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(आशु सक्सेना): गुजरात में अभी मतदान और मतगणना होना बाकी है।लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव का एजेंड़ा भी तय कर दिया। भाजपा यह मानकर चल रही है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में उसकी जीत तय है और मोदी एक बार फिर सत्ता की बागड़ोर संभाल लेंगे।

उसके बाद पार्टी मोदी को भावी प्रधानमंत्री का दावेदार बनाकर लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान छेड़ देगी और मोदी के चेहरे पर 2014के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल कर लेगी। भाजपा की इस सोच को मानसिक दिवालियापन ही कहा जा सकता है।

भाजपा के चिंतकों ने पार्टी के चुनावी इतिहास पर नजर डालने की भी जहमत नही उठार्इ और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का ख्याब देखने लगे । लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने गुजरात की जमीन पर पैर रखते ही मोदी को प्रधानमंत्री का सबसे बेहतर उम्मीदवार घोषित कर दिया। इतना ही नही अब भाजपा ने गुजरात में मोदी के उतराधिकारी की खोज भी शुरू कर दी है।

भाजपा 1989में लोकसभा की 89सीट जीतने में सफल रही थी। उस वक्त कांग्रेस विरोधी लहर थी और भाजपा उस चुनाव में जनतादल और वामपंथी दलों के साथ चुनावी तालमेल के तहत मैदान में कूदी थी।

उसके बाद राममंदिर आंदोलन के चलते 1991में भाजपा को 119लोकसभा की सीटों पर कब्जा करने में सफलता मिली। इस चुनाव में पार्टी के चमकते हुए चेहरे लालकृष्ण आड़वानी, अटल बिहारी बाजपेर्इ, मुरली मनोहर जोषी जैसे दिग्गज चुनाव प्रचार में जुटे थे।

हिुदुत्व के नारे पर 1996में भाजपा 161सीटों पर जीती और अटल बिहारी बाजपेर्इ ने 13दिन प्रधानमंत्री का ताज भी पहना, लेकिन भाजपा गैर कांग्रेस दलों का समर्थन जुटाने में सफल नही हुर्इ।

नतीजतन भाजपा नीत सरकार का पतन हो गया और कांग्रेस के समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुर्इ। लेकिन यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी और नतीजतन 1998में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हुआ।

इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और उसे तेलगुदेषम,द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दलों का समर्थन भी मिला और भाजपा नीत सरकार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुर्इ! लेकिन 13महिने में सरकार गिर गर्इ। भाजपा को 1999में 182सीट मिली, जो कि संख्या के लिहाज से लोकसभा में उसकी अभी तक की सबसे बड़ी मौजूदगी रही है।

बहरहाल वह चमत्कार भाजपा के उदार नेता मानें जानें वाले अटल बिहारी बाजपेर्इ का था। दरअसल वह चुनाव मतदाताओं ने भाजपा को जिताया नही था बलिक सोनिया गांधी को हराया था। गौरतलब है कि 1999का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने पहली बार सोनिया गांधी के नेतृत्व में लड़ा था।

क्या भाजपा नरेंद्र मोदी के प्रभाव को अटल बिहारी बाजपेर्इ से ज्यादा आंक रही है। जबकि हकीकत यह है कि भाजपा के साथ बिहार में सत्ता चला रहे जनतादल (यू)समेत राजग के ज्यादातर घटक दल मोदी के विरोध में हैं।

 

खोज भी शुरू

लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने गुजरात की जमीन पर पैर रखते ही मोदी को प्रधानमंत्री का सबसे बेहतर उम्मीदवार घोषित कर दिया। इतना ही नही अब भाजपा ने गुजरात में मोदी के उतराधिकारी की खोज भी शुरू कर दी है।

आर्इये देखते है कि कौन होगा मोदी का उतराधिकारी ?भाजपा सूत्र बताते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री अगर राष्ट्रीय राजनीति में कूदते हैं और भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में अपना दावा पेश करते हैं तो इन परिस्थितियों में जाहिर है मोदी गुजरात की सत्ता अपने किसी विश्वासपात्र को सौंपना चाहेंगे।

कहा जा रहा है कि इसके लिए मोदी ने दो उत्तराधिकार की तलाश कर ली है। खास बात यह है कि दोनों ही संभावित उत्तराधिकार पटेल समुदाय से हैं। सूत्र बताते हैं कि नरेंद्र मोदी की पुरानी सहयोगी और राजस्व मंत्री आनंदी बेन पटेल को पाटन से हटाकर घाटलोडिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जा रहा है।

वहीं मोदी के पसंदीदा राज्यमंत्री सौरभ पटेल को बोटाड से अकोटा परिवर्तित किया गया है। हालांकि यह बदलाव इसलिए नहीं किया गया है कि दोनों अपनी-अपनी पूर्व की सीट से चुनाव हार जाते। बल्कि दोनों प्रत्याशियों की निजी जरूरतों के हिसाब से सुरक्षित सीट मुहैया कराई गई है।

कहा जा रहा है कि आनंदी बेन की सेहत ठीक नहीं है। वह अहमदाबाद सीट चाहती हैं ताकि उन्हें इलाज के लिए ज्यादा यात्रा न करना पड़े। दूसरी ओर सौरभ पटेल को 2014 में दिल्ली जाने के बाद मोदी अपने उत्तराधिकार के रूप में देख रहे हैं।

आनंदी बेन की सेहत ठीक नहीं रही तो सौरभ पटेल मोदी के उत्तराधिकार बनने के लिए तैयार रहेंगे। जब पूर्व मंत्री अमित शाह कानूनी प्रक्रिया की वजह से दूर थे उसी वक्त सौरभ पटेल मोदी के बेहद करीब आए।नरेंद्र मोदी ने संसदीय बोर्ड में कहा था कि सौरभ पटेल को जीतने लायक सीट चाहिए क्योंकि अगले विधानसभा में इनकी जरूरत है।

मालूम हो कि सौरभ पटेल ने अमरीका से एमबीए किया है। विवाह के कारण सौरभ अंबानी घराने के संबंधी हैं। इनकी नजदीकी अडानी से भी बताई जाती है। सौरभ की कॉरपोरेट घरानों में अच्छी पैठ है। गुजरात सरकार में सौरभ ने कई अहम विभागों को संभाला है।

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