीं होने की बात कहकर वे ग्रामीण मतदाताओं, खास तौर पर किसानों को पहले ही नाराज़ कर चुके हैं।

अब बात करते हैं बीजेपी-जेजेपी गठबंधन सरकार की। चंद महीने पहले बीजेपी के हारे हुए नेताओं की ओर से उठाई गयी गठबंधन में चुनाव नहीं लड़ने की आवाज दूर तलक पहुंची। दोनों पार्टियों के नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ खूब तल्ख टिप्पणियां की। और ऐसा माहौल बना दिया है कि दोनों कभी भी अपनी राह अलग कर सकती हैं। लेकिन जल्दी ही इस पूरे हल्ले की असलीयत लोगों को समझ आ गयी। दोनों पार्टियां चुनाव को लेकर अलग-अलग तैयारियां कर रही हैं। जेजेपी सभी लोकसभा क्षेत्र में पार्टी की रैलियां करने की योजना बना चुकी है। जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला अपने चुनावी वादे पूरे नहीं कर पाने को लेकर कहते हैं कि इस बार वोट देकर पार्टी की सरकार बनाना, सभी वादे पूरे करेंगे। यानी वे भी सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पद के दौड़ में शामिल हैं और हों भी क्यों ना, डिप्टी सीएम तो वे अभी हैं ही।

वहीं मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और बीजेपी को लगता है कि इस बार भी मोदी का करिश्मा और हिंदुत्व के बल पर वे जीत जायेंगे। बेशक आरएसएस का विश्वास हिल चुका है। और वह साफ कर चुकी मोदी के करिश्में और हिंदुत्व के बूते पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। इसके लिए लोकल लीडरशिप और स्थानीय मुद्दे भी चाहिए। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर हर जिले में तीन-तीन दिन के जन संवाद कार्यक्रम कर रहे हैं। वहीं पार्टी के प्रदेश प्रभारी बिप्लव देव जेजेपी के अलग होने की स्थिति में सरकार बनाये रखने के लिए निर्दलीय विधायकों का मन भी टटोल चुके हैं। कई निर्दलीय विधायकों ने तो साफ कहा कि सरकार में बीजेपी विधायकों की ही सुनवाई नहीं होती, तो उनकी कौन सुनेगा? पार्टी कार्यकर्ताओं में भी अपने काम नहीं होने को लेकर नाराजगी है।

खैर सरकार अपने कार्यकर्ताओं और विधायकों की नाराजगी तो दूर कर लेगी। लेकिन जनता की नाराजगी को दूर कर पाना बेहद मुश्किल है। बीजेपी में भी ऊपरी तौर पर भले मुख्यमंत्री खट्टर का कोई विरोध नहीं दिखता है। लेकिन भीतरखाने मुख्यमंत्री पद को लेकर पार्टी के कई नेताओं का गाहे-बगाहे सामने आता रहता है। लोकसभा चुनाव के बाद क्या स्थिति रहेगी, उसके बाद मुख्यमंत्री पद के लिए दौड़ बीजेपी में भी तेज होगी।

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